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पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम की 138वीं जयंती, स्वतंत्रता सेनानी और लेखक थे 'बुलबुल-ए-पहाड़'

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Published : Jul 11, 2020, 9:54 AM IST

Updated : Jul 11, 2020, 3:04 PM IST

'पहाड़ी गांधी' और 'बुलबुल-ए-पहाड़' के नाम से प्रसिद्व महान स्वतंत्रता सेनानी और लेखक बाबा कांशी राम की आज 138वीं जयंती है. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बाबा कांशी राम को पहाड़ी गांधी की उपाधि दी थी. वहीं, सरोजनी नायडू ने उनके गीत और कविताओं को सुनकर उन्हें भरे मंच से 'बुलबुल-ए-पहाड़' की उपाधि दी थी.

Pahari Gandhi baba Kanshi Ram
Pahari Gandhi baba Kanshi Ram

धर्मशाला: देश को आजाद हुए आज 73 साल बीत चुके हैं. अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की कुर्बानी दी है. इन्हीं सेनानियों में से एक हैं पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम.आज पहाड़ी गांधी बाबा कांशीराम की 138वीं जयंती है.

बाबा कांशीराम का जन्म 11 जुलाई 1882 को कांगड़ा जिला की पंचायत गुरनबाड (पदियाल) में हुआ था. उनके पिता का नाम लखनऊ राम था. बाबा कांशी राम की शादी सात साल की उम्र में हो गई थी. उस वक्त उनकी पत्नी कीो उम्र महज पांच साल थी. कांशी राम अभी 11 साल के ही हुए थे कि उनके पिता का देहांत हो गया.

पिता के देहांत के बाद बाबा कांशी राम पर परिवार की पूरी जिम्मेवारी आ गई. काम की तलाश में वे लाहौर चले गए. वहां कांशी राम गए तो काम-धंधा तलाशने थे, लेकिन उस समय भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन तेज हो गया था और बाबा कांशी राम भी अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में कूद गए. यहां वो लाल हरदयाल, भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह और मौलवी बरकत जैसे स्वतंत्रता सेनानियों से मिले.

बाबा कांशी राम स्वतंत्रता सेनानियों के साथ

संगीत और साहित्य के शौकीन बाबा कांशी राम की मुलाकात लाहौर में उस वक्त के मशहूर देश भक्ति गीत 'पगड़ी संभाल जट्टा' लिखने वाले सूफी अंबा प्रसाद और लाल चंद फलक से हुई, जिसके बाद कांशीराम पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित हो गए.

कांगड़ा भूकंप के दौरान बाबा ने गांव-गांव जाकर की थी लोगों की मदद

साल 1905 में कांगड़ा घाटी भूकंप से भारी तबाही हुई थी. 7.8 की तीव्रता वाले जलजले में करीब 20 हजार लोगों की जान गई थी. वहीं, 50,000 मवेशी भी मारे गए थे. उस वक्त लाला लाजपत राय की कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक टीम लाहौर से कांगड़ा पहुंची था, जिसमें बाबा कांशी राम भी शामिल थे.

कांशी राम ने गांव-गांव जाकर भूकंप से प्रभावित लोगों की मदद की. यहां से उनकी लाजपत राय से नजदीकियां बढ़ीं और वो आजादी की लड़ाई में सक्रिय हो गए.1911 में बाबा कांशी राम दिल्ली दरबार के उस आयोजन को देखने पहुंचे जहां किंग जॉर्ज पंचम को भारत का राजा घोषित किया गया था. इसके बाद कांशी राम ने ब्रिटिश राज के खिलाफ अपनी लेखनी को और धारदार बनाया.

बाबा कांशी राम की जेल यात्रा और साहित्य लेखन

साल 1919 में जब जालियांवाला बाग हत्याकांड हुआ. कांशीराम उस वक्त अमृतसर में थे. यहां ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज बुलंद करने की कसम खाने वाले कांशीराम को 5 मई 1920 को लाला लाजपत राय के साथ दो साल के लिए धर्मशाला जेल में डाल दिया गया.

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इस दौरान उन्होंने कई कविताएं और कहानियां लिखीं. खास बात ये थी कि उनकी सारी रचनाएं पहाड़ी भाषा में थीं. पहाड़ी गांधी बाबा कांशी अपने जीवन में कुल 11 बार जेल गए और अपने जीवन के 9 साल सलाखों के पीछे काटे. जेल के दौरान उन्होंने लिखना जारी रखा. इस दौरान उन्होंने 1 उपन्यास, 508 कविताएं और 8 कहानियां लिखीं.

