नूरपुर:हिमाचल प्रदेश देवभूमि है और यहां कई ऐसे मंदिर हैं जो आज तक रहस्य बने हुए हैं या यूं कहें कि उनके इतिहास को लेकर कभी जागरूक करने का प्रयास ही नहीं किया गया. एक ऐसा ही मंदिर है जिला कांगड़ा के अंतर्गत पड़ती ज्वाली विधानसभा में. इस मंदिर को 'बाथू की लड़ी' के नाम से जाना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस शिव मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा उनके अज्ञातवास के दौरान किया गया था. वही, शिवमंदिर के साथ अन्य मंदिरों की श्रृंखला भी है.
इसमें 'बाथू' एक गांव का नाम था वहीं, 'लड़ी' का अभिप्राय है सीढ़ियों से है. किवंदतियों के अनुसार इस स्थान पर आकर पांडवों ने शिव की तपस्या की थी और शिव से वरदान पाया था. दिए गये वरदान के फलस्वरूप उन्हें एक रात में स्वर्ग के लिए सीढ़ियों का निर्माण करना था. कहते हैं उस दिन रात छः महीने की हुई थी, ताकि पांडव एक ही रात में मंदिरों और सीढ़ियों का निर्माण कर सकें.
इस मंदिर निर्माण से कुछ दूरी पर एक तेलिन रहा करती थी जो कोल्हू से तेल निकाला करती थी. वो रात को बार बार उठकर कोल्हू से तेल निकाल रही थी. छः महीने की रात उसको जब बहुत लम्बी लगने लगी तो उसने शोर मचाना शुरू कर दिया कि आखिर रात खत्म क्यूं नहीं हो रही? उस तेलिन का शोर सुन पांडवों ने सीढ़ियों का निर्माण रोक दिया. उस समय स्वर्ग तक पहुंचने में मात्र अढ़ाई पौड़ियों का निर्माण रहना शेष रह गया था. तेलिन का शोर सुन कर पांडव खिन्न हो गये और यह सारी सीढ़ियां भरभरा कर गिर गई. अब इसमें मात्र 65 सीढ़ियां ही शेष बची हैं जो उस कथा को बल प्रदान करती हैं.