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बिलासपुर अस्पताल में मनाया गया अंतरराष्ट्रीय नर्सिंग-डे, फ्लोरेंस नाइटिंगेल को किया गया याद

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Published : May 12, 2021, 4:21 PM IST

बिलासपुर अस्पताल की नर्सिंग अधीक्षक शिष्ठा गौतम की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में अस्पताल की मैट्रन, वार्ड सिस्टर व स्टॉफ नर्सों ने फ्लोरेंस नाइटिंगेल को याद किया. नर्सिंग अधीक्षक शिष्ठा गौतम ने बताया कि आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय नर्सिंग-डे के रूप में मनाया जाता है. कोरोना के कारण इस बार सूक्ष्म कार्यक्रम आयोजित किया गया. 12 से 18 मई तक नर्सिंग सप्ताह मनाया जाएगा.

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फोटो.

बिलासपुर: क्षेत्रीय अस्पताल बिलासपुर में बुधवार को अंतरराष्ट्रीय नर्सिंग-डे मनाया गया. नर्सिंग अधीक्षक के कक्ष में आयोजित छोटे से कार्यक्रम के दौरान आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक फ्लोरेंस नाइटिंगेल की तस्वीर को पुष्पांजलि दी गई.

बिलासपुर अस्पताल की नर्सिंग अधीक्षक शिष्ठा गौतम की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में अस्पताल की मैट्रन, वार्ड सिस्टर व स्टॉफ नर्सों ने फ्लोरेंस नाइटिंगेल को याद किया. नर्सिंग अधीक्षक शिष्ठा गौतम ने बताया कि आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय नर्सिंग-डे के रूप में मनाया जाता है. कोरोना के कारण इस बार सूक्ष्म कार्यक्रम आयोजित किया गया. 12 से 18 मई तक नर्सिंग सप्ताह मनाया जाएगा. कोरोना काल में किसी भी प्रकार के समारोह का आयोजन नहीं किया जा रहा है. इसी के चलते 18 मई को फ्लोरेंस नाइटिंगेल की तस्वीर पर पुष्पांजलि देकर इसका समापन किया जाएगा.

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पूरी निष्ठा से ड्यूटी कर रहा नर्सिंग स्टाफ

शिष्ठा गौतम ने कहा कि कोरोना काल में नर्सिंग प्रोफेशन से जुड़ी महिलाएं परिवार की परवाह किए बिना अपने काम को पूरी निष्ठा व ईमानदारी से कर रही हैं. इस अवसर पर मैट्रन शकुंतला कौंडल, उर्मिल चैहान, वार्ड सिस्टर विद्या शर्मा, रिता शर्मा, सुरमलता, वीना मेहता, नीलम शर्मा व कुसुम लता समेत नर्सिंग स्टाफ उपस्थित रहा.

कौन थीं फ्लोरेंस नाइटिंगेल
आज इंटरनेशनल नर्स डे है. इस दिन को फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन की याद में मनाया जाता है. नर्सिंग को एक सम्मानजनक पेशा बनाने का श्रेय फ्लोरेंस नाइटिंगेल को ही जाता है. 12 मई 1820 को इटली के फ्लोरेंस में नाइटिंगेल का जन्म हुआ था.

क्रीमिया युद्ध के दौरान उन्होंने घायल और बीमार सैनिकों की देखभाल में दिन-रात एक कर दिया. वे रात में भी सैनिकों की सेवा में लगी रहती थीं. इस दौरान हाथ में लालटेन लेकर वह मरीजों को देखने जाती थीं, इसी कारण सैनिक उन्हें 'लेडी विद द लैंप' कहने लगे. आज भी पूरी दुनिया उन्हें इसी नाम से जानती है.

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