सरोजनी नायडू ने बाबा कांशी राम को दी 'बुलबुल-ए-पहाड़' की उपाधि

ऊना जिला के दौलतपुर में एक जनसभा चल रही थी. वहां पर सरोजनी नायडू भी आयी थीं. यहां कांशीराम की कविताएं और गीत सुनकर सरोजनी नायडू ने उन्हें 'बुलबुल-ए-पहाड़' कहकर बुलाया था.

आजादी न मिलने तक काले कपड़े धारण करने का प्रण

कांशी राम खुद को देश के लिए समर्पित कर चुके थे. उनका स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ाव इतना गहरा हो चुका था कि साल 1931 में जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सजा की खबर बाबा कांशी राम तक पहुंची तो उन्होंने प्रण लिया कि वो ब्रिटिश राज के खिलाफ अपनी लड़ाई को और धार देंगे. साथ ही ये भी कसम खाई कि जब तक देश आजाद नहीं हो जाता, तब तक वो काले कपड़े पहनेंगे. इसके लिए उन्हें 'काले कपड़ों वाला जनरल' भी कहा गया.

कांशीराम ने अपनी ये कसम मरते दम तक नहीं तोड़ी. 15 अक्टूबर 1943 को अपनी आखिरी सांसें लेते हुए भी कांशीराम के बदन पर काले कपड़े थे और कफन भी काले कपड़े का ही था.

चाचा नेहरू ने कांशी राम को दी थी पहाड़ी गांधी की उपाधि

साल 1937 में जवाहर लाल नेहरू होशियारपुर के गद्दीवाला में एक सभा को संबोधित करने आए थे. यहां मंच से नेहरू ने बाबा कांशीराम को 'पहाड़ी गांधी' कहकर संबोधित किया था. उसके बाद से कांशी राम को पहाड़ी गांधी के नाम से ही जाना गया.

इंदिरा गांधी ने बाबा कांशी राम के नाम पर किया था डाक टिकट का विमोचन

बाबा कांशी राम 15 अक्टूबर 1943 को स्वतंत्रता संग्राम की अमर ज्योति में विलीन हुए. बाबा के सम्मान में 23 अप्रैल 1984 को ज्वालामुखी में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बाबा कांशीराम पर डाक टिकट का विमोचन किया था, लेकिन उनकी यादों को सहेजने के लिए की गई घोषणाओं को आज तक मुकाम नहीं मिल पाया है.

बाबा कांशीराम डाक टिकट

पुश्तैनी घर आज भी खंडहर

4 साल पहले मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने बाबा कांशी राम के घर के जीर्णोद्धार और स्मारक बनाने की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक स्मारक बनाने का काम कागजों तक ही सीमित है. साल 2007 में भाषा एवं संस्कृति विभाग ने बाबा कांशी राम के गांव के पुराने मकान के अधिग्रहण के लिए उनके परिजनों से बात की थी.

हालांकि उनके नाम पर डाडा सीबा में राजकीय महाविद्यालय व वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला का नामकरण जरूर हुआ है, लेकिन उनके पैतृक घर को अभी स्मारक के रूप में विकसीत नहीं किया गया है.

बाबा कांशी राम का पैतृक घर

हांलांकि एसडीएम देहरा धनबीर ठाकुर की नेतृत्व में गठित टीम ने 22 जून 2020 को गुरनबाड़ डाडासीबा में स्मारक बनाने के लिए बाबा कांशी राम के घर की जमीन की निशानदेही की है. इस संबंध में एसडीएम धनवीर ठाकुर देहरा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि बाबा कांशी राम का स्मारक बनाने के लिए निरीक्षण कर इसकी रिपोर्ट भाषा संस्कृति विभाग को भेज दी गई है.

बाबा कांशी राम के पोते विनोद शर्मा ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि स्मारक बनाने के लिए 11 जुलाई 2017 को पूर्व की वीरभद्र सरकार ने घोषणा की थी, लेकिन अभी तक स्मारक बनाने का काम शुरू नहीं हो पाया है. उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से बाबा कांशी के पुराने मकान को जल्द से जल्द स्मारक के रूप में विकसित करने की अपील की है.

Last Updated : Jul 11, 2020, 3:04 PM IST

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