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क्यों अधीर हो रहे सुधीर शर्मा... क्या लोकसभा चुनाव से पहले आर-पार के मूड में हैं धर्मशाला के एमएलए ? - अयोध्या राम मंदिर

Dharamshala MLA Sudhir Sharma on Ram Mandir: हिमाचल में कांग्रेस के विधायक और पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा ने बीते दो दिन में ऐसे बयान दिए हैं. जो सीधे सीधे कांग्रेस सरकार पर चुटकी और पार्टी आलाकमान को कटघरे में खड़ा करते हैं. सुधीर शर्मा ने ऐसा क्या कहा है और चुनाव से पहले इस तरह के बयान कांग्रेस के लिए क्यों मुश्किल बन सकते हैं ? जानने के लिए पढ़ें...

Sudhir Sharma
Sudhir Sharma

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jan 16, 2024, 5:10 PM IST

धर्मशाला से कांग्रेस विधायक सुधीर शर्मा

धर्मशाला/सुजानपुर: लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और हिमाचल में भी सियासी दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुटी हुई है. कांग्रेस भी रणनीति पर मंथन कर रही है. लेकिन कांग्रेस को सरकार और संगठन तक के खिलाफ मोर्चा खोलते अपनों पर भी चिंतन करना होगा. वरना पहले भी इसका खामियाजा पार्टी भुगत चुकी है और आगे भी वही हश्र हो सकता है. बीते दो दिनों में झंडा बुलंद करने वाले विधायक सुधीर शर्मा आलाकमान तक के फैसले पर सवाल उठा चुके हैं. ये भले एक विधायक के रूप में अच्छी नसीहत हो लेकिन पार्टी लाइन को लांघकर दिए गए बयान पार्टी की पुरानी कलह कहानी को फिर से तरोताजा कर रहे हैं.

सुधीर शर्मा ने क्या कहा- धर्मशाला से विधायक सुधीर शर्मा शनिवार 14 जनवरी को मीडिया से बातचीत के दौरान साफ-साफ कहा कि मैं 22 जनवरी को अयोध्या जाउंगा. हालांकि उन्हें निमंत्रण नहीं मिला है लेकिन उन्होंने कहा कि निमंत्रण मिलेगा तो अयोध्या में होने वाल राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जरूर शामिल होंगे. सोनिया गांधी, खड़गे समेत कांग्रेस आलाकमान के अयोध्या ना जाने के फैसले पर सुधीर शर्मा ने सीधे-सीधे सवाल उठाए हैं.

"राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में ना जाने के फैसले पर कांग्रेस हाइकमान को चिंतन मंथन करना चाहिए कि क्या सोचकर ऐसा निर्णय लिया गया. व्यक्तिगत रूप से किसी पर कोई रोक नहीं है. हम लोग हिंदू हैं और हमारी आस्था भगवान राम में है. इस आस्था के चलते हमारे विश्वास और भक्ति भाव के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता." - सुधीर शर्मा, कांग्रेस विधायक

दरअसल इन दिनों अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तैयारियां चल रही हैं और देशभर में मंदिर ट्रस्ट की ओर से निमंत्रण बांटे जा रहे हैं. कांग्रेस आलाकमान ने अयोध्या ना जाने की बात कह चुका है. 14 जनवरी को धर्मशाला में ही पत्रकारों ने सुधीर शर्मा को राम मंदिर पर हो रही बयानबाजी को लेकर सवाल किया था. जिसपर सुधीर शर्मा ने राम मंदिर को आस्था का विषय बताते हुए साफ कह दिया कि अयोध्या जाने का फैसला किसी भी पार्टी के फैसले से ऊपर है और इसपर सियासी टिप्पणी करने वालों को भी उन्होंने दो टूक जवाब दे दिया.

"राम मंदिर पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, 550 वर्ष के बाद ये मौका आया है. इसपर टीका टिप्पणी करने की बजाय जिसे नहीं जाना है वो ना जाए लेकिन चुप रहे और जो जाना चाहता है उसपर कोई रोक ना हो. चाहे कोई पार्टी कुछ भी फैसला ले." - सुधीर शर्मा, कांग्रेस विधायक

सुजानपुर पहुंचकर राजेंद्र राणा की तारीफ- अयोध्या ना जाने के आलाकमान के फैसले पर सवाल उठाने के 24 घंटे बाद सुधीर शर्मा 15 जनवरी को सुजानपुर पहुंचे. जहां सेना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कांग्रेस विधायक राजेंद्र राणा की तारीफ में ऐसे कसीदे पढ़े, जो कहीं पर निगाहें और कहीं पर निशाना लगाने वाले थे.

