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फसलों और फलों को नुकसान पहुंचा रहे बंदर, हिमाचल सरकार ने वर्मिन घोषित करने के लिए केंद्र को लिखी चिट्ठी

हिमाचल प्रदेश में बंदर (Monkey in Himachal Pradesh) और जंगली जानवर (Number of wildlife in Himachal ) फल और फसलों को सालाना अरबों रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं. प्रदेश की 93 तहसीलें ऐसी हैं, जहां बंदरों के आतंक भारी संख्या में लोग परेशान हैं. प्रदेश में अप्रैल से बंदरों को मारने पर रोक है. सरकारी सेवा से स्‍वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर हिमाचल किसान सभा (Himachal Kisan Sabha) को सक्रिय करने वाले डॉ. तंवर का मानना है कि केंद्र सरकार को बंदरों के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाना चाहिए. इसके साथ ही हिमाचल में बंदरों को वर्मिन (monkey as vermin in himachal) घोषित करने की मांग की गई है. इससे बंदरों की संख्या नियंत्रित रहेगी.

Himachal government demanded the Center to declare the monkeys as vermin.
हिमाचल सरकार ने केंद्र से बंदरों को वर्मिन घोषित करने की मांग की.

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Published : Dec 2, 2021, 10:07 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश में बंदर (Monkey in Himachal Pradesh) और जंगली जानवर (Number of wildlife in Himachal ) फल व फसलों को सालाना अरबों रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं. प्रदेश की 93 तहसीलें ऐसी हैं, जहां बंदरों का आतंक बहुत ज्यादा है. वहां उन्हें वर्मिन यानी पीड़क जंतु घोषित करने के लिए हिमाचल के वन्य प्राणी विभाग ने केंद्र को मंजूरी के लिए चिट्ठी लिखी है. प्रदेश में अप्रैल से बंदरों को मारने पर रोक है. अब 93 तहसीलों और उप तहसीलों के लिए नए सिरे से अनुमति मांगी गई है. इसके लिए फील्ड से डेटा मंगा गया है.

यह जानकारी भी इकट्ठा की जा रही है कि वर्मिन घोषित करने के बाद कितने बंदरों को मारा गया. वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में बंदरों की संख्या लगातार कम हो रही है, लेकिन विभाग के पास बंदरों को मारने की किसी घटना का जिक्र नहीं है. वन विभाग के अनुसार अब तक 140882 बंदरों की नसबंदी की जा चुकी है. विभाग द्वारा की गई गणना के अनुसार प्रदेश में 2004 में 317512 बंदर थे जबकि 2020 में बंदरों की संख्या 136443 रह गई है.

हिमाचल में हर साल बंदर और जंगली जानवर फलों तथा फसलों को 500 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं. सरकार ने बंदरों की बढ़ती समस्या को नियंत्रित करने के लिए अनेक उपाय किए लेकिन कोई भी प्रयास किसानों के जख्मों पर मरहम नहीं रख पाया. हिमाचल सरकार ने बंदरों को पकड़ कर अलग स्थानों पर बसाने के लिए लाखों रुपए खर्च किए. बंदरों की नसबंदी पर भी करोड़ों रुपए खर्च किए गए. यही नहीं, सारी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद हिमाचल सरकार ने केंद्र से प्रदेश की कई तहसीलों में फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले बंदरों व कुछ अन्य जानवरों को वर्मिन घोषित करवाया, लेकिन बात नहीं बनी. वर्मिन घोषित किए गए बंदरों व अन्य जानवरों को मारने के लिए सरकार ने हाथ खड़े कर दिए और उन्हें मारने का जिम्मा भी किसानों के सिर डाल दिया. धार्मिक आस्था से किसान भी बंदरों को मारने से हिचकते रहे और पिछले तीन सालों में केवल पांच ही बंदर मारे गए.

पूर्व आईएफएस ऑफिसर और हिमाचल सरकार के वन विभाग में उच्च अधिकारी रहे डॉक्टर केएस तंवर किसानों की लड़ाई लड़ते आ रहे हैं. सरकारी सेवा से वॉलंटरी रिटायरमेंट लेकर हिमाचल किसान सभा को सक्रिय करने वाले डॉ. तंवर का मानना है कि केंद्र सरकार को बंदरों के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाना चाहिए. इसके साथ ही हिमाचल में बंदरों को वर्मिन घोषित करने की भी मांग की गई है. इससे बंदरों की संख्या नियंत्रित रहेगी. वे किसान सभा के माध्यम से कई बार सरकार को सुझाव दे चुके हैं कि वनों में फलदार पौधे लगाए जाएं.

