हिमाचल प्रदेश

himachal pradesh

ETV Bharat / city

हजारों साल पहले चंबा में हुआ था लक्ष्मी नारायण मंदिर का निर्माण, बड़े से बड़ा भूकंप भी नहीं हिला सका इनकी नींव - raja sahil verman

भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर राजा साहिल वर्मन ने 10वीं शताब्दी में बनवाया था. यह मंदिर शिखर शैली में निर्मित है.मंदिर में एक विमान और गर्भगृह है. मंदिर का ढांचा मंडप के समान है. मंदिर परिसर में कुल छह मंदिर हैं. सबसे पहला भव्य व विशाल मंदिर भगवान लक्ष्मी नारायण का है. जब कोई भी व्यक्ति मंदिर में प्रवेश द्वार पर पहुंचता है तो उसे सीधा भगवान विष्णु की विशाल संगमरमर की प्रतिमा के दर्शन हो जाते हैं.

story-on-lakshmi-narayan-temple-of-chamba
फोटो.

By

Published : Sep 23, 2021, 3:40 PM IST

Updated : Oct 10, 2021, 3:41 PM IST

चंबा: चंबा जिले में स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर पांरपरिक वास्तुकारी और मूर्तिकला का उत्कृष्‍ट उदाहरण है. चंबा के छह प्रमुख मंदिरों में से यह मंदिर सबसे विशाल और प्राचीन है. यह मंदिर हजारों साल पुराना है. भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर राजा साहिल वर्मन ने 10वीं शताब्दी में बनवाया था. यह मंदिर शिखर शैली में निर्मित है. मंदिर में एक विमान और गर्भगृह है. मंदिर का ढांचा मंडप के समान है. मंदिर परिसर में कुल छह मंदिर हैं. सबसे पहला भव्य व विशाल मंदिर भगवान लक्ष्मी नारायण का है. जब कोई भी व्यक्ति मंदिर में प्रवेश द्वार पर पहुंचता है तो उसे सीधा भगवान विष्णु की विशाल संगमरमर की प्रतिमा के दर्शन हो जाते हैं.

विशाल सिंहासन पर निर्मित भगवान विष्णु की भव्य संगमरमर की चतुर्भुज प्रतिमा अवलोकनीय है. सिंहासन के एक ओर भगवान श्री गणेश और दूसरी तरफ भगवान बुद्ध की प्रतिमा है. सिंहासन के समक्ष वाली चौड़ी पट्टी पर मध्य में गरुड़ है और दोनों ओर शेरों के मुख दिखाए हैं. इस मंदिर के बिलकुल साथ इस समूह का दूसरा मंदिर राधा कृष्ण का है. ये इस मंदिर से छोटे आकार का है. गर्भगृह में राधा व भगवान कृष्ण की संगमरमर की सुन्दर प्रतिमाएं स्थापित है. ये प्रतिमाएं चांदी के पत्थरों से जड़े सिंहासन पर विद्यमान है. भगवान कृष्ण की प्रतिमा चतुर्भुजी है. मंदिर का दरवाजा अधिकतर बंद रहता है, लेकिन दरवाजे में मोटे मोटे सरिये लगे है जिनके मध्य से ये प्रतिमाएं स्पष्ट देखी जा सकती हैं.

वीडियो.

राधा कृष्ण मंदिर इस वर्ग का अपेक्षाकृत नवीन मंदिर है जिसे राजा चंबा जीत सिंह की विधवा रानी शारदा ने बनवाया था. इस समूह का तीसरा मंदिर चन्द्रगुप्त महादेव का है. यह मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर के साथ ही बनाया गया है जो 10वीं व 11वीं शताब्दी का है. यह मंदिर उस समय भी विद्यमान था जब साहिल वर्मन ने यहां अन्य मंदिरों की स्थापना की थी. इस मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग है, जिसके उपर चांदी का छत्तर लगा हुआ है. भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर इस समूह का प्राचीनतम मंदिर है.

भगवान शिव को ही समर्पित गौरीशंकर महादेव का चौथा मंदिर है. यह मंदिर प्राचीनता की दृष्टि से तीसरे स्थान पर है. गर्भगृह में कांसे की भगवान शिव को समर्पित मूर्ति, कला का अभूतपूर्व उदाहरण है. इसमें पीछे नंदी दिखाया गया है. बताया जाता है की प्रतिमा राजा साहिल वर्मन के पुत्र युगाकार वर्मन ने 11वीं शताब्दी में बनवायी थी. मूर्ति चतुर्भुजी है, जिसके सामने शिवलिंग स्थापित है.

