शिमला: हिमाचल प्रदेश के छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह का आज सुबह लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है. वीरभद्र सिंह के निधन से प्रदेश में शोक की लहर है, समर्थक मायूस हैं. वीरभद्र सिंह 87 साल के थे. वीरभद्र सिंह 30 अप्रैल से आईजीएमसी में भर्ती थे.
हिमाचल की राजनीति की चर्चा वीरभद्र सिंह के बिना अधूरी है. कहा जाता है कि प्रदेश की नींव हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार ने रखी और उस पर वीरभद्र सिंह ने विकास का मजबूत ढांचा खड़ा किया है. छह बार किसी राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालना अपने आप में बड़ी बात है. वीरभद्र सिंह नौ बार विधायक रहे थे. इसके साथ ही वह पांच बार सांसद भी चुने गए थे. उन्होंने छह बार सीएम के रूप में हिमाचल प्रदेश की बागडोर भी संभाली थी. वीरभद्र सिंह वर्तमान में सोलन के अर्की विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे.
वीरभद्र सिंह का जन्म 23 जून 1934 को शिमला जिले के सराहन में हुआ था. उनके पिता का नाम राजा पदम सिंह था. बुशहर रियासत के इस राजा ने आरंभिक स्कूली शिक्षा शिमला के विख्यात बिशप कॉटन स्कूल से की. उसके बाद दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से बीए (आनर्स) की डिग्री हासिल की.
वीरभद्र सिंह पहली बार 1983 से 1985, दूसरी बार 1985 से 1990, तीसरी बार 1993 से 1998, चौथी बार 1998 में, फिर पांचवी बार 2003 से 2007 और 2012 से 2017 के बीच राज्य के मुख्यमंत्री रहे. वीरभद्र सिंह सांसद, केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री समेत कई पदों अहम पदों पर रह चुके हैं. लाल बहादुर शास्त्री जी की प्रेरणा से राजनीति में आए वीरभद्र सिंह ने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव के साथ काम किया है. अटल बिहारी वाजपेयी से भी उनके अच्छे संबंध रहे हैं.
लाल बहादुर शास्त्री की सलाह पर 1962 के लोकसभा चुनाव में खड़े हो गए. महासू सीट से उन्होंने चुनाव जीता और तीसरी लोकसभा में पहली बार सांसद बने. अगला चुनाव भी वीरभद्र सिंह ने महासू से ही जीता. फिर 1971 के लोकसभा चुनाव में भी वे विजयी हुए. यही नहीं, वीरभद्र सिंह सातवीं लोकसभा में भी सदस्य थे. उन्होंने 1980 का लोकसभा चुनाव जीता. अंतिम लोकसभा चुनाव उन्होंने मंडी सीट से वर्ष 2009 में जीता और केंद्रीय इस्पात मंत्री बने. इस तरह वीरभद्र सिंह पांच बार सांसद रहे.
वे पहली बार केंद्रीय कैबिनेट में वर्ष 1976 में पर्यटन व नागरिक उड्डयन मंत्री बने. फिर 1982 में उद्योग राज्यमंत्री का पदभार संभाला. वर्ष 2009 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद वे केंद्र में इस्पात मंत्री बने. बाद में उन्हें केंद्रीय सूक्ष्म, लघु व मध्यम इंटरप्राइजिज मंत्री बनाया गया था.
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