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हालांकि हिमाचल सरकार ने बंदरों को पकड़ने, उनकी नसबंदी करने के अलावा वानर वाटिका का कॉन्सेप्ट (Vanar Vatika concept in Himachal) भी लागू किया लेकिन कोई भी प्रयास किसानों की समस्या को हल नहीं कर पाया. आलम यह है कि सिरमौर, सोलन, शिमला व कांगड़ा सहित मैदानी जिलों में कई किसानों ने खेती करना ही छोड़ दिया है. राज्य सरकार के वन मंत्री राकेश पठानिया के अनुसार सरकार बंदरों और जंगली जानवरों द्वारा फसलों को पहुंचाए जाने वाले नुकसान को लेकर चिंतित है और समय-समय पर क्षेत्र विशेष की परिस्थितियों के अनुसार फैसले भी लिए जा रहे हैं. हिमाचल किसान सभा के अध्यक्ष डॉ. केएस तंवर के अनुसार लगातार कई वर्षों के आकलन से यह सामने आया है कि राज्य में बंदर और जंगली जानवर फलों तथा फसलों को 500 करोड़ रुपए का सालाना नुकसान पहुंचाते हैं.

वर्ष 2015 के आंकड़े देखें तो बंदरों ने फसलों को 334.83 करोड़ का नुकासन पहुंचाया था. 2006 से 2014 तक बंदरों ने 2050 लोगों को घायल किया था. वन विभाग बंदरों के काटने पर मुआवजा देता है. एक दशक में विभाग ने जख्मी लोगों को 96.13 लाख रुपए मुआवजा दिया. सरकारी आंकड़ों के अनुसार बंदर व जंगली जानवर फलों और फसलों को 350 करोड़ का नुकसान (monkeys damaging fruits in himachal) पहुंचाते हैं लेकिन किसान सभा का कहना है कि इनके आतंक के कारण किसानों की खेती पर लागत को भी जोड़ा जाना चाहिए. इस तरह यह नुकासन सालान 500 करोड़ रुपए ठहरता है.

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किसानों के दबाव (Farmers in himachal pradesh) में राज्य सरकार ने प्रयास करके प्रस्ताव भेजा और बड़ी मुश्किल से केंद्र सरकार ने बंदरों को वर्मिन (इंसान व खेती के लिए नुकसानदायक) घोषित किया. किसानों के मन में उम्मीद जगी थी कि राज्य का वन्य प्राणी विंग वर्मिन बंदरों को वैज्ञानिक तरीके से मारकर ठिकाने लगाएगा, लेकिन वन्य प्राणी विभाग ने अपने हाथ पीछे खींच लिए. प्रभावित किसानों को ही फसलों के लिए खतरनाक साबित हो रहे बंदरों को मारने के लिए कहा गया. यही नहीं तब सरकार ने किसानों को ट्रेंड शूटर मुहैया करवाने से मना कर दिया था. दो साल पहले इस सिलसिले में वन विभाग ने प्रोटोकॉल जारी किया था.

केंद्र की अधिसूचना के अनुसार हिमाचल की बंदरों व जंगली जानवरों से बुरी तरह से प्रभावित 38 तहसीलों में बंदरों को वर्मिन घोषित कर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने यहां खतरनाक साबित हो रहे बंदरों को मारने की इजाजत दे दी थी. साथ ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला किसानों के पक्ष में था. बाकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की थी, लेकिन सरकार इससे पीछे हट गई थी. राज्य सरकार बंदरों को मारने का प्रोटोकॉल (protocol for killing monkeys) ही तय नहीं कर पाई. बाद में प्रोटोकॉल तो जारी हो गया, लेकिन वन विभाग ने अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया. तय किया गया कि प्रभावित घोषित की गई तहसीलों में किसान खुद ही बंदरों को मारेंगे और वन्य प्राणी विंग केवल किसानों को रेस्क्यू टीम मुहैया करवाएगा, शूटर नहीं. और तो और वन्य प्राणी विंग ने किसानों को बंदर मारने के लिए जरूरी हथियार भी नहीं दिए.

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