धर्मशाला:तिब्बत पर 8वें विश्व सांसद सम्मेलन (8th World Parliamentarian Conference on Tibet) के उद्घाटन के दौरान तिब्बत में महान उपाध्याय शांतरक्षित की भारतीय संस्कृति के पहलुओं की स्थापना को याद करते हुए तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा की हमने उस संस्कृति को इस हद तक आत्मसात कर लिया है कि छोटे बच्चों के रूप में भी तिब्बती करुणा व्यक्त करते हैं. लेकिन यह अच्छी प्रथा केवल तिब्बतियों तक ही सीमित नहीं है, हम दूसरों को प्रेम और करुणा के महत्व से अवगत करा सकते हैं. उन्होंने कहा कि इन तरीकों में पारंगत तिब्बती ऐसा करते रहे हैं और उन्हें उस लक्ष्य में योगदान देना जारी रखना चाहिए, क्योंकि हमारे पास ऐसा करने का अवसर है.
उन्होंने कहा कि मुद्दे केवल तिब्बत से संबंधित नहीं है, पूरी दुनिया स्वाभाविक रूप से शांति चाहती है और शांति एक अच्छे दिल में निहित है. उन्होंने कहा कि यह उन सभी स्तनधारियों के लिए सच है, जिनकी माताएं उनके जन्म के समय से ही प्यार और स्नेह से उनकी देखभाल करती हैं. हर किसी की तरह तिब्बती भी इंसान हैं, जिसका पालन-पोषण हमारी मां के प्यार और स्नेह के आधार पर हुआ है. तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा (Tibetan spiritual leader the Dalai Lama) ने कहा की हम तिब्बती दूसरों के लिए एक उदाहरण स्थापित कर सकते हैं.
उन्होंने कहा कि यदि हम अपनी संस्कृति और मूल्यों को अधिक व्यापक रूप से विस्तारित कर सकते हैं, तो मुझे पूरा यकीन है कि इससे बहुत से लोगों को लाभ होगा. दलाई लामा ने कहा कि मैं किसी से बौद्ध धर्म का प्रचार करने का आग्रह नहीं कर रहा हूं, लेकिन मैं एक दयालु हृदय विकसित करने की बात कर रहा हूं. उन्होंने तिब्बती संस्कृति में गहराई से निहित प्रेम और करुणा पर विस्तार से कहा की तिब्बती संस्कृति चित्त और भावनाओं के कार्य की समझ से संबंधित है, यह केवल देवताओं या नागों का आह्वान करने के लिए अनुष्ठानों के बारे में नहीं है और यहां तक कि जो उन पर विश्वास नहीं करते हैं, वे भी अधिक खुश होंगे. अब तक निर्वासन में रहकर भी कई अन्य लोगों के सहयोग से हमने अपनी क्षमता के अनुसार अपनी विरासत को सुरक्षित रखा है और इसका कुछ फल भी मिला है.