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Debt on Himachal: हिमाचल को कैसे मिलेगी कर्ज से मुक्ति, वेतन और पेंशन पर 40 फीसदी खर्च, विकास के लिए बचता है इतना हिस्सा

हिमाचल कर्ज के जाल से नहीं निकल पा रहा है. कारण ये है कि सरकार के पास संसाधन कम है, खर्च ज्यादा और वेतन-पेंशन का बड़ा बोझ. हिमाचल प्रदेश की (Debt on Himachal government) आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि राज्य अपने बूते विकास के लिए संसाधन जुटा सके. हिमाचल की सरकारें केंद्रीय मदद और एक्सटर्नल एडेड प्रोडक्ट्स पर ही अधिकांश रूप से निर्भर करती हैं. हिमाचल पर इस समय 62 हजार करोड़ के करीब कर्ज है. यह निरंतर बढ़ता जा रहा है.

Debt on Himachal
हिमाचल पर कर्ज

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Published : Jan 27, 2022, 8:12 PM IST

शिमला:आर्थिक संसाधनों की कमी से जूझ रहे हिमाचल प्रदेश के खजाने पर नए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद और अधिक बोझ पड़ने वाला है. हिमाचल सरकार का मौजूदा वित्तीय वर्ष में बजट का आकार पहली बार 50 हजार करोड़ से अधिक हुआ है. जयराम सरकार ने 50 हजार 192 करोड़ रुपए का बजट पेश किया था. उस बजट को आधार मानें तो हिमाचल में अधिकांश बजट का हिस्सा सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन पर खर्च होता है.

यदि नए वेतन आयोग की सिफारिशों से खजाने पर पड़ने वाले बोझ को फिलहाल एक तरफ रखें तो (Himachal State Debt status) हिमाचल में इस समय सरकारी कर्मियों के वेतन पर सौ रुपए में से 25.31 पैसे खर्च होते हैं. वहीं, पेंशनर्स की पेंशन अदायगी पर 100 रुपए में से 14.11 रुपए खर्च होते हैं. यदि इसमें नए वेतन आयोग की सिफारिशों को भी मिला दिया जाए तो यह खर्च कम से कम 52 पैसे और बढ़ जाएगा. मौजूदा समय में विकास के लिए 100 रुपए में से 43.94 पैसे ही बचते हैं. वेतन आयोग की सिफारिशें, पेंशनर्स की पेंशन, ब्याज की अदायगी और कर्ज की अदायगी को भी जोड़ दिया जाए तो विकास के लिए आने वाले समय में 100 रुपए में से सिर्फ 40 रुपए ही बचेंगे.

हिमाचल को पर्यटन सेक्टर मजबूत करने की जरूरत: हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि राज्य अपने बूते विकास के लिए संसाधन जुटा सके. हिमाचल की सरकारें केंद्रीय मदद और एक्सटर्नल एडेड प्रोडक्ट्स पर ही अधिकांश (Debt on Himachal government) रूप से निर्भर करती हैं. पूर्व आईएएस अधिकारी और हिमाचल सरकार में वित्त सचिव रह चुके केआर भारती का कहना है कि हिमाचल को पर्यटन सेक्टर को मजबूत करने की जरूरत है. इसके अलावा हिमाचल को अपने खर्च कम करने चाहिए. पूर्व में कांग्रेस सरकार के समय इस संदर्भ में एक कमेटी का गठन भी हुआ था. लेकिन उसकी सिफारिशें अमल में ही नहीं लाई गई.

केआर भारती का कहना है कि हिमाचल को कर्ज के जाल से निकलने के लिए एक बेल आउट पैकेज की जरूरत है. लेकिन इसमें कई अड़चनें हैं. यदि केंद्र सरकार हिमाचल को वन टाइम बेल आउट पैकेज देती है तो देश के अन्य पहाड़ी राज्य भी ऐसी मांग करेंगे. साथ ही बीमारू राज्य भी केंद्र पर दबाव बनाएंगे. भारती का कहना है कि हिमाचल को नए आर्थिक संसाधन जुटाने के लिए प्रयास करना होगा. इसमें हाइड्रो पावर सेक्टर अहम भूमिका निभा सकता है.

