हमीरपुर: 2790 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने वाले समाजसेवी शांतनु कुमार ने हरिद्वार जाकर एक साथ सामूहिक महा श्राद्ध किया. हरिद्वार में रविवार को शांतनु कुमार ने इस पुण्य कार्य को किया है. पितृपक्ष में अपने (Shantanu Kumar Done Maha Shradh) पितरों के श्राद्ध तो हर किसी ने किए लेकिन गैरों को अपना मान कर शांतनु ने 2790 पुण्य आत्माओं का सामूहिक श्राद्ध कर मिसाल कायम की है.
बंगाल से हमीरपुर तक का सफर:आपको बता दें कि शांतनु मूल रूप से बंगाल के रहने वाले हैं. शांतनु बताते हैं कि सन् 1990 से उन्होंने समाज सेवा शुरू की थी. वो 1980 में अपने पिता के साथ में हमीरपुर आए थे. उनके पिता यहां पर सरकारी नौकरी करते थे और तब उनका पूरा परिवार हमीरपुर में ही बस गया. यहां रहने के बाद उन्होंने समाज सेवा का मन बनाया और इसी में जुट गए.
ऐसे आया लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने का ख्याल: उन्होंने बताया कि उनके अंदर समाज सेवा की भावना हमीरपुर में हुए एक हादसे के बाद शुरू हुई थी. दरअसल पुलिस जवान हमीरपुर में एक लावारिस शव को जला रहे थे और इसी दौरान शांतनु कुमार भी वहां पहुंचे और उन्होंने पुलिस जवानों से बातचीत की. शांतनु बताते हैं कि यही वो पल था जब उनके मन में लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने की इच्छा (funeral of unclaimed dead bodies) उत्पन्न हुई. दरअसल उसी दौरान उन्हें पता चला कि पुलिस द्वारा लावारिस शवों को जला तो दिया जाता है लेकिन इनका हिंदू परंपरा के अनुसार अस्थि विसर्जन करने की कोई व्यवस्था नहीं है. यहीं से शांतनु कुमार के अंदर इस कार्य को करने की प्रेरणा जागृत हुई.
समाजसेवा के लिए नहीं की शादी:शांतनु कुमार ने समाज सेवा के लिए अविवाहित रहने का निर्णय लिया. जब उन्हें पता चलता है कि कहीं पर लावारिस शव पड़ा है तो वह अपने मकसद के लिए निकल पड़ते हैं और शव का अंतिम संस्कार करवाने के बाद हरिद्वार में अस्थियां विसर्जन करके वापस लौटते हैं. शांतनु से जब पूछा गया कि उन्होंने शादी क्यों नहीं कि तो उन्होंने जवाब दिया कि परिवार और समाजसेवा एक साथ नहीं चल सकते. यही वजह है कि उन्होंन आजीवन शादी न करने का फैसला लिया ताकि वह समाज सेवा के इस कार्य को बिना रूके और बिना किसी समस्या के निभा सकें.