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अद्भुत हिमाचल: 'किंग ऑफ फोक' हिमाचली नाटी, घाटी के जर्रे-जर्रे में बसता है इसका मधुर संगीत

ईटीवी भारत की खास सीरिज अद्भुत हिमाचल में आज हम आपको नाटी की थाप, लोक नृत्य की कला और देव धुनों पर झूमते हिमाचलियों से रूबरू करवाएंगे.

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कुल्लवी नाटी

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Published : Feb 14, 2020, 11:56 AM IST

Updated : Feb 14, 2020, 12:22 PM IST

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश जहां अपनी विविधता व संस्कृति के लिए देश व दुनिया में प्रसिद्ध है. वहीं, हिमाचल के लोक नृत्य भी किसी से छुपे हुए नहीं है. हिमाचल की नाटी जहां देश के हर मंच पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुकी है तो वहीं जिला कुल्लू की नाटी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति हासिल कर चुकी है.

हिमाचल प्रदेश में 'नाटी' शब्द बहुत प्रचलित है, जिसे लोकगीत और लोकनृत्य के परिप्रेक्ष्य में देखा जाता है. प्रदेश के बहुत से क्षेत्रों में 'नाटी' का मतलब एक ऐसा लोकगीत है जिसमें नृत्य भी किया जाता है, लेकिन कुल्लू क्षेत्र में नाटी का मतलब सिर्फ नाच से ही है.

नाटी शब्द का नाम आते ही आंखों के सामने कुल्लू के परंपरागत गांव का चित्र झिलमिलाने लगता है, जहां लोकवाद्य की तुमलध्वनि के बीच युवक-युवतियां एक विशेष पहरावे में माला बनाकर नाचते हैं.

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कुल्लू के किसी भी परिवार में कोई मांगलिक प्रसंग हो, त्योहार हो या कुल्लू दशहरा ही क्यों न हो, नाटी के बिना सब फीका लगता है. कुल्लवी नाटी मौज मस्ती के लिए नाच-गाना या हुल्लड़बाजी नहीं है, बल्कि यह बड़े अनुशासन के साथ नाचा जाने वाला लोकनृत्य है.

नाटी करते समय पुरुषों का वेश है महीन श्वेत ऊन का चोला, चूड़ीदार पाजामा, सिर पर काली गोल टोपी और उस पर मोनाल की दो चमचमाती कलगियां. गले में हार और कमर गाची से कसी हुई. महिलाएं 'फूल वाले पटटू', चंद्रहार और सिर पर 'डेंगा थीपू' पहनती हैं तो उनकी नखरीली अदा देखते ही बनती है.

कुल्लवी नाटी

कुल्लू की नाटिओं की अगर हम बात करें तो यह नाटियां कुल्लू में शादी समारोह से लेकर देव परंपराओं को निभाने में काफी सार्थक सिद्ध होती है. कुछ नाटिया ऐसी भी है जिससे ग्रामीण घाटी में फैली बुरी शक्तियों को दूर किया जाता है. नाटी करते समय अश्लील जुमलों का भी प्रयोग किया जाता है. जिसका देव समाज में भी बुरा नहीं माना जाता है.

नाटी की थाप

कुल्लू में पांच प्रकार की प्रमुख नटियां होती हैं, जिनमें, बिरशु, ढीली नाटी, लालडी नृत्य, फागली नृत्य सहित अन्य शामिल है. बिरशु नृत्य महिलाएं करती है, यह विशेषकर वैशाख माह की सक्रांति के दौरान मंदिरों में किया जाता है, जिसे जिला कुल्लू में बिरशु भी कहा जाता है.

लालड़ी नृत्य को 'संवाद नृत्य' भी कहा जा सकता है. इसमें लोकगीतों की उन्मुक्त धारा को खुली उड़ान की तुकबंदी का रूप दिया जाता है. कुल्लू जनपद में लालडी गाने वालों की टोलियां (युवतियां) दशहरा मेले के दिनों में रात के समय बारी-बारी प्रत्येक घर में जाकर लालडी नृत्य करती हैं.

वहीं, कुल्लू में हरण नृत्य कुल्लू दशहरा के अंतिम दिन लंका दहन की पूर्व संध्या या 'महल्ला रात्रि' पर महादेव की हेसण देवता के सामने किया जाता है. कुल्लू जिला की नाटी को वर्ष 2016 के जनवरी माह में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में स्थान दिया गया.

प्राचीन काल से चले आ रहे इस लोकनृत्य का प्रचलन अभी भी कम नहीं हुआ है, बल्कि इस क्षेत्र में काम कर रहे लोग नए-नए प्रयोग भी करने लगे हैं. नाटी को बचाने की भी आवश्यकता अनुभव की जा रही है, क्योंकि जहां अनुभवी लोकनर्तक, लोकगायक और लोकवादक लुप्त हो रहे हैं, वहीं इस प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को जिंदा रखने की संजीदा कोशिशें भी नहीं हो रहीं.

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Last Updated : Feb 14, 2020, 12:22 PM IST

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