शिमला: हिमाचल प्रदेश में लगातार गिरता उत्पादन और बढ़ती बीमारियां कृषि-बागवानी क्षेत्र की जटिलताओं को और बढ़ा रही हैं जिससे लाखों किसानों का खेती से मोह भंग हो रहा है. प्रदेश में करीब 9 लाख 61 हजार किसान हैं. प्राकृतिक खेती के कार्यकारी अधिकारी डॉक्टर राजेश्वर चंदेल का कहना है कि इस परिस्थिति से किसानों को निकालने के लिए हिमाचल सरकार ने प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना (natural farming khushal kisan scheme) की शुरुआत है.
डॉक्टर राजेश्वर चंदेल का कहना है कि प्राकृतिक खेती से किसान-बागवानों को सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं. अब तक प्रदेशभर में 1,73,353 किसानों को प्रशिक्षित किया गया है, जिनमें से 1,68,465 किसान परिवारों ने 1 लाख बीघा (9,388 हैक्टेयर) से ज्यादा भूमि पर इस खेती विधि को खेती-बागवानी में अपनाया. कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार 'प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान' योजना प्रदेश की 3,615 में से 3,581 पंचायतों तक पहुंच चुकी है. सेब बागवानी के उपर किए गए अध्ययन सेब बागवानों की लागत में 56 फीसदी तक कमी आई है और उनके शुद्ध मुनाफे में 27 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती विभाग का दावा है कि प्राकृतिक खेती अपनाने के बाद किसानों की खेती (natural farming in himachal) लागत जहां 46 प्रतिशत कम हुई है. वहीं, उनका शुद्ध लाभ 22 प्रतिशत बढ़ा है. सेब-बागवानी में बीमारियों के प्रकोप पर किए अध्ययन में पाया गया कि प्राकृतिक खेती से सेब पर बीमारियों का प्रकोप अन्य तकनीकों की तुलना में कम रहा. प्राकृतिक खेती से जहां सेब के पौधों और पत्तियों पर स्कैब का प्रकोप 9.2 एवं 2.1 प्रतिशत रहा. वहीं, यह रसायनिक खेती में 14.2 एवं 9.2 प्रतिशत रहा.
इसी तरह प्राकृतिक खेती बागीचों में आकस्मिक पतझड़ 12.2 रहा, जबकि रसायनिक खेती वाले बागीचों में इस रोग का प्रकोप 18.4 प्रतिशत हुआ. इसके अलावा सेब-बागवानी और खेती फसलों में रसायनिक के मुकाबले प्राकृतिक खेती में बीमारियों का प्रकोप भी कम आंका गया है. वर्तमान में 15 हजार से अधिक बागवान भी प्राकृतिक विधि से बागवानी कर रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती सरकार के इस दावे पर विपक्ष सवाल खड़े कर रहा है. कांग्रेस प्रवक्ता नरेश चौहान ने कहा कि प्राकृतिक खेती के उत्पादों को कहां बेचा जा रहा है क्या सरकार की तरफ से मार्केटिंग की कोई अलग व्यवस्था की गई है इस बात का विभाग और सरकारी की तरफ से कोई जिक्र नहीं किया जाता.
कांग्रेस ने बताया आंकड़ों की बाजीगरी-कांग्रेस प्रवक्ता नरेश चौहान ने कहा कि ये आंकड़े सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं. उन्होंने कहा कि अगर कॉमन मार्केट में ही प्राकृतिक खेती (Himachal pradesh natural farming) के उत्पाद बिकते हैं तो दाम भी सामान्य ही मिलेंगे. इसके अलावा उन्होंने सरकार के उस दावे पर भी सवाल उठाए जिसमें कहा गया है कि डेढ़ लाख से अधिक किसान इस विधि से खेती बागवानी कर रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती नरेश चौहान ने पूछा कि सरकार को किसानों की जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए, ताकि और किसान भी उनसे सीधा संपर्क कर सकें. उन्होंने प्राकृतिक खेती के विस्तार के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों को नाकाफी बताया और शक जताया की यह केवल आंकड़ें हैं जो किताबों और कागजों तक ही सीमित हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवाहन के बाद प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालय में नेचुरल फार्मिंग के दो कोर्स शुरू किए गए हैं. जिनमें से एक कोर्स अंडर ग्रेजुएट छात्रों को लिए और दूसरा पीजी कोर्स शुरू किया गया है. कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार आने वाले दिनों में बागवानी विश्वविद्यालय नौणी में भी प्राकृतिक खेती के कोर्स शुरू किए जाएंगे. यहां भी कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर की तर्ज पर ही कोर्स शुरू किए जाएंगे.
हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती हिमालयी क्षेत्र के छोटे से पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के किसानों के सफल प्राकृतिक खेती मॉडल अब धीरे-धीरे अन्य राज्यों के किसानों के बीच भी ख्याति पा रहे हैं. हिमालयी क्षेत्र के लद्दाख, उत्तराखंड सहित कई अन्य राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के किसान हिमाचल प्रदेश के किसान-बागवानों के खेतों में भ्रमण कर प्राकृतिक खेती विधि को सीख कर अपना रहे हैं.
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हिमाचल में साढ़े 3 साल पहले शुरू की गई प्राकृतिक खेती के सफल परिणाम नजर आने लगे हैं. रसायनों के प्रयोग को हतोत्साहित कर किसान की खेती लागत और आय बढ़ाने के लिए शुरू की गई 'प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान' योजना को किसान समुदाय बड़ी तेज़ी से अपने खेत-बागीचों में अपना रहा है. योजना के शुरूआती साल में ही किसानों को यह विधि रास आ गई और 500 किसानों को जोड़ने के तय लक्ष्य से कहीं अधिक 2,669 किसानों ने इस विधि को अपनाया.
15 हजार से ज्यादा नए किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया- प्राकृतिक खेती से जुड़ा रोचक तथ्य यह देखने को मिला कि जहां कोविड काल में सभी क्षेत्रों में कोविड की पाबंदियों के विपरीत असर देखने को मिले वहीं कोविड काल में भी इस विधि के प्रति किसानों का लगाव बढ़ा एवं प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद साढ़े 15 हजार से ज्यादा नए किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया. प्राकृतिक खेती के उपर किए गए अध्ययनों में किसान-बागवानों ने बताया कि इस खेती विधि से उनकी मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ी है और स्वाद बहुत अच्छा हुआ है.
इसके अलावा किसान-बागवानों का मानना है कि फसलें कम या सूखे की स्थिति में भी अच्छी तरह से खड़ी रहती हैं और बेहतर उत्पादन दे रही हैं. प्राकृतिक खेती के नतीजों से प्रभावित होकर बागवान बड़ी संख्या में इस विधि के प्रति आकर्षित हुए हैं. मौजूदा आंकड़ों के अनुसार प्रदेशभर के 15 हजार से ज्यादा बागवान प्राकृतिक विधि से विभिन्न फल-सब्जियां उगा रहे हैं.
वहीं, यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय और चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय में प्राकृतिक खेती पर चल रहे शोध कार्य में प्रारंभिक तौर पर संतोषजनक नतीजे देखने को मिले हैं. इस खेती विधि से प्रदेश के चारों कृषि भोगोलिक क्षेत्रों के किसान जुड़ चुके हैं और वे इसे अपनाकर कम लागत में विविध फसलों पर बेहतर उत्पादन ले रहे हैं.
हिमाचल सरकार की ओर से शुरू की गई प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना की राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई एक सतत खाद्य प्रणाली पर भी काम कर रही है, ताकि प्रदेश में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके. इस प्रणाली को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के विशेषज्ञों के सुझावों के अनुरूप पारदर्शिता को ध्यान में रखते हुए वास्तविक मूल्य के सिद्धांत पर तैयार किया जा रहा है.
किसानों के उत्पादों को बाजार मुहैया करवाने के लिए हर एक ब्लॉक में किसान उत्पाद संघों का निर्माण किया जा रहा है. इनके माध्यम से किसानों को उनके उत्पादों को उचित मूल्य प्रदान करने की दिशा में काम किया जा रहा है. प्राकृतिक खेती कर रहे किसान-बागवानों और उपभोक्ताओं के लिए एक अनूठी स्व-प्रमाणन प्रणाली भी विकसित की जा रही है.
इसमें किसानों का निशुल्क पंजीकरण करवाया जा रहा है, ताकि बाजार में प्राकृतिक खेती उत्पाद की पैठ बढ़े एवं किसानों को बेहतर मूल्य सुनिश्चित हो और किसानों के ऊपर किसी प्रकार का अतिरिक्त आर्थिक बोझ भी न पड़े. पुराने एवं स्थानीय बीजों की महत्ता को समझते हुए योजना के तहत इन बीजों के संरक्षण एवं संवर्धन को भी तरजीह दी जा रही है.
