सराज:ना वेद मंडप, ना पालकी और बिना सेहरे के बारात की अगवानी करता पैदल चलता दूल्हा. यह महज कल्पना नहीं है त्रेता युग की यह परंपरा सदियों बाद भी देवभूमि कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश के सराज क्षेत्र में बखूबी प्रचलित है. भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले सराज में बड़े भू-भाग 14 हारों के मालिक देवता बड़ादेव विष्णु मतलोड़ा के (Devta Badadev Vishnu Matloda) सम्मान में दूल्हा सेहरा नहीं लगाता है. इतना ही नहीं त्रेतायुग की इस परंपरा को एक-दो नहीं बल्कि, हजारों परिवार यहां पर मानते हैं. (Groom does not wear in Sehra in Seraj)
देव आदेश पर होती है शादियां: सनातन संस्कृति में शुभ मुहूर्त और शास्त्र के अनुसार ही शादी होती है, लेकिन लोको उत्सव और लोक कारज की परंपरा का निर्वहन बड़ादेव विष्णु मतलोड़ा के सम्मान में सराज क्षेत्र में किया जा रहा है. आमतौर पर इन दिनों शुभ मुहूर्त ना होने की वजह से हिंदू धर्म में शादियां नहीं हो रही हैं, लेकिन बड़ादेव विष्णु मतलोड़ा की 14 हारों यानि सराज में देव आदेश पर शादियां हो रही है. ऐसी ही एक शादी को ईटीवी भारत की टीम ने कवर किया. सराज विधानसभा क्षेत्र की जैन्शला के गोपाल ठाकुर ने भी देव आदेश पर 16, 17 और 18 नंबर को शादी की परंपराओं का निर्वहन करते हुए कांता ठाकुर से विवाह रचाया. गोपाल ठाकुर अपने परिवार में देव आदेश पर शादी रचाने वाले पहले व्यक्ति नहीं बल्कि उनके दादा-पिता और बड़े भाई ने भी इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए शादी रचाई है. (Himachal traditional marriage)
आखिर क्या है ये वरनी शादी: चलिए आपको शादी की इस अनूठी परंपरा के बारे में विस्तार से बताते हैं. देव आदेश के अनुसार होने वाली इस शादी को यहां पर वरनी शादी कहा है. देव आदेश पर जो शादियां होती हैं उनमें देवता शामिल होते हैं और जो शादियां पालकी और सेहरे के साथ होती हैं उसमें देवता शामिल नहीं होते हैं. इस शादी में दूल्हा बिना पालकी के बारात की अगवानी करता है तो दुल्हन भी बारात संग पैदल चलती है. बड़ी बात यह है कि इन शादियों में देवता ही तारीख तय करते हैं और शुभ मुहूर्त भी देवता के द्वारा ही निकाला जाता है. आमतौर पर हिमाचल प्रदेश में इन दिनों शादियां नहीं हो रही है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार अभी शुभ मुहूर्त नहीं है लेकिन गोपाल ठाकुर ने 16-17 और 18 नवंबर को देव आदेश पर शादी रचाई है. (What is Varni Marriage)
देव श्रृंगार माना जाता है सेहरा: देव संस्कृति की इस अनूठी परंपरा के पीछे कई तर्क प्रचलित हैं. एक तर्क यह है कि चूंकि सेहरा देव शृंगार है, इसलिए शादी में दूल्हा आज भी देव के शृंगार तुल्य सेहरे को धारण नहीं करते हैं. परंपरा के पीछे देव समाज का तर्क है कि लोकाचार और स्थानीय परंपराएं शास्त्रों से ऊपर मानी जाती हैं. इसी कारण युगों बाद भी यह परंपरा जीवंत है.