शिमला: हिमाचल इस समय चुनावी मोड पर है. पहले नगर निकाय, फिर पंचायती राज और अब नगर निगम चुनाव, एक के बाद एक चुनाव होने से छोटे पहाड़ी राज्य का सियासी माहौल गर्म है. जयराम सरकार पिछले साल दिसंबर में तीन साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपने कार्यकाल का चौथा बजट भी पेश कर दिया है. बजट के बाद अब सरकार ने सारी उर्जा नगर निगम चुनाव में झोंक दी है. ऐसे में ये सवाल सबसे अधिक जोर पकड़ रहा है कि क्या जयराम सरकार सत्ता के सेमीफाइनल में जीत दर्ज कर पाएगी.
अमूमन हिमाचल का वोटर सत्ताधारी दल के साथ ही चलता है. विधानसभा चुनाव से पहले होने वाले चुनाव में वोटर सरकार को नाराज नहीं करना चाहता. वैसे भी अब जयराम सरकार का कार्यकाल चौथे साल में प्रवेश कर चुका है. इसी समय नगर निगम चुनाव आ गए हैं. सरकार ने तीन नए नगर निगम बनाए हैं. इनमें सोलन, पालमपुर व मंडी शामिल हैं. पहले के दो नगर निगम मिलाकर कुल पांच हो गए हैं. जयराम सरकार प्रचार में इस बात पर जोर दे रही है कि सत्ताधारी दल ने नए नगर निगम बनाकर जनता को तोहफा दिया है, अब जनता भी भाजपा को चुनकर भेजे ताकि नए नगर निगमों का विकास किया जा सके.
नगर निगम संशोधन विधेयक का हुआ था विरोध
इसी बजट सेशन में राज्य सरकार ने नगर निगम संशोधन विधेयक भी लाया है. हालांकि इस विधेयक को लेकर कांग्रेस के साथ एकमात्र माकपा विधायक राकेश सिंघा ने भी विरोध जताया था, लेकिन सदन में विधेयक पास हो गया है. फिलहाल, छोटे राज्य में कुल पांच नगर निगम बनाने का मकसद यही है कि इन शहरों का नियोजित विकास हो सके. केंद्र से शहरों के विकास के लिए कई मदों में धन और योजनाएं भी आती हैं. आर्थिक संकट से जूझ रही हिमाचल सरकार को इस पैसे से मदद मिलती है. यही सोचकर नए निगम बनाए गए हैं.
बीजेपी कर रही सभी निगमों में जीत का दावा
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप और प्रदेश भाजपा प्रभारी अविनाश राय खन्ना दावा कर रहे हैं कि सभी निगमों में पार्टी जीत हासिल करेगी. यही नहीं, सरकार ने अपने मंत्रियों को इस अभियान में झोंक रखा है. खुद सीएम जयराम ठाकुर लगातार चुनाव वाले शहरों का दौरा कर रहे हैं. मंडी नगर निगम तो सरकार की साख का सवाल है. कारण ये है कि मंडी से सबसे अधिक विधायक और खुद सीएम यहीं से हैं. चुनावी रणनीति के माहिर महेंद्र ठाकुर और राजीव बिंदल फ्रंट फुट पर हैं. धर्मशाला में तेजतर्रार भाजपा नेता राकेश पठानिया कमान संभाल रहे हैं. भाजपा मतदाताओं के समक्ष तर्क दे रही है कि केंद्र व प्रदेश में भाजपा सरकार का लाभ लेने के लिए नगर निगम की सत्ता भी भाजपा को मिलनी चाहिए, ताकि विकास की गति और तेज हो सके। कुछ बागियों पर पार्टी ने कड़ी कार्रवाई कर ये संकेत दिए हैं कि वो सख्त एक्शन लेने से नहीं हिचकेगी.
मौजूदा हालात को देखते हुए लिया गया फैसला
फिलहाल, चुनावी सरगर्मियां बढ़ने से पहले ये भी सवाल उठ रहे थे कि क्या छोटे राज्य में पांच नगर निगम जरूरी हैं? हिमाचल में वैसे तो काफी समय से नए जिले बनाने की बात उठती रही है. लेकिन ये फैसला सरकार ने मौजूदा हालात को देखते हुए लिया है. कारण है, शहरों का नियोजित विकास. कुल 12 जिलों वाले प्रदेश में कांगड़ा जिला सबसे बड़ा है और यहां के कुछ इलाकों को नए जिलों के तौर पर गठित करने की मांग होती रही है. बेशक से सारे खेल सियासी नफा-नुकसान को देखते हुए चलते हैं, लेकिन भाजपा सरकार ने तीन और नगर निगम का गठन करके पहल कर दी है.
विकास करना है नगर निगम के गठन का मकसद
नगर निगम के गठन का मूल मकसद इन शहरों का नियोजित विकास करना है. केंद्र सरकार की कई योजनाएं ऐसी होती हैं, जिनका लाभ शहरी निकायों को मिलता है. उदाहरण के लिए धर्मशाला व शिमला को स्मार्ट सिटी मिशन में जगह मिली. इसके लिए केंद्र सरकार से कई करोड़ का फंड आया और नई योजनाओं पर काम शुरू हुआ. इसके अलावा पेयजल योजनाएं, कूड़ा निस्तारण से संबंधित परियोजनाएं व शहर विशेष की समस्या के लिए अलग से प्रोजेक्ट बनाकर केंद्र से आर्थिक मदद ली जा सकती है. इसी मकसद से सोलन, मंडी व पालमपुर को नगर निगम बनाया गया है. नगर निगम बनने से एक ढांचागत विकास का मार्ग प्रशस्त होता है. नगर निगम एक तरह से मिनी पार्लियामेंट होती है. शहरों को वार्ड में विभाजित कर उनका प्रतिनिधि निगम के सदन में अपने वार्ड के विकास की बात रख सकता है.
सोलन को नगर निगम बनाए जाने की हो रही थी मांग
जहां तक सोलन की बात की जाए तो यहां के लोग लंबे समय से नगर निगम बनाए जाने की मांग कर रहे थे. सोलन घनी आबादी वाला शहर है और इसके नियोजित विकास की बहुत जरूरत महसूस की जा रही थी. नगर निगम बनने से स्ट्रीट लाइट्स, कूड़ा निस्तारण, पेयजल सप्लाई आदि की समस्याओं को दूर किया जा सकता है. चूंकि नगर पंचायत और नगर परिषद के पास अधिक बजट नहीं होता, लिहाजा उन्हें फंड के लिए राज्य सरकार का मुंह ताकना पड़ता है. फिर नगर निगम बनने से प्रापर्टी टैक्स व अन्य टैक्स के रूप में नियमित आय होती है, जिसे शहर के विकास में लगाया जा सकता है.
शहरों को नगर निगम बनाने का सियासी लाभ
शहरों को नगर निगम बनाने से राजनीतिक दल सियासी लाभ भी देखते हैं. अलबत्ता, नगर निगम में शामिल उन इलाकों को जरूर उपेक्षा का सामना करना पड़ता है, जो शहर से दूर होते हैं. मसलन, शहर के साथ लगते ग्रामीण इलाकों के लोग इस बात से असहज होते हैं कि उन्हें टैक्स तो भरना होगा. लेकिन हो सकता है सुविधाएं न मिलें. फिलहाल, जयराम सरकार ने ये दाव खेला है और नए नगर निगम में चुनावी शोर है. देखना ये है कि सरकार का ये दाव उसकी साख को बचा पाता है या कांग्रेस कोई उलटफेर करने में कामयाब होगी?
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