शिमला: वर्ष 2020 का पहला महीना और पहली तारीख...देश के टॉप ब्यूरोक्रेट्स में शुमार अनिल खाची( Anil Khachi) हिमाचल सरकार के नए मुख्य सचिव बने. सीनियोरिटी को ध्यान में रखते हुए जयराम सरकार(Jairam Government) ने अनिल खाची को अफसरशाही की हॉट सीट की जिम्मेदारी दी. अनिल खाची ने केंद्र में आधार नामांकन प्रणाली के डिजाइन और उसे लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे लंबे समय तक यूआईडीएआई के डिप्टी डॉयरेक्टर जनरल रहे. फिर केंद्र में ही वे श्रम व रोजगार मंत्रालय(Ministry Of Labor And Employment) में संयुक्त सचिव रहे.
ईपीएफ संशोधन पर भी उनका सराहनीय कार्य रहा. भारतीय खाद्य निगम(Food Corporation of India) के चीफ विजिलेंस ऑफिसर(Chief Vigilance Officer) से लेकर अन्य कई अहम पदों पर काम किया है. वे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति(Central Deputation) से वापिस आए थे और हिमाचल के सीएस बने थे. केंद्र सरकार(Central Government) में कई अहम पदों पर काम कर चुके अनिल खाची की प्रशासनिक क्षमता का पीएमओ(Pmo) भी कायल रहा है. मूल रूप से शिमला जिला के रहने वाले अनिल खाची जब राज्य सरकार के मुख्य सचिव( Chief Secretary) बने तो इस फैसले के लिए सभी ने जयराम सरकार की तारीफ की. वो इसलिए कि हिमाचल से ही संबंध रखने वाले काबिल अफसर को सीनियोरिटी का ध्यान रखते हुए मुख्य सचिव बनाया गया था, लेकिन डेढ़ साल से कुछ अधिक समय में ही अनिल खाची को इस पद से हटा दिया गया.
आखिर ऐसा क्या हुआ कि ईमानदार और कार्यकुशल ब्यूरोक्रेट को मुख्य सचिव( Chief Secretary) बनाकर सबकी वाहवाही लूटने वाले जयराम सरकार ने इतनी जल्दी उन्हें विदा कर दिया. सत्ता और नौकरशाही के गलियारों में ये सवाल गूंज रहा है कि क्या कुछ मंत्रियों और विधायकों की नाराजगी अनिल खाची पर भारी पड़ी? क्या अनिल खाची( Anil Khachi) सरकार के कुछ ऐसे कामों के बीच रोड़ा बनकर खड़े थे, जिन्हें आगे बढ़ाने में उनकी अंतरात्मा राजी नहीं थी?विधानसभा के मानसून सत्र(Monsoon Session of Himachal Assembly) के दौरान हुए इस अप्रत्याशित घटनाक्रम को लेकर विपक्ष ने सदन में हंगामा किया.
नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री(Leader of Opposition Mukesh Agnihotri) ने सवाल उठाया कि हिमाचल के अफसर को इस पद से क्यों हटाया? यहां तक कि विपक्ष ने मुख्य सचिव को हटाने के विरोध में सदन से वॉकआउट कर दिया. तेजतर्रार माकपा नेता और विधायक राकेश सिंघा(MLA Rakesh Singha) ने भी सरकार के इस कदम का विरोध किया कि एक अफसर को अपना कार्यकाल पूरा करने का मौका मिलना चाहिए. ये ठीक है कि अनिल खाची को हटाए जाने से बवाल हुआ, परंतु ये भी सत्य है कि सरकार ने उनको स्टेट इलेक्शन कमिश्नर(State Election Commissioner) का पद सौंपकर डैमेज कंट्रोल कर लिया.
यदि अनिल खाची अड़ जाते तो सरकार को उन्हें कोई पद देना पड़ता और वे साइड लाइन होकर बाकी का सेवाकाल काटते, जैसे पूर्व सीएस वीसी फारका(Former CS VC Farka) ने काटा. हालांकि अनिल खाची ने स्टेट इलेक्शन कमिश्नर(State Election Commissioner) का पद स्वीकार कर जयराम सरकार को थोड़ी राहत भी दी. यदि वे सरकार की हनक की बलि चढ़ जाते तो विपक्ष और जनता जयराम सरकार(Jairam Government) को चैन न लेने देती, परंतु उन्होंने राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद स्वीकार कर लिया. यहां हम अनिल खाची के मुख्य सचिव बनने और इस पद से हटने के कारणों की पड़ताल करेंगे.
अनिल खाची पहली जनवरी 2020 को मुख्य सचिव बनाए गए. वे टू दि पॉइंट काम करने में भरोसा रखते हैं. जयराम सरकार का ब्यूरोक्रेसी के इस टॉप नौकरशाह से हनीमून पीरियड अच्छा बीता. बाद में कैबिनेट की बैठकों में मंत्रियों का मुख्य सचिव से टकराव होने लगा. यहां तक कि एक बैठक में तो मुख्य सचिव और सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर(Minister Mahendra Singh Thakur) के बीच तीखा विवाद हो गया. वो विवाद कैबिनेट मीटिंग(Cabinet Meeting) से छनकर बाहर भी आ गया और मीडिया की सुर्खियां बन गया. फिर विधायक प्राथमिकता बैठकों में कम से कम आठ एमएलए ऐसे थे, जिन्हें मुख्य सचिव से बहुत नाराजगी थी.
ये नाराजगी विधायक प्राथमिकता विकास कार्यों और विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से जुड़े निर्माण कार्यों को लेकर थी. विधायकों की शिकायत थी कि मुख्य सचिव उनकी बात नहीं सुनते. यहां तक कि विकास कार्यों को लेकर फॉलोअप भी नहीं करते. विधायकों का कहना था कि सीएस अड़ियल भी हैं और उनकी बात इगनोर भी करते हैं. इसी बीच, कई बार ऐसा हुआ कि सरकार ने अफसरों के तबादले किए, लेकिन कुछ अफसर इस कदर नाराज होने लगे कि वे कार्यभार संभालने में आनाकानी करने लगे. आईएएस ओंकार शर्मा(IAS Omkar Sharma) का मामला इसका उदाहरण है.
उधर, हिमाचल में लंबे समय से मुख्य निर्वाचन आयुक्त(Chief Election Commissioner) का पद खाली था. सीएस के खिलाफ विधायकों व मंत्रियों की बढ़ती नाराजगी देखते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर(Cm Jairam Thakur) व उनके करीबी सलाहकारों को एक रास्ता सूझा. जयराम सरकार(Cm Jairam Thakur) ने अनिल खाची को मुख्य निर्वाचन आयुक्त का पदभार सौंपने का फैसला लिया. इससे सरकार को दो लाभ हुए. अनिल खाची सीएस के पद से हट गए और वे सरकार का हिस्सा भी नहीं रहे, क्योंकि मुख्य निर्वाचन आयुक्त संवैधानिक पद(Constitutional Post) है.