हाल ही में एक वेबसाइट को भी शुरू किया गया है- किसानों के व्यापक कल्याण के लिए राज्य परियोजना इकाई, नीति आयोग और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रही है. प्राकृतिक खेती विधि न सिर्फ किसान-बागवान हितैषी है बल्कि यह पर्यावरण हितैषी भी है. प्राकृतिक खेती अब केवल हिमाचल तक सीमित न रहकर देश और विदेश भी ख्याति पा रही है और हिमाचल प्रदेश के खेती मॉडल को देष के अन्य राज्य भी अपना रहे हैं और अब इस खेती विधि को बढ़ावा देने के लिए देश की नीति निर्धारक संस्था नीति आयोग भी आगे आई है और इसे बढ़ावा देने के लिए हाल ही में एक वेबसाइट को भी शुरू किया गया है.
इससे किसानों को इस खेती विधि को अपनाने में आसानी होगी. इस खेती विधि की वजह से न सिर्फ किसानों की आर्थिकी बेहतर हो रही है बल्कि भारत की ओर से पर्यावरण संरक्षण के लिए 17 सतत विकास लक्ष्यों की पूर्ति के लिए दिए गए वचन में से 7 लक्ष्यों को पूरा किया जा रहा है. हर साल मुझे खेती के लिए रसायन और कीटनाशक खरीदने के लिए डेढ़ लाख रुपये तक का कर्ज लेना पड़ता था. कई बार अच्छी फसल न होने के चलते मेरी दिक्कतें और अधिक बढ़ जाती थीं और मन में ख्याल आता था कि खेती-बाड़ी छोड़कर कुछ और काम धंधा कर लूं, लेकिन जब से प्राकृतिक खेती को अपनाया है तब से एक रुपये का भी कर्ज नहीं लिया है.
मैं अपने घर में मौजूद संसाधनों से ही खेती में प्रयोग होने वाले सभी आदान तैयार कर रहा हूं. इससे मेरा खर्चा बिल्कुल ही घट गया है. प्राकृतिक खेती ने मुझे कर्ज मुक्त के साथ चिंतामुक्त भी कर दिया है. यह कहना है मंडी जिले के किसान-बागवान हेतराम का. हेतराम 13 बीघा में प्राकृतिक खेती कर अपना भरण पोषण कर रहे हैं. शीत मरूस्थल स्पिति की येशे डोलमा का कहना है कि 'प्राकृतिक खेती विधि से जुड़ने के बाद हमारे खेती उत्पादों को अलग पहचान मिली है और हमारी विपणन की समस्याएं भी काफी हद तक दूर हो गई हैं. लोग हमारे उत्पादों को खरीदने के लिए इंतजार में रहते हैं और अब तो एडवांस बुकिंग भी आना शुरू हो गई है. प्राकृतिक खेती उत्पादों की शेल्फ लाइफ भी बहुत अच्छी है जिससे हमारी फल सब्जियां अधिक दिनों तक टिकी रहती हैं.
सेब बहुल क्षेत्र चौपाल के बागवान सुरेंद्र मेहता कहते हैं कि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से हमारी सेहत पर बहुत बुरे प्रभाव पड़ रहे थे. रसायनों के दुष्प्रभाव के चलते मुझे कई बार अस्पताल में भी भर्ती होना पड़ा, लेकिन जब से प्राकृतिक खेती को अपनाया है तब से स्वास्थ्य सबंधी सभी दिक्कतें दूर हो गई हैं और अब तो हम बच्चों को भी बागीचे में स्प्रे के लिए भेज देते हैं.
बिलासपुर जिले के किसान ब्रह्मदास का कहना है कि 'हमारे गांव में छोटे-छोटे किसान हैं. ये सभी किसान महंगे रसायनों के चलते खेती से दूर होते जा रहे थे. ऐसे में प्राकृतिक खेती न हम किसानों को एक नई राह दिखाई और अब हमारा पूरा गांव प्राकृतिक खेती से जुड़ गया है. हमारे गांव फ्योडी में अब घर में तैयार आदानों से ही खेती कर रहे हैं और और हमारी बाजार पर से निर्भरता खत्म हो गई है'.
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