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राजधानी शिमला में वेस्ट बोतलों के ढक्कन से बनी 'ग्रेट वॉल' के दीदार के लिए पहुंच रहे देश-विदेश के सैलानी - Himachal Pradesh News

पर्यावरण के संरक्षण की अनूठी मिसाल पेश करती ग्रेट वॉल ऑफ शिमला को करीब 5 लाख वेस्ट बोतलों के ढक्कन और कार्बन मुक्त रीसाइकल्ड प्लास्टिक का उपयोग करके बनाया गया है. इस दीवार की लंबाई 275 फीट और ऊंचाई 15 फीट है. इसे बनाने में करीब 4 महीने का समय लगा था. कुछ ही दिन पहले इस वॉल का अनवारण हिमाचल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने किया था. अब इसके दीदार के लिए देश-विदेश के सैलानी पहुंच रहे हैं.

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फोटो.

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Published : Nov 5, 2021, 5:08 PM IST

Updated : Nov 5, 2021, 5:41 PM IST

शिमला: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में पर्यावरण संरक्षण के लिए बनाई गई ग्रेट वॉल ऑफ शिमला के दीदार के लिए स्थानीय लोगों के अलावा, देश-विदेश के पर्यटकों में खासा उत्साह है. करीब 7 दिन पहले बन कर तैयार हुई दीवार के देखने लिए सैलानी काफी संख्या में शिमला के उपनगर पहुंच रहे हैं. अक्सर प्लास्टिक की बोतलों को कबाड़ समझ कर फेंक दिया जाता है और इसका दोबारा इस्तेमाल भी नहीं किया जाता है, लेकिन शिमला के एक निजी होटल ने वेस्ट बोतलों के ढक्कनों का इस्तेमाल कर हिमाचली संस्कृति को उकेर दिया है.

राजधानी शिमला में पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए शिमला में एक निजी होटल ऑरचिड ने अनूठी पहल की है. कचरे में पड़ी वेस्ट बोतलों के ढक्कन से एक पूरी दीवार पर हिमाचली संस्कृति को उकेरा गया है. 5 लाख प्लास्टिक की बोतलों के ढक्कन और कार्बन मुक्त रीसाइकल्ड प्लास्टिक का उपयोग करके 275 फीट लंबा और 15 फीट ऊंचाई का सबसे बड़ा भित्ति चित्र बनाया गया है.

ग्रेट वॉल ऑफ शिमला.

इस भित्ति चित्र को होटल के स्टाफ, स्कूली बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों और शिमलावासियों द्वारा बनाया गया है. इसे बनाने में करीब चार महीने लगे हैं और 35 लोगों ने बनाया है. इस दीवार को बनाने के लिए बोतलों के ढक्कन शिमला से ही नहीं बाहर से भी लाए गए हैं.

कामथ ग्रूप ने देश में अपने सभी होटलों और कबाड़ियों के अलावा शहर के अन्य होटलों से ये ढक्कन एकत्रित किए और उसे दीवार पर लगाया गया, जिसमें हिमाचल की संस्कृति को दर्शाया गया है. ये वॉल लोगों के साथ ही पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है.

वेस्ट बोतलों के ढक्कन से दीवार तैयार करते युवा.

होटल का दावा है कि यह एशिया की सबसे बड़ी दीवार है, जिस पर इस तरह की बोतल के ढक्कन से चित्रण किया गया है. इस तरह की वॉल कहीं नही बनाई गई है. बोतल के ढक्कनों से दीवार पर हिमाचली संस्कृति देखने को मिल रही है. दीवार पर नाटी लगाते हुए पहाड़ी लोगों को दर्शाया गया है. इसके अलावा भेड़ बकरी चराते हुए चरवाहे और मंदिरों को दर्शाया गया है.

ऑरचिड होटल ग्रूप के चेयरमैन डॉ. विथल वेंकटेश कामथ ने कहा कि ये दीवार रीसाइकल द्वारा निर्मित एशिया की सबसे बड़ी वॉल है . इसे बनाने में करीब चार महीने लगे हैं. उन्होंने बताया कि इस कार्य में होटल के स्टाफ के अलावा शहर के आम लोगों और स्कूली बच्चों ने सहयोग किया है और वेस्ट कलेक्शन में बढ़ चढ़कर युवाओं ने हिस्सा लिया. जिससे युवा वर्ग में पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता बढ़ती है. इस वॉल को तैयार करने में शिमला होटल एसोसिएशन ने भी सहयोग दिया है.

दीवार बनाने में इस्तेमाल किया जाने वाला ढक्कन.

उन्होंने बताया कि कामथ ग्रूप के होटलों में न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दिया जाता है बल्कि वेस्ट चीजों के दोबारा इस्तेमाल को लेकर भी हमेशा विभिन्न कार्यक्रम किए जाते हैं. जिससे न सिर्फ वेस्ट बोतलों, डिब्बों, प्लास्टिक पैकेट जैसी चीजों को इस्तेमाल किया जाता है, बल्कि लोगों को इस क्षेत्र में रोजगार भी उपलब्ध कराया जाता है. उन्होंने कहा कि उनके पास तीन हजार के करीब कर्मी काम करते हैं और उन्हें भी पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूक किया जा रहा है.

शिमला के उपनगर में कामथ ग्रूप द्वारा ऑरचिड होटल बनाया गया है. ये होटल बाईपास भट्टा कुफर में है और यहां होटल के सामने वाली दीवार काफी समय से खाली पड़ी थी, जिस पर पर्यावरण का संदेश देने के लिए बेकार बोतलों के ढक्कन का प्रयोग कर कलाकृतियां बनाई गई हैं. यही नहीं होटल द्वारा लोगों को पर्यावरण को लेकर जागरूक करने का काम भी किया जा रहा है. साथ ही, ये दीवार स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गई है. पर्यटक भी इस दीवार को देखने को पहुंच रहे हैं.

दीवार पर उकेरी गई हिमाचल की लोक संस्कृति.

आपको बता दें कि यह दीवार 275 फीट लंबी और 15 फीट ऊंची है. इस दीवार का अनावरण 28 अक्टूबर को प्रदेश के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने किया था. पर्यावरण संरक्षण के लिए उठाए गए इस तरह के कदम की सराहना करते हुए राज्यपाल ने कहा था कि पर्यावरण संरक्षण भारतीय संस्कृति में मूलभूत संस्कारों में है और हम भारतीय पेड़-पौधों और प्रकृति की पूजा करते हैं. इस प्रकार के पर्यावरण संरक्षण की कोशिश से लोगों में एवेयरनेस पैदा होती है और हमें प्रकृति संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए.

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Last Updated : Nov 5, 2021, 5:41 PM IST

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