धर्मशाला: सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 'शिक्षा का भारतीय स्वरूप' विषय पर बुधवार को संगोष्ठी आयोजित की गई थी. जिसकी अध्यक्षता प्रदेश के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने की. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) भारतीय सोच, संस्कृति, इतिहास और मूल्य को आगे बढ़ाने वाली है, जिसमें हम सब को योगदान देना है ताकि यह राष्ट्र पुनः विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठापित हो सके.
उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में हमें मूल रूप से किस दिशा में आगे बढ़ना है, इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है. भारतीय सोच हमें दुनिया में अलग पहचान देती है ’कन्या पूजन’ तथा ’अंतरराष्ट्रीय कन्या शिशु दिवस’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यही सोच औपचारिकता से ज्यादा हमें वास्तविकता की ओर ले जाती है. आज की शिक्षा हमें हमारी संस्कृति, परंपरा और जमीन से नहीं जोड़ पाई है. हमारी सोच पढ़-लिख का हमें भारत की मिट्टी में काम करने के लिये आगे नहीं लाती है, सिर्फ नौकरी मांगने के लिए प्रेरित करती है. इसलिए आज यह तय करने की आवश्यकता है कि हमें नौकरी देने वाला बनना है या नौकरी मांगने वाला.
राज्यपाल ने कहा कि मैकाले की गुलाम बनाने की शिक्षा नीति से क्या हम बाहर निकल पाएंगे. इससे बाहर निकलने में सिर्फ नई शिक्षा नीति हमारी मदद कर सकती है. इस नीति में शिक्षण संस्थानों के विकास, हमारी संस्कृति के विचारों का प्रावधान और हमारी संस्कृति, भाषा का ध्यान रखा गया है. 1947 में हमें राजनीतिक आजादी तो मिली, लेकिन अंग्रेजों की दी हुई सोच से आजाद नहीं हो पाए.