हिमाचल पर करीब 62 हजार करोड़ के कर्ज:हिमाचल पर इस समय 62 हजार करोड़ के करीब कर्ज है. यह निरंतर बढ़ता जा रहा है. आगामी बजट 55 हजार करोड़ रुपए का आंकड़ा पार करेगा. चुनावी साल होने के कारण यह संभव है कि जयराम सरकार लोक लुभावन घोषणाएं करेंगें. फिर हिमाचल में सामाजिक सुरक्षा पेंशन का दायरा लगातार बढ़ रहा है. चार साल में ही पेंशन पर खर्च 1037 करोड़ रुपए सालाना हो गया है जो पहले 460 करोड़ रुपए के करीब था. इस तरह हिमाचल सरकार के समक्ष गंभीर आर्थिक संकट आ जाएगा. हिमाचल में सवा दो लाख के करीब कर्मचारी हैं और पौने दो लाख के करीब पेंशनर्स हैं.

हिमाचल में इन्हें 31 फीसदी डीए मिल रहा है. इसके अलावा बढ़ा हुआ वेतन देने का बोझ है. साथ ही एरियर पर भी जल्द फैसला लेना पड़ेगा. राज्य सरकार के लिए राहत यह रही कि 15वें वित्तायोग में प्रदेश को उदार आर्थिक सहायता दी है. इस कारण कोरोना संकट में सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर होने वाले खर्च से राहत मिली है. सरकार को केंद्रीय वित्तायोग से सालाना 950 करोड़ की विशेष मदद मिल रही है. वित्तायोग ने पहले ही सुझाव दिया है कि पर्यटन सेक्टर को डेवलप कर हिमाचल आर्थिक लाभ जुटा सकता है.

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अप्रैल 2021 में हिमाचल प्रदेश पर कर्ज का (Himachal State Debt status) बोझ 60544 करोड़ रुपए था. अब यह 62 हजार करोड़ के करीब पहुंच गया है. वहीं, 2020 में मार्च महीने तक ये आंकड़ा 56107 करोड़ रुपए था. यदि 2013-14 की बात करें तो कर्ज का ये बोझ 31442 करोड़ रुपए था. यानी आठ साल में ही ये दुगना हो गया है. पिछले वित्तीय वर्ष में हिमाचल सरकार की लोन लिमिट एक साल के लिए 6500 करोड़ रुपए थी. अब यह 8 हजार करोड़ के करीब है. हिमाचल सरकार ब्याज की अदायगी पर अपने बजट में से 100 रुपए में से 10 रुपए खर्च करती है. वहीं, लोन की अदायगी पर 6.64 रुपए खर्च होते हैं. यानी कर्ज और कर्ज पर ब्याज की अदायगी के लिए ही सरकार को 16.64 रुपए खर्च करने पड़ते हैं.

दरअसल 2012 यानी 10 साल पहले जब प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार ने सत्ता छोड़ी थी तो हिमाचल प्रदेश पर 28760 करोड़ रुपए का कर्ज था. बाद में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के समय यह कर्ज बढ़कर 47906 करोड़ रुपए हो गया. पिछले बजट सत्र में जयराम सरकार ने बताया था कि राज्य सरकार 2018-19 में 5737 करोड़ रुपए मार्केट लोन ले सकती थी, लेकिन कुल 4120 करोड़ रुपए ही लोन लिया. वित्तीय वर्ष 2020-21 में सरकार की मार्केट लोन की सीमा 9187 करोड़ रुपए थी और लोन केवल 6000 करोड़ रुपए ही लिया गया.

हिमाचल को मिली मदद: भाजपा का कहना है कि जयराम सरकार ने तीन साल में पूर्व की कांग्रेस सरकार के समय लिए गए 19199 करोड़ रुपए के कर्ज में से 19486 करोड़ रुपए वापस भी लौटाए हैं. हिमाचल प्रदेश को पंद्रहवें वित्तायोग से उदार आर्थिक सहायता मिली है. महीने में 952 करोड़ रुपए वित्तायोग की तरफ से मिल रहे हैं. इसके अलावा रेवेन्यू डेफेसिट ग्रांट से भी काफी मदद मिल रही है. वित्तायोग ने अस्सी हजार करोड़ रुपए से अधिक मंजूर किए हैं उसमें से एक हजार करोड़ रुपए मंडी ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट (Mandi Green Field Airport) के लिए है.

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