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सुनिए देश की आजादी की कहानी 101 साल के स्वतंत्रता सेनानी खुशीराम की जुबानी

15 अगस्त को भारत देश अपनी आजादी का 73वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है. आज हम आजादी की सांस ले रहे हैं उसके पीछे ना जाने कितने देश के दीवानों और आजादी के परवानों ने अपनी कुर्बानियां दी है. देश की आजादी की लड़ाई के लिए अंग्रेजों की यातनाएं सहने वाले कुछ स्वतंत्रता सेनानी आज भी हमारे बीच मौजूद हैं. जो देश के आजाद होने से पहले की तस्वीर को बयां करते हैं.

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Published : Aug 10, 2019, 11:59 PM IST

101 साल के स्वतंत्रता सेनानी खुशीराम की कहानी

करनालःस्वतंत्रता सेनानी खुशीराम की उम्र इतनी हो चुकी है कि कुछ बातें याद हैं तो कुछ नहीं. हालांकि उन्हें जो याद है वो उन्होंने हमसे साझा किया. जब देश पर अंग्रेजों का कब्जा था तो कई क्रांतिकारियों ने युवाओं के साथ मिलकर अलग-अलग आंदोलन चलाए. इन आंदोलन में खुशीराम भी शामिल थे. 1942 में महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में भी खुशी राम ने हिस्सा लिया. सन 1936 से लेकर 47 तक का समय बहुत ही कठिन था लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी.

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भारत छोड़ो आंदोलन में भी लिया हिस्सा

1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी खुशी राम ने हिस्सा लिया. उन्होंने बताया मंदिर के रसोइए ने क्रांतिकारी आंदोलन में उन्हें जोड़ा और जुल्म के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की. करनाल के गांव सालवन में जन्मे खुशीराम अपने परिवार के साथ करनाल के बसंत बिहार में रहते हैं. उम्र इतनी हो चुकी है कि कुछ बातें याद है तो कुछ नहीं लेकिन वो बताते हैं कि कैसे उस दौर में उन्होंने जेल में सजा काटी और अंग्रेजों की यातनाएं सही.

6 महीने जेल में रहे खुशीराम

उन्होंने बताया कि सालवन गांव में एक दौर ऐसा आया जब गांव के लोगों पर खूब जुल्म हुए. उन्हें मारा-पीटा गया जिसमें खुशीराम और उनके साथी भी शामिल थे. यही नहीं हैदराबाद की जेल में खुशीराम ने 6 महीने सजा भी काटी. जहां पर अंग्रेजों ने उनके हाथ को गरम दाल में डाल कर जला दिया था. जिसकी वजह से आज उनके हाथ में बहुत दिक्कत है.

प्रशासन से मांग

खुशीराम के दो बेटे हैं और दोनों ही उनकी खूब सेवा करते हैं. बता दें कि देश की आजादी के लिए खुशीराम को ताम्रपत्र से भी नवाजा गया है लेकिन आज उनके हालात कुछ ठीक नहीं है. 15 साल से वे बिस्तर पर ही हैं. उनके बेटे जगविंदर ने भी प्रशासन से कुछ मांग की है. जगविंदर ने बताया कि उनके पिता की उम्र 100 साल से भी ऊपर हो चुकी है, जिससे उनका शरीर भी काफी कमजोर है. उन्होंने बताया कि खुशीराम को इलाज के लिए बाहर ले जाने से पहले भी सौ बार सोचना पड़ता है क्योंकि उनके घर के बाह बनी गलियों का बुरा हाल है. जिससे बाहर मेन सड़क तक जाने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जगविंदर ने प्रशासन से इन गलियों की हालत को दुरुस्त करवाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि ये सिर्फ हमारे लिए ही नहीं जो लोग इन गलियों में रहते हैं समाज हित में ये जरूरी है. 101 साल की उम्र में भी स्वतंत्रता सेनानी खुशीराम देश के लिए मर मिटने को तैयार हैं. खुशीराम का ये जज्ब देश के युवाओं को भी प्रेरित करता है.

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