किन्नौर: जिला किन्नौर का चारंग गांव चीन सीमा के साथ सटा हुआ है. जहां पर पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. इसके अलावा इस गांव को धर्म की भूमि भी कहा जाता है. इस गांव में जंगली जानवरों को मारना पाप है और गांव के सीमांत क्षेत्र में स्थित रांगरिक संगमा माता का हजारों वर्ष पुराना ऐतिहासिक मंदिर भी है जहां पर बौद्ध धर्म व सनातन का अटूट रिश्ता है.
आइए आज चारंग गांव के ऐतिहासिक रांगरिक माता के विषय में ग्रामीणों के द्वारा दी गई जानकारियों से आपको रूबरू करवाते हैं. चारंग गांव पुह खंड का दुर्गम क्षेत्र है जो चीन सीमा के साथ सटा हुआ है और काफी ऊंचे क्षेत्र में यह गांव बसा हुआ है. इस गांव में सर्दियों में 8 से 9 फीट तक बर्फबारी होती है और तापमान शून्य से नीचे चला जाता है. इस गांव में नकदी फसल के रूप में केवल आलू व मटर हैं. जिसकी आय से यहां के ग्रामीण अपना जीवन यापन करते हैं. गांव में काफी मेहनतकश लोग हैं.
चारंग गांव के चारों ओर पहाड़ियों पर 12 महीने बर्फ की सफेद चादर रहती है और गांव के चारों और बिल्कुल शांत पहाड़ हैं. जहां विदेशी पर्यटक गर्मियों में घूमने व इस गांव के ऐतिहासिक चीजों के शोध के लिए यहां आते हैं. चारंग गांव से कुछ किलोमीटर दूर चीन के पहाड़ भी देखे जा सकते हैं और गांव की सीमा पर आर्मी व आईटीबीपी के जवान देश की रक्षा में 24 घंटे अपनी ड्यूटी में तैनात रहते हैं. चारंग गांव के ग्रामीणों से जब बात की तो वहां के ग्रामीणों ने बताया कि चारंग गांव में सर्दियों में पहाड़ों से आईबेक्स, हिरण व कई ऐसे जंगली जानवर हैं जो घरों के आसपास रहने के लिए आते हैं और इस गांव में जंगली जानवरों (Hunting banned in Charang village) के शिकार पर प्रतिबंध है.
चारंग गांव में सबसे अहम बात चारंग व चीन सीमांत क्षेत्र में स्थित रांगरिक सुनगमा यानी रांगरिक माता का मंदिर जो हजारों वर्ष से सीमा पर गांव की रक्षा कर रहे हैं. रांगरिक माता की मूर्ति व मंदिर के अंदर किन्हीं कारणों से कैमरे व फोटो लेने पर पूर्ण प्रतिबंध है. ऐसे में आस्था के मद्देनजर केवल मंदिर के बाहरी क्षेत्र को रिकार्ड किया जा सकता है.