हमीरपुर:कोविड काल में जीवनदायिनी ऑक्सीजन के महत्व का अंदाजा सबको हो गया है. संकट काल के इस दौर में अस्पतालों में ऑक्सीजन की सप्लाई और इसकी उपलब्धता को लेकर कई तरह की दिक्कतें पेश आई थीं. अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडर को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में भी बेहद परेशानियों का सामना करना पड़ा था. ऐसे में मामूली सी लगने वाली दिक्कत कई दफा कई जिंदगियों पर भारी पड़ गई थी.
दो भाइयों ने बनाई इलेक्ट्रिक ट्रॉली:ऑक्सीजन सिलेंडर का वजन बहुत ज्यादा होता है जिसकी वजह से अस्पताल में एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक ले जाने में कड़ी मशक्कत कर्मचारियों को करनी पड़ती है. ऐसे (NIT Hamirpur students made electric trolley) में एनआईटी हमीरपुर में पढ़ाई कर रहे दो सगे भाइयों रजत और अमन ने ऑक्सीजन सिलेंडरों के लिए इलेक्ट्रिक ट्रॉली बनाकर मिसाल पेश की है. अक्सर अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडर मरीजों तक पहुंचाने में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इसी समस्या से निजात दिलाने के लिए एनआईटी हमीरपुर सायंत्रिक विभाग में पढ़ाई कर रहे दो भाइयों ने यह काम किया है.
1 घंटे में 7 KM का सफर, कंट्रोलिंग करना भी आसान:एनआईटी के छात्र रजत ने बताया कि इस ट्रॉली को चलाना बेहद ही आसान है. जिस तरह स्कूटर में रेस दी जाती है उसी तरह इसमें भी वैसा ही करना है. उन्होंने बताया कि कि जिला प्रशासन के सहयोग से आईओ 2 ट्रॉली को बनाना संभव हो पाया है. रजत की मानें तो यह इलेक्ट्रिक ट्रॉली (electric trolley to carry oxygen cylinder) एक घंटे में सात किलोमीटर का सफर तय कर सकती है. जिसे एक स्कूटर की तरह एक्सीलेटर देकर चलाया जा सकता है. इलेक्ट्रिक ट्रॉली में पुरुषों सहित महिलाएं भी आसानी से ऑक्सीजन सिलेंडर ले जा सकती हैं.
25 दिनों में किया था डिजाइन तैयार:छात्र रजत ने बताया कि ट्रॉली के डिजाइन को बनाने में 25 दिन का समय लगा था जिसके बाद टौणी देवी अस्पताल में इसका ट्रायल भी किया गया था. वहीं, अब इसका नया वर्जन विकसित किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इस ट्रॉली को बनाने में करीब 75 से 77 हजार रूपये का खर्चा आया है. उन्होंने बताया कि अभी सिंगल डिजाइन तैयार हुआ है इस वजह से कीमत अधिक है लेकिन जैसे ही प्रोडक्शन ज्यादा होगी तो कीमत में कमी आएगी.