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हमीरपुर संसदीय सीट पर दशकों से राजपूत संभाल रहे सत्ता की कुर्सी, जानिए यहां क्यों अहम है जातीय समीकरण

इस बार भी हमीरपुर में ठाकुर VS ठाकुर जंग देखने को मिलेगी. लोकसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाने वाले भाजपा प्रत्याशी अनुराग ठाकुर के सामने कांग्रेस के रामलाल ठाकुर होंगे. देखना ये बाकि है कि इस बार किस ठाकुर को जनता सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाती है.

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Published : Apr 10, 2019, 8:01 PM IST

हमीरपुरः हिमाचल की राजनीति में राजपूतों का दबदबा किस कदर रहा है इसका अंदाजा हमीरपुर संसदीय सीट से लगाया जा सकता है. इस सीट पर 1988 से राजपूतों का ही दबदबा है. जहां एक ओर भाजपा और कांग्रेस ने 1988 के बाद हुए लोकसभा चुनावों और उपचुनावों में राजपूत उम्मीदवारों पर ही विश्वास दिखाया है. वहीं, दूसरी ओर राजपूत मतदाताओं ने ही हर बार सत्ता का फैसला भी किया है.

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17 विधानसभा क्षेत्रों वाले हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में जातीय समीकरण भी अहम है. हमीरपुर संसदीय सीट में कुल 13 लाख से अधिक मतदाता है, इसमें से 5 लाख से अधिक राजपूत वोट बैंक है. यही कारण है कि दशकों से दोनों बड़ी पार्टियां राजपूत मतदाताओं पर विश्वास दिखाती आ रही है. हालांकि लंबे अरसे से भाजपा का इस सीट पर कब्जा है.

कभी कांग्रेस के प्रत्याशी नारायण चंद पराशर के पास रही हमीरपुर संसदीय सीट 3 दशक से अब भाजपा का गढ़ बन गई है. उनके बाद कांग्रेस के एक राजपूत प्रत्याशी मेजर जनरल विक्रम सिंह ने ही यहां पर कांग्रेस को वर्ष 1996 में जीत दिलाई थी. उसके बाद से भाजपा यहां पर लगातार 7 बार जीत दर्ज कर चुकी है. वर्ष 1998 के बाद लगातार 3 बार सुरेश चंदेल सांसद बने तो वहीं 2007 के बाद पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल और उनके बेटे अनुराग ठाकुर का इस सीट पर अधिपत्य है.

जानिए क्या हैं जातीय समीकरण

इस बार भी हमीरपुर में ठाकुर VS ठाकुर जंग देखने को मिलेगी. लोकसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाने वाले भाजपा प्रत्याशी अनुराग ठाकुर के सामने कांग्रेस के रामलाल ठाकुर होंगे. देखना ये बाकि है कि इस बार किस ठाकुर को जनता सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाती है.

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