शिमला: विगत एक दशक में हिमाचल प्रदेश इंसान और जंगली जानवरों के टकराव को लेकर सुर्खियों में बना हुआ है. जंगली जानवरी इनसानी बस्तियों में आ रहे हैं. हाल ही में शिमला में दो बच्चों को तेंदुए ने अपना शिकार बनाया है. इंसान और जंगली जानवरों के बीच टकराव को समझने और उसका समाधान निकालने के लिए तेंदुओं व अन्य वन्य प्राणियों की गणना (Leopard in Himachal forest) का अहम रोल है.
हिमाचल में 2004 में आखिरी बार तेंदुओं की गणना हुई थी. उस समय प्रदेश में सात सौ के करीब तेंदुए पाए गए थे, लेकिन उसके बाद सत्रह साल से हिमाचल प्रदेश में इनकी गणना नहीं हुई है. अब वन्य प्राणी विभाग (Wildlife Department in Himachal) जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (Geological Survey of India) के साथ मिलकर तेंदुओं की गिनती करेगा. यही नहीं, वन्य प्राणी विंग तेंदुओं के साथ भालुओं की गणना में भी जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का मदद लेगा.
बता दें कि वन्य प्राणी किसी भी देश की समृद्ध वन्य संपदा का पैमाना होते हैं. हिमाचल में वन्य प्राणियों के संरक्षण में ऐसे अध्ययन बहुत उपयोगी हैं. हिमाचल प्रदेश का फॉरेस्ट कवर (Forest cover of Himachal Pradesh) बेशक निरंतर बढ़ रहा है, लेकिन यहां वन्य प्राणी भी इनसानी बस्तियों की तरफ आ रहे हैं. इंसान और जंगली जानवरों का टकराव बढ़ने के प्रमुख कारण तलाशने की जरूरत है. तेंदुओं के स्वभाव में कौन से परिवर्तन आ रहे हैं और उनके नरभक्षी होने का क्या कारण है? ये अध्ययन वन्य प्राणियों के संसार को समझने में मदद करता है. ऐसे अध्ययन का पहला चरण वन्य प्राणियों की गणना को ही माना जाता है.
राज्य सरकार के वन मंत्री राकेश पठानिया (Forest Minister Rakesh Pathania on Leopard in Himachal) का कहना है कि वन्य प्राणी विंग निरंतर वनों में विचरण करने वाले अलग अलग जीवों को लेकर अध्ययन करता है. अब तेंदुओं की गणना का काम फिर से किया जा रहा है. पूर्व आईएएफएस अधिकारी डॉ. केएस तंवर के अनुसार हिमाचल में वन्य प्राणियों की संख्या (Number of wildlife in Himachal) बढ़ रही है. ऐसे में उनकी गणना करना बहुत जरूरी है. वन्य प्राणियों की संख्या बढ़ती है तो वे इंसानी बस्तियों का रुख करते हैं.