शिमला: समय के इस दौर में दुनिया भर में लोक संस्कृति को जानने की जिज्ञासा बढ़ी है. सोशल मीडिया पर भी ब्लॉगिंग के जरिए लोग देश के विभिन्न हिस्सों की लोक कलाओं, संस्कृति आदि को उजागर किया जा रहा है. पर्यटन के क्षेत्र में लोक कलाएं (tourist areas in himachal) और लोक व्यंजन विख्यात हो रहे हैं. हिमाचल सरकार भी देवभूमि की विविधता पुर्ण संस्कृति को दुनिया के सांस्कृतिक नक्शे पर ले जाने की तैयारी कर रही है. हिमाचल सरकार राज्य में अलग-अलग तरह की पहचान वाले 75 गांवों को चिन्हित कर रही है.
ऐसे गांवों संस्कृति को देश और दुनिया के सामने लाया जाएगा. देश की आजादी के 75 साल पूरा होने पर आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav In Himachal) मनाने की तैयारियां हो रही हैं. हिमाचल सरकार भी इसी संदर्भ में एक बड़ी कार्य योजना लागू कर रही है. पूरे राज्य में विशिष्ट पहचान वाले 75 गांवों का चयन किया जा रहा है. इन गांवों की संस्कृति ऐतिहासिक पृष्ठभूमि लोक कलाएं, लोक व्यंजन, लोक गीत और लोक नृत्यों सहित अन्य पहलुओं को समेटा जाएगा. इन गांवों पर लघु वृत्त चित्र बनाए जाएंगे साथ ही छोटी-छोटी पुस्तिकाओं के माध्यम से पर्यटन केंद्रों पर आने वाले पर्यटकों को आकर्षित किया जाएगा.
सीएम जयराम ठाकुर कर रहे हैं प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग: मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर खुद इस प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग कर रहे हैं. यदि इस मैगा प्रोजेक्ट की पृष्ठभूमि देखें तो पिछले साल राज्य सरकार ने अपनी कल्चर पॉलिसी घोषित की थी. इस बार बजट सत्र में सरकार ने इसके लिए 2 करोड़ रुपए की आरंभिक राशि के साथ कल्चर्ल फंड स्थापित किया है. इस पूरे प्रोजेक्ट को हिमाचल प्रदेश का भाषा विभाग और राज्य सरकार की कला संस्कृति और भाषा अकादमी संचालित करेगी. उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भाषा अकादमी के अध्यक्ष हैं. उन्होंने संबंधित अधिकारियों को इस पूरे प्रोजेक्ट की फाइनल रिपोर्ट जल्द पेश करने के निर्देश दिए हैं.
हिमाचली संस्कृति की विशेषता:हिमाचल प्रदेश में 2 जनजातीय जिलों सहित कुल 12 जिले हैं. इसके अलावा चंबा जिले का कुछ हिस्सा भी जनजातीय क्षेत्र के तहत आता है. हिमाचली संस्कृति की विशेषता देव संस्कृति के तौर पर भी पहचानी जाती है. यदि जनजातीय जिला किन्नौर की बात की जाए तो यहां का इतिहास पौराणिक समय से जुड़ता है. किन्नौर के देवी देवता अद्भुत हैं. यहां नाग परंपरा का भी वर्णन है इसी तरह जनजातीय जिला लाहौल स्पिति में मृकुल देवी मंदिर अपनी विलक्षणता के लिए प्रसिद्ध है. किन्नौर में फुलाइच जैसे अनूठे किस्म के त्योहार हैं. इसी तरह चम्बा के जनजातीय क्षेत्र भरमौर को ब्रह्मपुर के नाम से जाना जाता था. चम्बा में ही पंगवाल संस्कृति है.
हिमाचल के हर जिले में अलग अलग किस्म के लोक व्यंजन बनाये जाते हैं. प्रदेश में लोक आभूषण भी प्रसिद्ध हैं. इसी तरह लोक नृत्य और लोक गीत भी विविधता पूर्ण हैं. ऐसे सभी पहलुओं को समेटने वाले अलग-अलग जिलों के 75 गांव चिन्हित (75 villages of Himachal on cultural map) किये जा रहे हैं. इन सभी गांवों को दस्तावेज तैयार किया जायेगा. इसे देश के पर्यटन सर्किट से भी जोड़ा जाएगा. हिमाचल सरकार का लक्ष्य हर साल 2 करोड़ से अधिक सैलानियों को यहां आकर्षित करने का है. यह परियोजना इस लक्ष्य को हासिल करने में मददगार साबित होगी. उल्लेखनीय है कि हिमाचल सरकार ने पहली बार अपनी संस्कृतिक नीति घोषित की है. अभी तक हिमाचल की कोई कल्चरल पालिसी नहीं थी.
इन जिलों में होता हैं लोकनाट्य करयाला का मंचन: इस नीति का अनुसार लोक नाट्य करियाला के अलावा कुल्लू में लोक नाट्य हारण, मंडी में बांठड़ा, ऊना में भोहरा, बिलासपुर में धाजा सहित ठोड़ा, बरलाज को लोकप्रिय बनाने के लिए सुझाव दिए गए हैं. यहां खास बात यह है कि लोकनाट्य करियाला का कोई तयशुदा संवाद नहीं होता. इसमें मौके पर ही सवाल भी होते हैं और जवाब भी. यह चुटीला व्यंग्य करता है. प्रदेश में सोलन सिरमौर व शिमला में लोकनाट्य करयाला का मंचन होता है. कई मंडलियां इसे मंचित करती हैं. सैलानियों को इस लोक नाट्य की महत्वपूर्ण बातें बताई जाएंगी. साथ ही लोक कलाओं का दस्तावेजीकरण होगा.