पांचवा मंदिर अम्बकेश्वर महादेव को समर्पित है. इसे त्रिमुकतेश्वर के नाम से भी जाना जाता है. इसके गर्भगृह में त्रिमुखी शिवलिंग स्थापित है. यह संगमरमर का है जो शिखर पिरामिड के आकार का है. इसके पीछे दीवार के साथ कई छोटी-छोटी प्रतिमाएं है. छठा मंदिर लक्ष्मी दामोदर के नाम से विख्यात भगवान विष्णु को समर्पित है. इसके गर्भगृह में भगवान विष्णु चतुर्भुजी प्रतिमा संगमरमर की बनी है. ये मंदिर चंबा नगर के इतिहास और धर्म के मूक दर्शक हैं. हिमाचल प्रदेश में शिखर और नगर शैली के मंदिरों में लक्ष्मी नारायण मंदिर विशाल माना जाता है.

इस मंदिर में स्थापित भव्य संगमरमर की प्रतिमा के बारे में एक रोचक कथा कही जाती है. बताया जाता है कि जिन संगमरमर के पत्थरों से ये प्रतिमाएं बनाई गयी हैं उन्हें विंध्याचल पर्वत से राजा ने अपने नौ पुत्रों द्वारा मंगवाया था. लेकिन जब मूर्ति निर्माण के समय उन पत्थरों को काटना शुरू किया गया तो उसमें मेंढक निकल आया. इसलिए विष्णु की प्रतिमा के निर्माण के लिए यह अपशगुन माना गया. इसलिए इन प्रतिमाओं से विष्णु की प्रतिमाएं न बनाकर अन्य प्रतिमाएं बनायीं गई. जिनमें भगवान शिव की त्रिमुखी शिवलिंग, जो अम्बकेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित है, भगवान गणेश व लक्ष्मी माता की प्रतिमाएं प्रमुख हैं.

इसके बाद साहिल बर्मन ने दोबारा अपने पुत्रों को संगमरमर के पत्थरों के लिए भेजा, लेकिन उन्हें रास्ते में ही लुटेरों द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया. राजा ने फिर एक बार फिर पत्थर लाने के लिए अपने पुत्र युगाकार को इस कार्य के लिए नियुक्त किया. जब युगाकर विध्यांचल से संगमरमर ला रहा था तो उसे भी लुटेरों ने घेरा, लेकिन वो बड़ा बहादुर था. उसने न सिर्फ लुटेरों को मार भगाया बल्कि पर्वत से चट्टानें लाने में सफल हो गया. इन पत्थरों को तराश कर भगवान विष्णु की वह प्रतिमा बनायीं गई जो पहले मंदिर में स्थापित की गई है.

इतिहासकार विनय कुमार शर्मा का कहना है कि लक्ष्मीनारायण मंदिर समूह की खास बात ये है कि ये सभी मंदिर हजारों साल पहले बने हुए हैं. ये सभी मंदिर शिखर शैली में निर्मित हैं. ये मंदिर जितना भव्य है उतना ही रहस्यों से भरा हुआ भी है. चंबा जिला को वैज्ञानिक भूकंप के लिहाज से काफी संवेदनशील मानते हैं. हजार सालों के दौरान हिमालय की इस तलहटी में कई बार धरती डोली है. 1905 में आया भूकंप सबसे विनाशकारी था. वैज्ञानिक भी इस बात को लेकर हैरान हैं कि सात की तीव्रता वाले भूकंप से भी ये मंदिर कैसे बचे रहे.

वहीं, दूसरी और मंदिर के पुजारी शांति दत्त शर्मा का कहना है कि वह राजाओं के समय से इस मंदिर की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं. इस मंदिर में काफी रहस्य हैं और यहां काफी दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. इस तरह का मंदिर पूरे साउथ में कहीं भी देखने को नहीं मिलता है. कहा जाता है कि भूकंप की वजह से मंदिर के तीन खंभे जरूर तीरछे हुए थे जो बाद में अपने आप रहस्यमयी तरीके से सीधे हो गए.

ये भी पढ़ें: प्रदेश में डबल इंजन की सरकार हांफी, मिशन रिपीट बीजेपी का भ्रम: विक्रमादित्य

Last Updated : Oct 10, 2021, 3:41 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details