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कर्ज के मर्ज की दवा है खेती-बागवानी, कैग की सलाह पर कृषि विभाग कर रहा अमल

हिमाचल प्रदेश 63 हजार करोड़ रुपए के कर्ज के बोझ तले दबा है. कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (Comptroller and Auditor General of India) की रिपोर्ट में हर बार राज्य सरकार को डेब्ट ट्रैप में बुरी तरह फंसने की बात कही जाती है. कैग रिपोर्ट में चेतावनी दी जाती रही है कि हिमाचल को कर्ज का बोझ कम करने के लिए प्रयास करना चाहिए, नहीं तो प्रदेश ऐसे जाल में फंस जाएगा, जहां से निकलना मुश्किल होगा.

कर्ज के मर्ज की दवा है
कर्ज के मर्ज की दवा है

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Published : Jun 22, 2022, 1:20 PM IST

शिमला :हिमाचल प्रदेश 63 हजार करोड़ रुपए के कर्ज के बोझ तले दबा है. कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (Comptroller and Auditor General of India) की रिपोर्ट में हर बार राज्य सरकार को डेब्ट ट्रैप में बुरी तरह फंसने की बात कही जाती है. कैग रिपोर्ट में चेतावनी दी जाती रही है कि हिमाचल को कर्ज का बोझ कम करने के लिए प्रयास करना चाहिए, नहीं तो प्रदेश ऐसे जाल में फंस जाएगा, जहां से निकलना मुश्किल होगा.

कैग की खेती-बागवानी की सलाह: कैग ने राज्य सरकार को कर्ज का बोझ कम करने के लिए खेती-किसानी और सिंचाई योजनाओं को हर किसान के खेत-बागीचे तक पहुंचाने की सलाह दी है. कैग की इसी सलाह पर कृषि विभाग ने काम शुरू किया है.

जीडीपी में खेती -बागवानी का योगदान: हिमाचल प्रदेश की जीडीपी में खेती और बागवानी का बड़ा योगदान है. राज्य की जीडीपी में कृषि, बागवानी और संबद्ध सेक्टर का योगदान 13.7 फीसदी के करीब है. प्रदेश में 10 लाख के करीब किसान परिवार हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि हिमाचल प्रदेश में यदि खेती-बागवानी में सिंचाई की सुविधा बढ़ती है तो जीडीपी में योगदान 30 फीसदी तक हो सकता है. ऐसे में हिमाचल में 90 फीसदी आबादी की आय बढ़ेगी और इसका लाभ राज्य को होगा.

जिम्मेदारों ने मानी कैग की सलाह:कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर का कहना है कि राज्य सरकार कैग और विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार काम कर रही है. कृषि सेक्टर में कई योजनाएं लागू की गई और किसानों को उनका लाभ मिल रहा है. इसी तरह बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर का कहना है कि निचले क्षेत्र के बागवानों को एचपी शिवा योजना से लाभ मिलेगा. कोरोना काल में भी खेती और बागवानी ने आर्थिकी को संभाला था. वहीं, किसान सभा के अध्यक्ष डॉ. केएस तंवर का कहना है कि प्रदेश में 20 फीसदी जोत सिंचाई सुविधा के अंतर्गत है. ऐसे में कृषि व बागवानी सेक्टर कैसे फल-फूल सकता है. जब तक हर खेत को सिंचाई का पानी नहीं मिलेगा, तब तक सूखे की समस्या से निजात नहीं मिल सकती.
सब मिशन ऑन एग्रीकल्चर मैकेनाइजेशन वरदान:विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार बागवानी विभाग की सब मिशन ऑन एग्रीकल्चर मैकेनाइजेशन (एसएमएएम) किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है. इसके लिए किसानों को उपकरणों पर 50 हजार रुपए की सब्सिडी मिल रही, लेेकिन अगर किसानों का समूह पंजीकृत हो तो मशीनों का भी बैंक बना सकते हैं. उस स्थिति में उन्हें 80 फीसद तक की सब्सिडी देने का प्रावधान है. 9- 10 मशीनों तक 8 लाख तक की आर्थिक सहायता मिलेगी. शिमला में ही दो मामलों में किसानों ने नई मिसाल पेश की है. उन्होंने पैसे एकत्र कर पहले मशीनें खरीदी, फिर विभाग से सब्सिडी हासिल की. अब बीज, बुआई से लेकर खेतीबाड़ी के तमाम कार्य मशीनों से हो रहे हैं. इससे समय की बचत तो हो रही है, कृषि लागत भी कम हुई, जो कार्य मैनुअल आधार पर दो दिन में होता था, अब दो घंटे में हो रहा है.
जय किसान बागवान समूह ने 9 मशीनें खरीदी:शिमला के गुम्मा क्षेत्र में जय किसान बागवान समूह देयांगल ने 9 मशीनें खरीदी,सभी गुणवत्ता वाली है, पहले इसकी स्वीकृति प्राप्त की. पैसे एकत्र किए. 10 लाख का खर्चा आया. 15 दिनों के अंदर सब्सिडी समूह के बैंक खाते में आ गई. यही नहीं बागवानी निदेशक डॉ .आरके परूथी ने देयांगल में फार्म की व्यवस्था खुद जांची. उन्होंने किसानों की पहठ थपथपाई. उन्होंने कहा कि ऐसे किसान दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनेंगे.

दो समूह को सब्सिडी मिली:बागवानी विभाग के उपनिदेशक डॉ. डीआर शर्मा ने कहा कि यह योजना 2018-19 में आई थी. तब से 738 किसानों को लाभ हुआ है. अब मशीनों के बैंक पर जिले में दो समूह को 80 फीसद की सब्सिडी मिली है. देयांगल शिमला के किसान भोपाल वर्मा ने बताया कि नर्सरी, जुताई, बुआई से लेकर सिंचाई तक सब अब मशीनों से हो रही है. बागवानी विभाग ने 8 लाख कह सब्सिडी दी है. पहले ही स्वीकृति ले ली थी, इस कारण सब्सिडी के लिए कोई चक्कर नहीं काटने पड़े. सब्जी उत्पादन में लेबर की जरूरत नहीं रहती है. कई व्यक्तियों का काम अकेले मशीन करती है.

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