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हिमाचली संस्कृति में धाम की है अपनी अलग पहचान, PM मोदी भी हैं मुरीद

शादी हो या फिर कोई और शुभ अवसर इन मौकों पर मेहमानों के लिए जो खाना बनता है हिमाचल में उसे धाम कहा जाता है. हिमाचल प्रदेश की संस्कृति में धाम की अपनी ही एक अलग पहचान है. प्रदेश के सभी 12 जिलों की अपनी अलग-अलग धाम हैं. जो मुख्य रूप से पूरे विश्वभर में मशहूर हैं वो हैं मंडयाली और कांगड़ी धाम.

himachali dham
हिमाचली धाम

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Published : Feb 19, 2020, 3:31 PM IST

कांगड़ा: शादी हो या फिर कोई और शुभ अवसर इन मौकों पर मेहमानों के लिए जो खाना बनता है हिमाचल में उसे धाम कहा जाता है. हिमाचल प्रदेश की संस्कृति में धाम की अपनी ही एक अलग पहचान है. प्रदेश के सभी 12 जिलों की अपनी अलग-अलग धाम हैं. जो मुख्य रूप से पूरे विश्वभर में मशहूर हैं वो मंडयाली और कांगड़ी धाम हैं.

हिमाचल में धाम बनाने वाले रसोईये को बोटी कहा जाता है. धाम बनाने के लिए सबसे पहले कई फीट लंबी गहरी चर (गड्ढा) को खोदा जाता है. शादी ब्याह आदि में सभी तरह के पकवान इसी चर में आग पर बनाए जाते हैं. धाम में खाना बनाने के लिए खासकर पीतल के बड़े बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है जिसे बटलोई कहते हैं. जिससे धाम में बनने वाला खाना अधिक स्वादिष्ट हो जाता है.

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जिस तरह से प्रदेश के सभी जिलों में अलग-अलग धामें बनाई जाती हैं, उसी तरह जिलों में भी क्षेत्रवार व्यंजनों में विविधता देखने को मिलती है. व्यंजनों में चावल, कई तरह की दालें, मदरा खट्टा और कढ़ी मुख्य पकवान हैं. धाम को विशेष बनाता है इसे पत्तल पर परोसा जाना.

हिमाचली धाम में सभी पकवान एक क्रम के अनुसार दिए जाते हैं. खाना बनाने से लेकर बांटने का काम बोटी करते हैं. सभी को एक पंक्ति में बिठाकर धाम खिलाई जाती है और सभी के खाना खत्म न करने तक उस पंक्ति से कोई उठ नहीं सकता.

धाम खाते हुए लोग

धाम की परंपरा सदियों से चल रही है. हिमाचल में आज भी धाम पारंपरिक तरीके से बनाई जाती है. हिमाचल में अलग-अलग जिलों में बनने वाली धामों की अपनी खासियत है. वैसे तो सभी जिलों की धामें खासी मशहूर हैं, लेकिन हम आज प्रदेश की तीन विख्यात धामों की बात करेंगे.

कांगड़ी धाम

कांगड़ी धाम में चावल के साथ नौ तरह की दालें और सब्जियां बनाई जाती हैं. कई खाने में चावल के साथ मदरा, राजमाह, चने की दाल, मटर पनीर, माह की दाल, छोलियां और कढ़ी को परोसा जाता है.

पीतल के बर्तनों में बनाया जाता है धाम का खाना

इसके अलावा पालक पनीर, अरहर की दाल, रोंगी आदि भी परोसे जाते हैं. साथ ही सबसे अंत में मीठे चावल या बूंदी का मीठा दिया जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कांगड़ी धाम के काफी मुरीद हैं, वो कई जनसभाओं में इस बात का जिक्र कर चुके हैं.

मंडयाली धाम

पहाड़ी व्यजंनों में मंडयाली धाम की एक अलग ही जगह है. मंडयाली धाम दुनियाभर में प्रसिद्ध है. बिना प्याज व लहसुन के बनाई जाने वाली मंडयाली धाम को खाकर हर कोई संतुष्ट हो जाता है और तारीफ करना नहीं भूलता. मंडयाली धाम पर कई शोध भी चुके हैं और इसे आयुर्वेदिक आहार बताया गया है.

धाम में पत्तलों पर परोसा जाता है खाना

बिना प्याज व लहसुन के तड़के से बनी लजीज मंडयाली धाम में मीठे से लेकर खट्टी दालें शामिल रहती हैं. इसे साधु संत भी खा सकते हैं. टौर के पत्तों से बनी पत्तलों पर मंडयाली धाम को परोसने की रवायत है.

मंडयाली धाम में बदाने का मीठा, सेपू बड़ी, कद्दू का खट्टा, मटर-पनीर, राजमाह, रौंगी-गोभी, चने का खट्टा और सबसे अंत में माश की दाल और कड़ी परोसी जाती है. यह सारा भोजन बड़े-बड़े बर्तनों में बनाया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में चरोटीयां कहते हैं.

धाम बनाते हुए बोटी

पिछले 25 सालों से बोटी का काम करने वाले नरेश शर्मा बताते हैं कि वह मंडयाली धाम देश व विदेश में बना चुके हैं. नरेश शर्मा के अनुसार हिमाचल के शादी समारोहों में बनने वाला खाना काफी स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है. ज्यादातर समारोहों में बिना प्याज और लहसून के स्वादिष्ट खाना बनाया जाता है.

किन्नौरी धाम

भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए किन्नौर जिला में बनने वाली धाम थोड़ी अलग है. किन्नौर की दावत में शराब व मांस का होना हर उत्सव में लाजमी है. किन्नौरी धाम यानि शुकुद (किन्नौर में शादी में बनने वाली खाने को शुकुद कहा जाता है) में किन्नौरी राजमाह, जंगली मशरूम, मटन, खिलाने की प्रथा है.

इसके साथ अंगूरी, राशि व शुदुंग जैसे पेय पिलाये जाते हैं. मासाहारी खाने के साथ किन्नौर की पारंपरिक ओगला, फाफड़ा, कोदरो के चिल्टे ग्रामीणों को खिलाये जाते है.

आज के आधुनिक दौर में लोग पारंपरिक तौर तरीकों से दूर होते जा रहे हैं. लोग खाने के लिए आधुनिक तौर तरीकों को अपना रहे हैं. पत्तल की जगह डिस्पोजल प्लेट्स और गिलास का प्रयोग किया जा रहा है. कई जगह तो धाम का चलन भी कम हो गया है, इसके लिए कुछ लोग स्टैंडिंग बुफे का आयोजन कर रहे हैं. धाम हिमाचल की विरासत है, इसलिए इस सांस्कृतिक परंपरा को सहेज कर रखने की जरूरत है.

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