सुधीर शर्मा और राजेंद्र राणा

"राजेंद्र राणा विधायक हैं लेकिन किसी मंत्री से कम नहीं हैं. कई लोग मंत्री बनने की उम्मीद कर रहे हैं लेकिन विधायक रहते हुए राजेंद्र राणा वो कर गुजरते हैं जो कई मंत्री भी नहीं कर पाते. ये उनका कद और सोच है जो उन्हें बड़ा बनाती है. कुर्सी से व्यक्ति बड़ा नहीं होता, व्यक्ति कुर्सी की शोभा बढ़ाता है. ऐसा व्यक्ति सुजानपुर को मिला है." -सुधीर शर्मा, कांग्रेस विधायक

सुधीर शर्मा ने इस कार्यक्रम में मौजूद रहे विधायक राजेंद्र राणा के बारे में कहा कि "वो पहले निर्दलीय विधायक बने, फिर कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा पहुंचे, फिर लोकसभा चुनाव लड़ा और अब फिर से विधायक बने हैं. एक ऐसा व्यक्ति जो किसी भी बड़ी से बड़ी ताकत से टकराने से नहीं डरता. ऐसा विधायक बहुत कम चुनाव क्षेत्रों को मिलता है."

दोनों विधायक मंत्री की रेस में थे लेकिन...- दरअसल सुजानपुर से कांग्रेस विधायक राजेंद्र राणा और धर्मशाला से विधायक सुधीर शर्मा मंत्री बनने की रेस में रहे हैं लेकिन सुखविंदर सुक्खू ने उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं दी थी. पिछले महीने हुए कैबिनेट विस्तार के वक्त भी दोनों का नाम रेस में शामिल था लेकिन दोनों विधायक खाली हाथ रह गए. सियासी जानकार बताते हैं कि दोनों नेता सरकार के खिलाफ खुलकर बोलते रहे हैं, जिसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.

चुनाव से पहले अपने बिगाड़ सकते हैं खेल- प्रदेश में कांग्रेस सरकार को बने एक साल का वक्त हो गया है लेकिन इस कार्यकाल में कई बार इस तरह का अंदरूनी संग्राम छिड़ गया है. कभी दो मंत्री आमने-सामने आ जाते हैं तो कभी अपनी ढफली अपना राग गाने लगते हैं. खुद सुधीर शर्मा पिछले महीने हुए कैबिनेट विस्तार के बाद सोशल मीडिया पर संस्कृत की एक लाइन लिखकर अपना रोष जाहिर कर चुके हैं. उनके 9 शब्दों के पोस्ट ने खूब सुर्खियां बटोरी थी. जिसमें उन्होंने लिखा था युद्ध निरंतर भवति, दैवेन सह, कालेन सह, अस्माभि: सह ।, जिसका मतलब है कि लड़ाई जारी है भाग्य से, वक्त से, अपने आप से. उस वक्त भी इस पोस्ट के कई मायने निकाले गए थे.

वहीं राजेंद्र राणा भी सोशल मीडिया के जरिये मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू को युवाओं से किए वादे याद दिला चुके हैं. एक साल तक मंत्रीमंडल विस्तार ना होने पर भी राजेंद्र राणा ने सवाल उठाए थे. इसी तरह कैबिनेट मंत्री विक्रमादित्य सिंह से लेकर प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह तक सरकार-संगठन में तालमेल, अयोध्या जाने समेत कई मुद्दों पर झंडा बुलंद करते रहें है.

वरिष्ठ पत्रकार ओपी ठाकुर के अनुसार सुधीर शर्मा और राजेन्द्र राणा अपनी-अपनी ताकत की वजह से मंत्री बनने की रेस में थे. कैबिनेट मंत्री न बनाये जाने से जाहिर है उनकी और समर्थकों की भावनाओं को भी ठेस पहुंची है. चर्चा है भी सुनने को मिलती है कि सुधीर शर्मा भाजपा को तरफ झुक सकते हैं. राजेन्द्र राणा भी राजनीति में संभावनाओं के खेल की बात करते आये हैं. ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले नए समीकरणों से इनकार नहीं किया जा सकता. सुधीर व राणा की नाराजगी को इसी संदर्भ में देखा जा सकता है.

क्यों अधीर हो रहे हैं सुधीर ?

हिमाचल में 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में चारों खाने चित हुई कांग्रेस ने 2022 में प्रदेश की सत्ता में वापसी की थी. जिसके बाद लोकसभा के रण में सरकार रहते उतरना फायदा पहुंचा सकता है लेकिन कांग्रेस की राह इतनी भी आसान नहीं है. सरकार के वादे और दावों, मोदी फैक्टर से अलग पार्टी के अपने भी मुश्किलें बढ़ा रहे हैं. वैसे ये कांग्रेस के लिए नया नहीं है. इस तरह की अंतर्कलह या धड़ेबंदी कांग्रेस में मानो रवायत है और पार्टी भी जानती है कि इसका फायदा तो बिल्कुल नहीं होने वाला, हालांकि नुकसान की पूरी गारंटी है. ऐसे में हिमाचल में कांग्रेस के सामने विपक्ष से लड़ने से ज्यादा चुनौती अपनों को साथ लेकर चलने की है.

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