चंबा: प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा के साथ ही प्रसिद्ध भरमौर जातर मेले का भी मंगलवार को आगाज हो गया. इस दौरान घराटी परिवार के सदस्य राजेश कुमार ने चौरासी परिसर स्थित एतिहासिक देवदार वृक्ष के शिखर पर झंड़ा चढ़ाने की रस्म निभाई. लिहाजा सात दिनों तक चलने वाले इस आयोजन के दौरान वैश्विक कोरोना माहामारी के चलते महज सदियों से चली आ रही पारंपरिक रस्मों को निभाया जाएगा.
मंगलवार को चौरासी मंदिर परिसर में भरमौर जातर मेले के शुभारंभ के मौके पर विधायक जिया लाल कपूर ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की. इस दौरान विधायक जिया लाल ने चौरासी स्थित प्राचीन शिव मंदिर के अलावा लखना माता और धर्मराज मंदिर समेत अन्यों में पूजा अर्चना की.
इससे पहले चौरासी परिसर में पारंपरिक वाद्य यंत्रों की गूंज के साथ जातर प्राचीन शिव मंदिर पहुंची. जहां पर घराटी परिवार के सदस्य ने देवदार वृक्ष के शिखर पर पहुंच सदियों से चली आ रही झंड़ा चढ़ाने की परंपरा का निर्वाहन किया. इस नजारे को देखने के लिए काफी संख्या में लोग चौरासी परिसर पहुंचे थे. जिसके बाद चौरासी के विभिन्न मंदिरों में वाद्य यंत्रों के साथ जातर पहुंची और यहां पूजा अर्चना की. साथ ही चौरासी परिसर में विराजमान सभी देवी-देवताओं को नए वस्त्र चढ़ाए गए.
ग्राम पंचायत भरमौर के प्रधान अनिल कुमार ने बताया कि बताया कि कि कोरोना माहामारी के चलते इस वर्ष भरमौर जातर मेले की सदियों से चली आ रही परंपराओं को ही निभाया जाएगा. उन्होंने कहा कि सात दिवसीय भरमौर जातर का पहला मेला नरसिंह भगवान, दूसरा शिवजी भगवान, तीसरा लखना माता, चौथा गणेश, पांचवां कार्तिक, छठा शीतला माता, सातवां महंत जय कृष्ण महाराज, आठवां हनुमान का दंगल और डेढ़ दशक से करीब महंत प्रेम नरायण गिरि समर्पित है. लिहाजा जातर के प्रत्येक दिन चौरासी में इससे जुड़ी रस्मों को निभाया जाएगा.
वहीं, विधायक जिया लाल कपूर ने सभी प्रदेशवासियों को मणिमहेश और भरमौर जातर मेले की शुभकामनाएं दी. उन्होंने कहा कि मणिमहेश यात्रा का आगाज आज से ही होता है. उन्होंने कहा कि कोरोना माहामारी के चलते बहुत से श्रद्धालु मणिमहेश डल झील, भरमाणी माता और चौरासी में दर्शनों के लिए चाहते हुए भी नहीं आ सकें.
उन्होंने भगवान भोले नाथ से कोरोना माहामारी के खात्मे की कामना भी की. बता दें कि भरमौर जातर मेले का आयोजन स्थानीय ग्राम पंचायत भरमौर की ओर से किया जाता है. जातर मेले में देश के विभिन्न राज्यों से व्यापारी भरमौर पहुंचते थे और महादंगल का आयोजन भी यहां पर होता रहा है, लेकिन वैश्विक कोरोना महामारी के चलते लगातार दूसरी बार यह आयोजन महज परंपरा का निभाने के लिए ही किया जा रहा है.
ये भी पढ़ें-शिमला की वह खास लाइब्रेरी, जहां जूते-चप्पल के साथ नहीं मिलता प्रवेश