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6 बार हॉकी में खेला नेशनल, अब रोजी-रोटी के लिए मोची का काम कर रहे सुभाष

हमीरपुर के नेशनल लेवल खिलाड़ी 6 बार राष्ट्रीय खेल हॉकी में जूनियर और सीनियर लेवल पर खेल चुके हैं, लेकिन परिवार का भरण-पोषण करने के लिए सुभाष पुश्तैनी काम सभालते है. नेशनल खेलने के बाद भी सुभाष को सरकार की ओर से सहायता प्रदान नहीं करवाई जा रही है. समाजिक संस्था पीएम मादी को भी पत्र लिख चुकी है, लेकिन कोई कार्रवाई नही की गई.

subhash chand of hamirpur played 6 times in national hockey
subhash chand of hamirpur played 6 times in national hockey

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Published : Mar 14, 2020, 7:11 PM IST

Updated : Mar 14, 2020, 8:02 PM IST

हमीरपुर: राष्ट्रीय खेल हॉकी ने देश व प्रदेश में खेल से जुड़े खिलाड़ियों को बिसार दिया है. हालात यह हैं कि एक ओर राष्ट्रीय खेल हॉकी को खेलने वाले खिलाड़ी नहीं मिल रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी में नाम चमकाने वाले खिलाड़ी अंधेरे में गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं.

इसका जीता-जागता उदाहरण हिमाचल प्रदेश के जिला हमीरपुर में मौजूद है. हमीरपुर में हॉकी के एक राष्ट्रीय खिलाड़ी है. इस खिलाड़ी ने नेशनल खेलने के लिए पैड उधार पर लेकर गोलकीपिंग की है और आज यह एक गुमनाम की जिंदगी जी रहा है. राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी सुभाष चंद हमीरपुर के टाउन हाल के सामने एक मोची की दुकान करते है. वह सालों से जूते सिलकर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं.

आईटीआई में हासिल की डिग्री

वर्ष 1984 में सुभाष चंद ने आईटीआई की पढ़ाई पूरी की थी, लेकिन फिर भी उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिली. इसके बाद सुभाष चंद को परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पुश्तैनी काम (मोची की दुकान) ही संभालना पड़ा. सुभाष के पास मोची की दुकान ही रोजगार का साधन है. सुभाष चंद जूनियर और सीनियर लेवल पर 6 बार नेशनल में खेल चुके हैं.

वीडियो.

विभिन्न उपलब्धियां

सुभाष चंद बताते हैं कि 1977 में उन्होंने पहली बार जूनियर लेवल पर नेशनल में हिस्सा लिया था. इसके बाद वह 3 बार नेशनल लेवल पर खेले. वहीं, उन्होंने 2 बार इंटर यूनिवर्सिटी और 2 बार सीनियर लेवल पर नेशनल में खेला है. सुभाष ने कहा कि पहली बार नेशनल खेलने पर उनके पास पैड तक नहीं थे. उन्होंने स्कूल के छात्र-छात्राओं से पैड उधार पर लेकर पहला नेशनल खेला था.

मोची का काम करते हुए सुभाष चंद..

सुभाष ने कहा कि उस वक्त खेलों के लिए इतनी भी सुविधाएं नहीं थी और न ही इतना बजट था. उन्होंने बताया कि कभी-कभी उनके पास हॉकी स्टिक भी नहीं होती थी और वह सीनियर की स्टिक उधार पर मांग कर प्रेक्टिस करते थे. 6 बार नेशनल खेलने के बाद भी सुभाष को सरकार से कोई सहायता नहीं मिल रही है.

बच्चों को रखा खेलों से दूर

सुभाष चंद के परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा और बेटी हैं. बेटी एमटेक करने के बाद निजी कंपनी में नौकरी करती है. बेटा ने भी होटल टूरिज्म में बीएससी की है और वह भी निजी कंपनी में नौकरी करता है. सुभाष के दोनों बच्चें खेलों में जाना चाहते थे, लेकिन सुभाष ने हालात देखते हुए बच्चों को खेलों से दूर रखना ही बेहतर समझा.

पीएम और सीएम को भी लिखा पत्र

हैरानी की बात यह है कि चंबा जिला की एक सामाजिक संस्था ने वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक पत्र लिखकर पीएम से सुभाष चंद की सुध लेने की मांग उठाई थी, लेकिन आज तक उस पत्र का कोई जवाब नहीं आया है. वहीं, तत्कालीन प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को भी चंबा जिला की एक संस्था ने पत्र लिखा था,लेकिन सरकार की तरफ से उसका भी कोई जवाब नहीं मिला.

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Last Updated : Mar 14, 2020, 8:02 PM IST

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