मंडी: दिल पर पत्थर रखकर एक दंपति ने अपने कलेजे के टुकड़े के शव का मोह छोड़ उसे रिसर्च के लिए दान कर दिया, ताकि भविष्य में किसी ओर बच्चे के साथ ऐसा न हो. मंडी शहर के साथ लगते चडयारा गांव में एक दंपति ने अनूठी मिसाल पेश की है. दरअसल दंपति ने अपने 16 वर्षीय दिव्यांग बेटे के शव का अंतिम संस्कार नहीं किया, बल्कि रिसर्च के लिए शव को मेडिकल कॉलेज नेरचौक को दान कर दिया. दंपति की इस पहल की हर ओर सराहना हो रही है, हर कोई उनकी हिम्मत और जब्जे को सलाम कर रहा है.
जन्म के साथ ही हुई थी कॉम्प्लिकेशन: चडयारा गांव के बलविंदर कुमार और मीनाक्षी ने बताया कि 2007 में उनके घर उनके बेटे वंश का जन्म हुआ था. जन्म के साथ ही उनके बेटे को कुछ कॉम्प्लिकेशन हो गई थी. उन्होंने हर संभव जगह अपने बेटे का इलाज करवाया, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद वंश की बीमारी का कुछ पता नहीं चल पाया. समय के साथ-साथ उन्हें मालूम हुआ कि उनका बेटा वंश न तो चल-फिर सकता है और न ही बोल सकता है. उन्होंने अपनी तरफ से वंश के पालन पोषण में कोई कमी नहीं छोड़ी, लेकिन वह ठीक नहीं हुआ.
शव दान करने का पहले से किया था फैसला: दिवंग्त वंश के पिता बलविंदर कुमार पेशे से शिक्षक हैं. उन्होंने बताया कि डॉक्टरों ने उन्हें पहले ही बता रखा था कि वंश कभी भी दुनिया को अलविदा कह सकता है. ऐसे में उन्होंने और उनकी पत्नी मीनाक्षी ने पहले से ही ये तय कर रखा था कि वे अपने बेटे के शव का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे, बल्कि उसके शव को मेडिकल रिसर्च के लिए दान कर देंगे, ताकि डॉक्टर रिसर्च करके यह पता लगा सकें कि आखिर वंश को क्या दिक्कत थी और क्यों थी. जिससे भविष्य में दूसरे किसी बच्चे को ऐसी परेशानी न झेलनी पड़े.