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विदेशी सेब को मंडियों में मिल रहे अच्छे दाम, बागवान हुए आकर्षित

हिमाचल के बागवानों के बीच कुछ सालों से विदेशी किस्म का सेब चर्चा का विषय बना हुआ है. बागवान इन विदेशी सेब की ओर आकर्षित हुए हैं. शिमला, मंडी, कुल्लू, चंबा, किन्नौर आदि जिलों में बागवान सेब की विदेशी किस्मों को उगा रहे हैं. कई जगह तो बागवानों ने परंपरागत रॉयल किस्म वाले बगीचों को पूरी तरह से उखाड़ कर यहां पर विदेशी सेब का उत्पादन शुरू किया है.

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Published : Aug 11, 2020, 4:20 PM IST

Apples from foreign countries
हिमाचल में सेब उत्पादन

रामपुर:हिमाचल सेब उत्पादन के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है. प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में बागवान सेब का उत्पादन करते हैं, लेकिन बागवान अब विदेशों से आ रही नई किस्म के पौधों की ओर आकर्षित हो रहे हैं.

हिमाचल के बागवानों के बीच कुछ सालों से विदेशी किस्म का सेब चर्चा का विषय बना हुआ है. बागवान इन विदेशी सेब की ओर आकर्षित हुए हैं. शिमला, मंडी, कुल्लू, चंबा, किन्नौर आदि जिलों में बागवान सेब की विदेशी किस्मों को उगा रहे हैं. कई जगह तो बागवानों ने परंपरागत रॉयल किस्म वाले बगीचों को पूरी तरह से उखाड़ कर यहां पर विदेशी सेब का उत्पादन शुरू किया है.

हिमाचल प्रदेश में अब विदेशी सेब जैसे सुपर चीफ, स्कारलेट टू, आर्गन टू, अर्ली रेड वन, वाशिंगटन रेड, जेरोमाइन, गेल गाला का उत्पादन होता है. वहीं, बागवानों ने बताया कि जो बागवान नए किस्म के सेब लेकर मंडियों में पहुंच रहे हैं, उन्हें सेब के अच्छे दाम मिल रहे हैं. वहीं, जो बागवान पुरानी किस्म के सेब लेकर मंडी पहुंच रहे हैं, उन्हें अच्छे दाम नहीं मिल पा रहे हैं.

वीडियो रिपोर्ट.

इसको देखते हुए अब बागवानों को भी नई किस्म के सेब उगाने पड़ेंगे जिनके मार्केट में अच्छे दाम मिल सके. वहीं, बागवान ने बताया कि अब चमक-दमक को देखते हुए विदेशों से आ रहे सेब के आगे हमारा सेब फीका पड़ रहा है और बागवानों को भी उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं जिसको देखते हुए अब यहां के बागवानों को भी विदेशी किस्म के सेब को उगाने की आवश्यकता है.

बागवानों ने बताया कि कई सालों से जो रॉयल किस्म का सेब उन्होंने अपने बागों में तैयार किया हुआ है उसको मंडियों में अच्छे दाम नहीं मिल पा रहे हैं. बागवानों ने बताया कि जहां विदेशी किस्मों के आधे बॉक्स के अच्छे दाम मिल रहे हैं. वहीं, पुरानी किस्म के पूरे बॉक्स के दाम बागवानों को मुश्किल से मिल पा रहे हैं.

ऐसे में कोटगढ़ के विकसित बागवानों ने बताया कि आने वाले समय में यहां के बागवानों को विदेशी किस्म के सेब ही उगाने पड़ सकते हैं ताकि वह विदेशों से आने वाले सेब को मात दे सकें.

इससे बागवानों की आर्थिकी भी बढ़ेगी और इन विदेशी किस्म के सेब को उगाने के लिए भूमि भी कम चाहिए और ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती है. वहीं, उन्होंने बताया कि इन सेब के पौधों को ओलावृष्टि आदि से भी बचाया जा सकता है.

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