कुल्लू:वो मर कर फिर जिंदा होता है. विश्वास करना जरा कठिन है पर हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में होने वाले काहिका उत्सव में हजारों लोगों की आंखों के सामने ऐसा होता है. यहां पर दैवीय शक्ति से एक व्यक्ति को मार दिया जाता है और फिर वही दैवीय शक्ति उसे जिंदा भी कर देती है. यह अविश्वसनीय घटना मंडी व जिला कुल्लू के पहाड़ी ग्रामीण इलाकों में देखने को मिलती है. शिमला, सिरमौर के इलाकों में भी पहले इसी तरह की नरमेध परंपरा का पालन किया जाता था.
इस उत्सव में अगर देवता अपनी शक्ति का प्रमाण नहीं दे पाए और व्यक्ति की मृत्यु हो जाए तो देवरथ को भी उसी व्यक्ति के शव के साथ जलाया जाता है. वहीं, मृतक व्यक्ति की पत्नी को देवता की पूरी संपत्ति सौंप दी जाती है और फिर उस देवता का काहिका उत्सव दोबारा नहीं मनाया जाता है. काहिका उत्सव के दौरान यहां दूर-दूर से लोग मेले में देवता के दर्शन करने और मेले में हिस्सा लेने के लिए आते हैं.
काहिका मेले के दौरान देवता के पुजारी, जिन्हें स्थानीय भाषा में गुर कहा जाता है, देवता की शक्ति का बखूबी प्रदर्शन करते हैं. वे देवता का आवाह्न करते हुए देव वाद्य यंत्रों की धुन पर नृत्य करते हैं. तीन दिन तक चलने वाले इस उत्सव में हजारों साल पुरानी देव संस्कृति का निर्वहन किया जाता है. काहिका उत्सव में जीवन और मृत्यु की चर्चा की जाती है. देवता के गुर (पुजारी) द्वारा जीवन मृत्यु से सम्बंधित कहानी सुनाई जाती है और इस दौरान पाप -पुण्य से सम्बंधित चर्चा होती है.
वास्तव में काहिका उत्सव पाप-पुण्य, जीवन और मृत्यु के चक्कर से छुटकारा पाने का रास्ता दिखाता है. जिन लोगों ने अपने जीवन में कुछ बुरा कर्म, पाप या किसी का अहित अथवा बुरा किया हो तो वे लोग काहिका उत्सव में अपने पाप कर्मो का प्रायश्चित करते हैं. इससे उन्हें उनके बुरे कर्मों से छुटकारा मिल जाता है और वे अपने इस जन्म के पाप से मुक्त हो जाते हैं. काहिका उत्सव के दौरान यहां देव शक्ति को प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है.
उत्सव के अंतिम दिन देव शक्ति से उक्त व्यक्ति जिसे स्थानीय भाषा मे नड़ कहा जाता है वो, देव खेल के समय में मृत्यु को प्राप्त हो जाता है. इस दौरान उसके परिवारजन वहीं पर उपस्थित होते हैं. नड़ की मृत्यु हो जाने पर उसकी पत्नी भी किसी विधवा स्त्री की तरह ही कपड़े पहन लेती है, माथे का सिन्दूर मिटा देती है और कलाई से चूड़ियां भी निकाल देती है. उस समय वहां का माहौल गमगीन हो जाता है, लेकिन कुछ समय बाद देव शक्ति से ही वो पुजारी फिर से जीवित हो जाता है. उत्सव के दौरान यहां लोग सबके सामने, अपशब्द और अश्लील शब्दों का प्रयोग भी करते हैं और एक दूसरे को अपशब्द भी कहते हैं.
यहां लकड़ी से बने लिंगों का प्रयोग किया जाता है. नड़ के परिवार से सम्बंधित महिलाएं और पुरुष इन लिंगों को हाथ में लेकर देव नृत्य करते हैं. इस दौरान इन बातों का कोई बुरा नहीं मानता. माना जाता है कि इन सब क्रियाओं से बुरी शक्तियों का प्रभाव समाप्त हो जाता है और ऐसा करने वालों के पाप भी कम हो जाते हैं. वास्तव में ये सदियों पुरानी देव प्रथाएं हैं.
काहिका उत्सव के दौरान शाम के समय जब दिन ढलने वाला होता है तो उस वक्त इस उत्सव की मुख्य रस्म निभाई जाती है. नड़ का देवता की तरफ से चयन किया जाता है फिर उक्त व्यक्ति यानी नड़ को दैवीय शक्तियों के द्वारा मूर्छित किया जाता है. माना जाता है कि मूर्छित करने के साथ ही उसकी मौत भी हो जाती है.
इस दौरान जौ के आटे को हवा में उछाला जाता है, ताकि कोई बाधा न आए. शव को देवता के मंदिर में ले जाया जाता है और वहां पर देवता का पुजारी मूर्छित नड़ के कान में कहता है कि उसे देवता बुला रहा है और इसी के साथ मूर्छित हुआ नड़ फिर से जीवित हो जाता है.