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कारगिल विजय: हरियाणा के एक 'हीरो' ज़ाकिर हुसैन की अनकही दास्तां

फरीदाबाद के गांव सोपता के रहने वाले जाकिर हुसैन बचपन से ही देश के लिए कुछ कर गुजरने की चाहत रखते थे. उनके दोस्त उन्हें आज भी याद करते हैं. आज भी गांव में शहीदी दिवस पर उनको याद किया जाता है. गांव में उनके नाम पर एक सरकारी स्कूल भी बनाया गया है.

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Published : Jul 18, 2019, 7:04 PM IST

Updated : Jul 18, 2019, 9:27 PM IST

कारगिल युद्ध: हरियाणा के एक 'हीरो' की ज़ाकिर हुसैन की अनकही दास्तां

फरीदाबाद: साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध को कौन भुला सकता है? जब देश के हजारों वीर जवानों ने बॉर्डर पर अपना लहू, पानी की तरह बहा दिया था, मगर मुल्क पर आंच नहीं आने दी. ऐसे ही देश के परवानों में शामिल थे, फरीदाबाद के गांव सोपता के रहने वाले जाकिर हुसैन.

देखिए विशेष रिपोर्ट

जब किसान का बेटा बॉर्डर पर पहुंचा
शहीद जाकिर हुसैन का जन्म 6 जून 1969 में गांव सोपता में एक किसान परिवार में हुआ. जाकिर हुसैन का परिवार बेहद गरीब सा और उनके पिताजी कृषि से उनका पालन पोषण कर रहे थे. जाकिर हुसैन के दो अन्य भाई भी हैं. जाकिर हुसैन ने अपनी दसवीं तक की पढ़ाई पड़ोस के गांव सीकरी में बने सरकारी स्कूल से की. 1982 में जाकिर हुसैन करने का रजिया के साथ हुई. शादी के बाद 1988 में जाकिर हुसैन ने फौजी मैं भर्ती कंप्लीट कर ली. जाकिर हुसैन जिस समय फौज में भर्ती हुए उस समय उनकी आयु केवल 19 वर्ष थी. 1999 पाकिस्तान के साथ हुई कारगिल के युद्ध में जाकिर हुसैन शहादत को प्राप्त हुए.

वो दोस्त याद करता है अपने जांबाज यार को
ईटीवी भारत पर बातचीत करते हुए जाकिर हुसैन के सहपाठी रहे शरीफ खान ने बताया कि जाकिर हुसैन बेहद सरल स्वभाव का व्यक्ति था. उनका कहना है कि वह शुरू से ही फौज में भर्ती होना चाहता था. स्कूल के समय में वह अपने दोस्तों से फौज के बारे में चर्चा किया करता था.उनका कहना है कि शहीद जाकिर हुसैन में बचपन से ही देशभक्ती की भावना थी.

आज भी याद करती है एक पत्नी अपने शोहर को
शहीद जाकिर हुसैन की पत्नी रजिया खान ने बताया कि जाकिर हुसैन शादी के बाद लगातार फौज में जाने को लेकर उनसे चर्चा किया करते थे. एक दिन ऐसा आया जब वह फौज में भर्ती हो गए. जब कारगिल का युद्ध हुआ तो उनको केवल यह सूचना दी गई थी कि जाकिर हुसैन के पैर में गोली लगी है और उनको घर लाया जा रहा है. इस सूचना के करीब एक हफ्ते बाद जिला सैनिक बोर्ड के अधिकारी उनके घर पहुंचे. उन अधिकारियों के साथ जाकिर हुसैन का पार्थिव शरीर था. शहीद जाकिर हुसैन जिस समय शहीद हुए उस समय उनके बड़े बेटे अब्दुल की उम्र 9 साल और पुत्र आरिफ की उम्र 6 साल थी. इसके अलावा उनकी डेढ़ साल की एक बेटी और करीब 3 साल की दूसरी बेटी थी. उनकी पत्नी को 2 महीने उम्मीद से थीं.

बेटे याद करते हैं अपने पिता की बहादुरी को
शहीद जाकिर हुसैन के बड़े बेटे अब्दुल ने बताया कि उस समय उसकी उम्र करीब 9 साल थी. उनके परिवार के लोग पापा को लेने दिल्ली जाने वाले थे, लेकिन वह जा नहीं पाए और जिला सैनिक बोर्ड की गाड़ी से पापा के पार्थिव शरीर को लाया गया. उनको पिताजी की शहादत पर गर्व है, लेकिन पिताजी की कमी हमेशा उनको खलती रहेगी.

अब्दुल ने कहा पिताजी की याद में गांव में ही एक सरकारी स्कूल है. उनकी शहादत की याद में कारगिल दिवस पर शहीदी दिवस मनाया जाता है. यह उनके लिए सम्मान की बात है. उन्होंने कहा कि अब वह चाहते हैं कि उनका छोटा भाई आर्मी में जाकर देश की सेवा करें. उनका कहना है कि बहुत जल्दी ही उसका छोटा भाई आर्मी में शामिल होकर देश की सेवा करेगा.

देश के लिए शहीद जाकिर हुसैन ने जो कुछ भी दिया. उनके परिवार ने जितना संतोष किया. उसका कर्जदार हमारा देश हमेशा रहेगा और ऐसे वीरों को अपने दिल से कभी नहीं मिटने देगा, क्योंकि जब तक हमारे देश में शहीद जाकिर हुसैन जैसे सपूत हैं. तब तक हमारा देश है. तब तक हम हैं.

Last Updated : Jul 18, 2019, 9:27 PM IST

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