शिमला: हिमाचल प्रदेश ने 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों को कोविड-19 टीकाकरण की पहली खुराक के शत-प्रतिशत लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 6 सितंबर को राज्य के अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करेंगे, जिन्होंने इस लक्ष्य को हासिल करने में मेहनत की है. स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजीव सैजल ने कहा कि हिमाचल में सभी विभागों के फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं ने कड़ी मेहनत की,जिसके कारण यह लक्ष्य हासिल हुआ.
स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि वैक्सीनेशन प्रक्रिया में सबसे बेहतर बात यह रही कि वैक्सीन वेस्ट नहीं होने दी गई. इस मामले में भी प्रदेश देश भर में शीर्ष स्थान पर रहा. स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री की शाबाशी के बाद प्रदेश के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का मनोबल और बढ़ेगा. उनके संबोधन को फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं तक पहुंचने के लिए सीधे प्रबंध किये गए हैं. स्वास्थ्य मंत्री ने मुख्यमंत्री की भी सराहना करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने समय- समय पर सीधे स्थिति की समीक्षा की. इसके अलावा वो खुद भी अस्पताओं और वैक्सीनेशन सेंटर पर भी गए.
उन्होंने कहा कि इस आयोजन को सफल बनाने के लिए स्थानीय विधायक, टीकाकृत व्यक्तियों तथा जनप्रतिनिधियों की भी भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी. स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश ने विभिन्न उपायों के जरिए कोरोना के प्रसार को थामने में सफलता हासिल की है. लॉकडाउन का सख्ती से पालन और फिर घर-घर जाकर स्क्रीनिंग ने इस पहाड़ी राज्य को कोरोना से निपटने में सफलता दिलाई है. हिमाचल सरकार ने एक्टिव केस फाइंडिंग की जिस प्रक्रिया को अपनाया, उसकी तारीफ खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की है.
हिमाचल ने सभी की जांच करने के लिए एक प्रक्रिया शुरू करने का फैसला लिया. ये फैसला था घर-घर जाकर स्क्रीनिंग करने का. हिमाचल के पास पहले भी इसी तरह के अभियान का अनुभव था. कुछ साल पहले हिमाचल ने टीबी के रोगियों की जांच के लिए ये अभियान चलाया था. सरकार ने एक्टिव केस फाइंडिंग अभियान के लिए 16 हजार आशा वर्कर्स, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं व पुलिसकर्मियों की टीम मैदान में उतारी. करीब दस दिन के अभियान में 69 लाख से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग की गई. ये देखा गया कि खांसी, जुकाम या बुखार के मरीज कहां-कहां है. उनकी स्वास्थ्य जांच की गई. इसके अलावा हर घर में ये पता किया गया कि कोई बाहर से यात्रा करके तो नहीं आया है.
ऐसे लोगों की अलग से सूची बनाई गई. इसके लिए सरकार ने पहली अप्रैल से अभियान शुरू किया. प्रदेश के हर जिला में स्वास्थ्य कर्मचारी, आशा वर्कर, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं सहित जरूरत के अनुसार पुलिस कर्मचारियों को भी इस अभियान से जोड़ा गया. प्रदेश में कुल 16 हजार वर्कर्स की टीम ने इस अभियान को पूरा किया और 69 लाख लोगों का डाटा जुटाया. इसके लिए 7800 आशा वर्कर्स को प्रशिक्षण दिया गया. अभियान के दौरान जिस भी घर में इन्फ्लूएंजा से पीड़ित कोई व्यक्ति मिला, उसे पहले नजदीकी स्वास्थ्य संस्थान में चेकअप करवा कर संदिग्ध होने की आशंका पर कोरोना जांच भी की गई.
इसी का परिणाम है कि दो ऐसे व्यक्ति भी कोरोना के संदिग्ध पाए गए, जिनकी कोई ट्रैवल हिस्ट्री नहीं थी. इसका दूसरा लाभ ये हुआ कि पूरे प्रदेश का डाटा सामने आ गया. प्रदेश की जनता ने इस मुहिम में भरपूर सहयोग किया. आशा वर्करों को इस काम के लिए प्रतिदिन मानदेय भी दिया गया. ग्रामीण इलाकों में रोजाना एक गांव को कवर किया गया. एक टीम ने कम से कम 30 घरों की स्क्रीनिंग की. परिवार के हर सदस्य का विवरण लिखा गया. मोबाइल नंबर भी नोट किया गया. लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग समझाई गई और मास्क लगाने का तरीका बताया गया. बचाव के अन्य उपायों के बारे में भी बताया गया.