शिमला: इस फायर सीजन में भी वनों की आग ने हिमाचल को गहरे जख्म दिए हैं. मानसून से पहले फॉरेस्ट फायर सीजन में इस बार भी आग की घटनाओं पर अंकुश नहीं लग पाया. इंद्र देव की मेहरबानी से बेशक बीच-बीच में वनों की भयावह आग पर बारिश से मरहम लगा, लेकिन सरकारी अमले के प्रयास आग बुझाने खास कामयाब नहीं हुए. इस साल हिमाचल में वनों की आग (forest fire in himachal during forest fire season) के दो हजार से अधिक मामले सामने आए.
प्रदेश में कुल 16 हजार हेक्टेयर से अधिक वन भूमि में आग लगी. कुल नुकसान 6.31 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. इसके अलावा वन्य प्राणियों की भी जान गई. वहीं, वनों की आग को बुझाते हुए ऊना जिला का एक वन रक्षक बलिदान हो गया. कसौली में आग बुझाते हुए भी वन कर्मचारी झुलसे हैं. हिमाचल के वन मंत्री राकेश पठानिया (Forest Minister Rakesh Pathania ) का कहना है कि विभाग हर सीजन में वनों की आग के मामलों को थामने के लिए प्रयास करता है.
इस सीजन में वनों की आग से छह करोड़ रुपये से अधिक की वन संपदा का नुकसान हुआ है. उल्लेखनीय है कि इस दफा शिमला के समीप तारादेवी व संकटमोचन के पास भी वनों की आग बस्तियों तक पहुंचने लगी थी. कई दिन तक जंगल धधकते रहे. स्थानीय लोगों ने भी आग बुझाने में सहयोग दिया, लेकिन भयावह आग को बुझाने में अंतत: बारिश ही सहारा बनी.
इस बार जंगलों में आग लगने के सबसे अधिक 273 मामले धर्मशाला डिवीजन में सामने आई हैं. रामपुर सर्कल में 157 मामले, शिमला में 130 मामले, चंबा में 171 मामले, मंडी में 143 मामले, नाहन में 70 मामले, हमीरपुर में 52 मामले, बिलासपुर में 56 मामले, कुल्लू में 30 मामले, वाइल्ड लाइफ एरिया धर्मशाला (Wildlife Area Dharamshala) में 3 मामले, वाइल्ड लाइफ एरिया शिमला (Wildlife Area Shimla) में 4 मामले और जीएचएनपी शमशी में आग लगने के 28 मामले सामने आए हैं. इसके अलावा निजी भूमि पर वनों में आग लगने की घटनाएं और दूर-दराज के क्षेत्रों में भी बड़ी संख्या में जंगलों में आग लगने की घटवनाएं सामने आई हैं. विभाग द्वारा पूरे डाटा का आकलन किया जा रहा है.
फॉरेस्ट फायर सीजन में किस सर्कल में कितने मामले | |
धर्मशाला डिवीजन | 273 |
रामपुर सर्कल | 157 |
शिमला | 130 |
चंबा | 171 |
मंडी | 143 |
नाहन | 70 |
हमीरपुर | 52 |
बिलासपुर | 56 |
कुल्लू | 30 |
वाइल्ड लाइफ एरिया धर्मशाला | 3 |
वाइल्ड लाइफ एरिया शिमला | 4 |
वन मंत्री राकेश पठानिया का कहना है कि वन विभाग द्वारा आग पर काबू पाने के लिए हर संभव प्रयास किया गया है. उन्होंने कहा कि चीड़ की पत्तियों को इकट्ठा कर कंट्रोल फायर की गई ताकि जंगलों में भयंकर आग से बचाया जा सके. इसके अलावा बड़े जंगलों में ड्रेन भी बनाई हैं ताकि अगर आग लग जाए तो उसे नियंत्रित किया जा सके. हिमाचल के कुल वन क्षेत्र में 15 प्रतिशत से अधिक चीड़ व देवदार हैं. यह दोनों ही आग जल्दी पकड़ लेते हैं.
चीड़ की पत्तियों में लगी आग को नियंत्रित करना मुश्किल: चीड़ की पत्तियों में लगी आग को नियंत्रित करना भी बेहद कठिन कार्य है जिसके कारण जंगलों में आग तेजी से फैलती है. उन्होंने कहा कि लोगों को गांव-गांव जाकर जागरूक किया जा रहा है. ग्रामीणों को बताया जा रहा कि आजकल जंगलों के समीप कहीं भी आग न लगाई जाए. उन्होंने कहा कि सड़कों के साथ सटे जंगलों में अग्निशमन विभाग के कर्मचारी आग पर काबू पा रहे हैं. लेकिन वन विभाग की ऐसी हजारों हेक्टेयर भूमि है, जहां यह अग्निशमन वाहन नहीं पहुंच पाते.