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पहले सूखे ने मारा, अब किसान रेट के आगे हारा, ऐसे में कैसे दोगुनी होगी आय?

मोदी सरकार द्वारा किसानों की आय को दुगनी करने के दावे की बीच किसान किस्मत के हाथ कठपुतली बन गया है. पहले ही लंबे सूखे की मार झेल रहे किसानों की बीन इन दिनों सब्जी मंडी में कम रेट पर बिक रही है.

बीन की फसल लेकर मंडी में पहुंचे किसान

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Published : Jun 16, 2019, 3:04 PM IST

मंडीः पहले ही सूखे ने किसानों की कमर तोड़ दी है, अब रही सही कसर बीन के मंडी में कम रेट बिकने ने पूरी कर दी है. ऐसे में अब किसानों की लागत का पैसा पूरा होना मुश्किल है. मोदी सरकार द्वारा किसानों की आय को दुगनी करने के दावे की बीच किसान किस्मत के हाथ कठपुतली बन गया है. पहले ही लंबे सूखे की मार झेल रहे किसानों की बीन इन दिनों सब्जी मंडी में कम रेट पर बिक रही है.

बीन की फसल लेकर मंडी में पहुंचे किसान

ऐसे में किसानों की लागत का पैसा पूरा होना भी मुश्किल है. करसोग में गर्मियों के सीजन का बीन तैयार होने के बाद चुराग स्थित सब्जी मंडी में बिकने के लिए आ रहा है, लेकिन यहां बीन उम्मीद से काफी कम रेट पर बिकने से किसान निराश है.

शनिवार को करसोग के कई क्षेत्रों से मंडी आए अच्छे बीन की बोली 38 रुपये प्रति किलो पर बंद हो गई. ऐसे में किसान के सामने बीज और मेहनत के पैसे पूरे करने का संकट पैदा हो गया है. कांडा गांव से बीन लेकर पहुंचे परमानन्द का कहना है कि इन दिनों बीन के रेट 60 से 65 रुपये किलो मिलने चाहिए थे, लेकिन मंडी में रेट कम है. उनका मानना है कि जिस हिसाब से मंडी में माल आना चाहिए उस हिसाब से वो भी सूखे के कारण नहीं पहुंच पा रहा है. उनका कहना है कि इस तरह से किसान बहुत बुरी तरह घाटे में जाएंगे.

1 हजार से बोली शुरू 1531 पर हुई बंद

चुराग सब्जी मंडी में 1 हजार प्रति मण शुरू हुई बीन की बोली 1531 रुपये पर बंद हो गई. ऐसे में किसानों का बीन 38 रुपये प्रति किलो बिका. गर्मियों के दिनों में इस भाव बीन बिकने से किसान काफी निराश है. किसानों का कहना है कि बीन के बीज का भाव ही 700 रुपये प्रति किलो है.

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इसके बाद गर्मियों में स्त्रोतों और नालों में पानी सूखने के बाद बहुत कम हो गया है. इससे बड़ी मुश्किल से फसल को खेतों में खड़ा रखना पड़ रहा है और इस काम में पूरे परिवार को अधिक मेहनत करनी पड़ रही है. इसके अलावा मंडी तक बीन पहुंचाने का किराया अलग से चुकाना पड़ रहा है. ऐसे में पूरे प्रोसेस को जोड़ा जाए तो इस बार लागत का पैसा भी पूरा होना मुश्किल है.

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