चंबा:हिमाचल में देवी-देवताओं का वास कहा जाता है. यहां की संस्कृति और परंपराएं काफी अलग हैं. यूं तो प्रदेशभर में बहुत से मेले, त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं, लेकिन शिवभूमि चंबा का मिंजर मेला प्रदेश में ही नहीं, बल्कि पूरे देशभर में प्रसिद्ध है. भगवान लक्ष्मीनाथ और रघुनाथ को मुस्लिम परिवार की ओर से तैयार की गई विशेष मिंजर को अर्पित करने के साथ ही 24 से 31 जुलाई तक चलने वाले मिंजर मेले की शुरुआत हो जाएगी. यह मेला हर वर्ष श्रावण माह के दूसरे रविवार से शुरू होकर सप्ताह भर चलता है.
मिंजर नाम कैसे पड़ा:एक अन्य लोक मान्यता (historical minjar fair of chamba) के अनुसार स्थानीय लोग मक्की और धान की बालियों को मिंजर कहते हैं. इस मेले का आरंभ रघुवीर जी और लक्ष्मीनारायण भगवान को धान और मक्की से बना मिंजर या मंजरी और लाल कपड़े पर गोटा जड़े मिंजर के साथ, एक रुपया, नारियल और ऋतुफल भेट किए जाते हैं. इस मिंजर को एक सप्ताह बाद रावी नदी में प्रवाहित किया जाता है. मक्की की कौंपलों से प्रेरित चंबा के इस ऐतिहासिक उत्सव में मुस्लिम समुदाय के लोग कौंपलों की तर्ज पर रेशम के धागे और मोतियों से पिरोई गई मिंजर तैयार करते हैं, जिसे सर्वप्रथम लक्ष्मीनारायण मंदिर और रघुनाथ मंदिर में चढ़ाया जाता है और इसी परंपरा के साथ मिंजर महोत्सव की शुरुआत भी होती है.
कैसे हुई मिंजर मेले की शुरुआत?: इस मेले की उत्पत्ति को लेकर कई लोक मान्यताएं प्रचलित हैं. बहुत से लोगों का मानना है कि यह त्योहार वरूण देवता के सम्मान में मनाया जाता है. एक मान्यता के अनुसार 10वीं शताब्दी में रावी नदी चंबा नगर में बहती थी और उसके दाएं छोर पर चम्पावती मंदिर एवं बाएं छोर पर हरिराय मंदिर स्थित था. उसी समय चम्पावती मंदिर में एक संत रहे जो हर सुबह नदी पार कर हरिराय मंदिर में पूजा अर्चना किया करते थे. चंबा के राजा और नगरवासियों ने संत से हरिराय मंदिर के दर्शनार्थ कोई उपाय तलाशने का निवेदन किया. तब संत ने राजा और प्रजा को चम्पावती मंदिर में एकत्रित होने के लिए कहा और बनारस के ब्राह्मणों की सहायता से एक यज्ञ का आयोजन किया जो सात दिन तक चला.
ब्राह्मणों ने सात विभिन्न रंगों की एक रस्सी बनाई, जिससे मिंजर (Chamba Minjar fair 2022) का नाम दिया गया, जब यज्ञ सम्पूर्ण हुआ तो रावी नदी ने अपना पथ बदल लिया और हरिराय मंदिर के दर्शन संभव हुए. एक अन्य मान्यता के अनुसार जब चंबा के राजा साहिल बर्मन ने कांगड़ा के राजा को पराजित किया तो उनका नलोहरा पुल पर लोगों द्वारा मक्की की मिंजर के साथ भव्य स्वागत किया गया और मिंजर मेले की शुरुआत हो गई.