हमीरपुरः संसदीय क्षेत्र हमीरपुर के घुमारवीं विधानसभा क्षेत्र की कोठी पंचायत के लोगों में भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ खासा रोष देखने को मिल रहा है. इस गांव को एक साल में ही प्रदेश और केंद्र सरकार की दो बड़ी योजनाओं के तहत गोद लिया गया था. पंचायत में इन दो बड़ी योजनाओं के तहत विकास होना तो दूर. जो मूलभूत सुविधाएं हैं वह भी सही ढंग से विकसित नहीं हो पाई है. घुमारवीं उप मंडल मुख्यालय से महज 5 से 6 किलोमीटर दूर स्थित यह पंचायत अभी भी विकास का रास्ता खोज रही है.
बता दें कि इस पंचायत को वर्ष 2017 में पूर्व कांग्रेस प्रदेश सरकार के कार्यकाल में मुख्यमंत्री ग्राम आदर्श योजना के तहत गोद लिया गया और कुछ महीने के बाद इसी वर्ष सांसद ग्राम आदर्श योजना के तहत इस गांव को गोद लिया गया. हैरत तो इस बात की है कि मुख्यमंत्री ग्राम आदर्श योजना के तहत इस गांव को मिले दस लाख भी खर्च नहीं हो सके. योजना के तहत मिली इस राशि को अब सांसद ग्राम आदर्श योजना में मर्ज कर दिया गया है, लेकिन आचार संहिता से ठीक 10 दिन पहले अप्रूव हुई ग्रामीण विकास योजना धरातल पर नहीं उतर पाई है.
स्थानीय लोगों की माने तो दोनों ही योजनाओं में उनकी अनदेखी हुई है और प्रदेश की पूर्व कांग्रेस सरकार ने उनके अनदेखी की है. वहीं, केंद्र की भाजपा सरकार ने भी गांव को गोद लेने के बावजूद इसकी अनदेखी की है. लोगों में दोनों ही राजनीतिक दलों के खिलाफ रोष है.
आपको बता दें कि मुख्यमंत्री ग्राम आदर्श योजना के तहत गांव के चयन का जिम्मा विधायक पर होता है. तत्कालीन विधायक राजेश धर्मानी इस गांव को योजना के तहत लिया था, लेकिन पूरा बजट भी इस योजना का खर्च नहीं हो सका. फलस्वरूप पिछले विधानसभा चुनाव में उनको हार का भी सामना करना पड़ा और यहां से भी लोगों ने उन्हें गोद से उतार दिया.
अब यही हाल सांसद ग्राम आदर्श योजना का भी हैं. लोगों में सांसद अनुराग ठाकुर के खिलाफ भी गुस्सा है, हालांकि कुछ लोग यह बोलते जरूर नजर आ रहे हैं कि विकास तो कुछ नहीं हुआ है, लेकिन अनुराग नहीं, हम तो मोदी के नाम पर भाजपा को ही वोट देंगे, लेकिन ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि सांसद अनुराग ठाकुर को यहां के लोग गोद में बिठाते हैं या गोद से उतार देते हैं.
लोगों का यह भी मानना है कि दोनों ही योजनाओं के तहत ग्रामीणों की आंखों में धूल झोंकने का काम हुआ है, यदि इन योजनाओं के तहत बजट ही नहीं मिलता है तो फिर ढिंढोरा पीटने की क्या जरूरत है. पंचायत प्रतिनिधियों का तर्क है कि उन्हें और अधिकारियों को यह समझने में ही करीब डेढ़ बरस लगे कि इस पंचायत को गोद लिया है अथवा गांव को गोद लिया गया है.
पहले इस गांव को ग्रामीण विकास योजना के तहत तैयार किया गया गया. इसके बाद जब इसे रिजेक्ट कर दिया गया तो जिला प्रशासन के निर्देशों पर फिर से पूरे पंचायत की कार्य योजना तैयार की गई. इस कार्य योजना को आचार संहिता लगने से 10 दिन पहले मंजूर किया गया. योजना को मंजूरी तो मिल, गई लेकिन धरातल पर एक भी पैसा योजना के तहत खर्च नहीं हो सका है.