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हिमाचल प्रदेश में 6 हजार करोड़ की बागवानी अर्थव्यवस्था पर खतरे के बादल - हिमाचल प्रदेश

Himachal Weather Affected Horticulture: हिमाचल प्रदेश में इस साल किसी भी जिले में बारिश नहीं हुई है. जिसका सीधा-सीधा असर प्रदेश की बागवानी अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है. बारिश-बर्फबारी न होने से बागवान फलों का उत्पादन भी नहीं कर पा रहे हैं, जोकि बागवानी के लिए खतरे की घंटी है.

Himachal Weather Affected Horticulture
Himachal Weather Affected Horticulture

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jan 11, 2024, 2:47 PM IST

करसोग:हिमाचल में मौसम की बेरुखी से 6 हजार करोड़ की बागवानी अर्थव्यवस्था पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं. इस बार समय पर बर्फबारी न होने से सेब सहित स्टोन फ्रूट के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स का पीरियड भी शुरू नहीं हुआ है. अगर आने वाले समय में भी मौसम की बेरुखी जारी रहती है तो इसका असर फल उत्पादन पर पड़ सकता है.

खतरे में बागवानी: विशेषज्ञों के मुताबिक लगातार 15 दिनों तक औसतन तापमान 7 डिग्री सेल्सियस से कम रहने पर ही सेब सहित स्टोन फ्रूट (बादाम, प्लम, खुबानी, आड़ू, बेर, आम, लीची, स्ट्रॉबेरी, खजूर आदि) के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू होता है, लेकिन प्रदेश में लंबे समय से बारिश और बर्फबारी न होने से औसतन तापमान सामान्य से अधिक चल रहा है. जोकि बागवानी अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए खतरे की घंटी है.

प्रदेश की अर्थव्यवस्था में 6 हजार करोड़ का योगदान:हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में बागवानी का योगदान करीब 6 हजार करोड़ का है. राज्य के फल उत्पादन में सेब का हिस्सा करीब 85 फीसदी है. प्रदेश में बागवानी का लगातार विस्तार हो रहा है. राज्य में वर्ष 1950-51 में 400 हेक्टेयर में सेब की पैदावार होती थी, ये क्षेत्र अब बढ़कर 2021-22 में 1,15,016 हेक्टेयर गया है. चिंता की बात ये है कि प्रदेश में बागवानी के तहत क्षेत्र तो लगातार बढ़ रहा है, लेकिन उत्पादन में इतनी अधिक बढ़ोतरी दर्ज नहीं की गई है. जिसमें पिछले कई सालों से मौसम में हो रहा बदलाव भी एक मुख्य कारण है.

कितने चिलिंग आवर्स की जरूरत: रेड डिलीशियस सेब के लिए सबसे अधिक 1200 घंटे की चिलिंग आवर्स की जरूरत होती है. इसी तरह से रॉयल सेब के लिए 1000 से 1100 घंटे की चिलिंग आवर्स पूरा होना जरूरी है. स्पर वैरायटी के लिए 800 से 900 घंटे व गाला प्रजाति सेब के लिए 700 से 800 घंटे तक के चिलिंग आवर्स पूरा होना जरूरी है. इसी तरह से स्टोन फ्रूट में प्लम के लिए 300 से 400 घंटे, खुबानी 300 से 400 सहित नाशपाती के लिए 700 से 800 घंटे व अंगूर के लिए 300 से 400 घंटे चिलिंग आवर्स पूरा होना जरूरी है. तभी सेब सहित स्टोन फ्रूट का उत्पादन अच्छा रहता है.

किसी भी जिला में अभी तक नहीं हुई बारिश: मौसम में लगातार हो रहे परिवर्तन से अब समय पर बारिश और बर्फबारी नहीं हो रही है. जनवरी के भी 10 दिन बीत गए, लेकिन अभी तक प्रदेश में कहीं पर भी बारिश और अच्छी बर्फबारी नहीं हुई है. मौसम विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो 11 जनवरी तक प्रदेश में सामान्य तौर पर 20.6 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए थी. वहीं, राज्य के किसी भी जिले में अभी तक बारिश नहीं हुई है. यानी प्रदेश में अभी तक बारिश का आंकड़ा 0 फीसदी है. मौसम विभाग ने अभी 17 जनवरी तक बारिश और बर्फबारी को कोई संभावना नहीं जताई है. ऐसे में बागवानों की परेशानी और बढ़ सकती है.

जल्दबाजी न करें बागवान: हिमाचल प्रदेश में लंबे समय से बारिश और बर्फबारी नहीं हो रही है. जिस वजह से जमीन से नमी गायब हो गई है. ऐसे में बागवानी विशेषज्ञों ने सेब के तोलिए (पौधों के आसपास खुदाई) करने, पौधों की कांट छांट व खाद डालने में जल्दबाजी न करने की सलाह दी है. बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज का कहना है कि बागवान बारिश होने पर फरवरी महीने में सेब की प्रूनिंग कर सकते हैं. आजकल कांट छांट करने से पौधे में जख्म हो सकता है. जिससे पौधे में कैंकर (पत्तियां और फल समय से पहले गिर जाना) सहित कई बीमारियां लगने की आशंका होती है. उन्होंने कहा कि बागवान बारिश और बर्फबारी होने के बाद ही सेब के तोलिए का कार्य शुरू करें. इसके बाद ही सेब में खाद डालने का भी फायदा होगा. उन्होंने कहा की जल्दबाजी करने से फलों की गुणवत्ता पर भी असर पड़ सकता है.

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