घुमारवीं: शहीदों के चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले वतन पर मरने वालों का यही आखिरी निशान होगा. जी हां घुमारवीं के अंकेश भारद्वाज के शहीद होने के बाद यह बात सही बैठती है. जहां महज 21 साल की उम्र में अंकेश देश की सीमा की रक्षा करता शहीद हो गया. जिस उम्र में बच्चे घर से बाहर निकलते की सोचने लगते हैं.
बेटे की मौत की खबर का न्यूज़ चैनल पर चलने के बाद भी अंकेश (Ankesh Bhardwaj of Seu) के पिता ने हिम्मत नहीं छोड़ी. गमगीन आंखों से शहीद अंकेश के पिता बांचा राम यही कह रहे थे कि फौज की नौकरी दुश्मनों को मारने या दुश्मनों की गोली (Avalanche in Kameng region) छाती पर खाने के लिए ही होती है. उसी के लिए अपने बेटे को तैयार किया था, लेकिन दुख इस बात का है कि बेटा प्राकृतिक आपदा में मारा गया. अगर बेटा दुश्मन के हाथों मारा जाता तो गर्व होता. तब दुख नहीं होता.
बेटे के मौत से अंदर ही अंदर टूट चुके पिता ने बताया कि जब उन्हें अपने बेटे की गुमशुदगी की खबर लगी तो उन्होंने आदेशा लगा लिया था कि कोई बड़ी घटना हो गयी है, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी. अपने बेटे को (Himachal jawan Ankesh) सुबह चार बजे उठाना और दौड़ लगाने को भेजना जब बेटा वापस आता तो अपने हाथों से उसकी मालिश करना. यह सब सोच कर पिता अपने आसूओं की धारा को रोकने का प्रयास कर रहा था.
मंगलवार को शाम के समय जैसे हो सभी सैनिकों के शहीद होने की खबर फैलने लगी तो पिता ने आस नहीं छोड़ी. आधिकारिक पुष्टि का इंतजार करते हुए मंगलवार की रात निकाल दी. जब से बेटे के लापता होने की खबर आई उस समय के बाद एक पल के लिए भी आंख नहीं झपकी.