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जीवनशैली बदलने की चेतावनी है डायबिटीज

आज कल की भाग दौड़ वाली जीवन शैली में स्वास्थ समस्या आम बात हो गई है. लोग कई छोटी-बड़ी बीमारियों से घिरे हुए है. मधुमेह या डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है, जो अब हर उम्र के लोगों में पाई जाती है. वहीं इसके इलाज को लेकर लापरवाही भी बरती जा रही है.

impact of lifestyle on diabetes
डायबिटीज पर जीवनशैली का प्रभाव

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Published : Jul 7, 2020, 12:35 PM IST

Updated : Jul 8, 2020, 9:35 AM IST

मधुमेह यानि डायबिटीज आधुनिक जीवन शैली के पार्श्व प्रभावों में से एक है. एक समय था जब मधुमेह को उच्चवर्गीय बुजुर्ग लोगों की बीमारी कहा जाता था, लेकिन आज ये बीमारी वर्ग और उम्र की सीमाओं को तोड़ चुकी है. आज इसके शिकार बच्चे-बूढ़े, अमीर-गरीब हर उम्र और वर्ग के लोग बन रहे है. देर से सोना, देर से जागना, असमय और अपौष्टिक भोजन ग्रहण करना, व्यायाम न करना मुख्य कारण है, जो इस असंयमित और अस्वस्थ जीवनशैली की देन है. ऐसे में यदि कोई रोगी मधुमेह जैसी बीमारी से पीड़ित है, तो उसकी परेशानियां और बढ़ जाती हैं. सही इलाज और देखभाल के अभाव में यह बीमारी जानलेवा भी साबित हो सकती है.

इस बारे में जानकारी देते हुए एमडी मेडीसीन डॉ. संजय जैन बताते हैं कि मधुमेह दो प्रकार का होता है, टाइप-1 और टाइप-2. टाइप-1 ज्यादातर अनुवांशिक होता है और इंसूलिन प्रतिरोध की कमी की वजह से होता है. यह ज्यादातर बच्चों में देखने को मिलता है, जबकि टाइप-2, इंसुलिन पर प्रतिक्रिया करने में शरीर की अक्षमता के कारण होता है. पहले टाइप-2 साधारण तौर पर 45 साल से अधिक उम्र वाले लोगों में होता था, लेकिन अब यह उम्र घट कर 30 साल हो गई है. जो वाकई चितनीय है.

उससे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि अधिकांश मधुमेह पीड़ित लोग इस बीमारी की गंभीरता को समझते नहीं है. साथ ही संयमित और अनुशासित जीवन शैली यानि पौष्टिक और परहेज वाला खाना-पीना और कसरत-योग का पालन भी नहीं करते है और यदि करते हैं, तो अपनी सुविधानुसार. जोकि स्वयं रोगी के लिए जानलेवा साबित हो सकता है.

डॉ. जैन बताते हैं कि मधुमेह का स्वरूप विकसित होने पर रोगी को रेटिनोपैथी, नेफ्रोपैथी, न्यूरोपैथी, कीटोएसिडोसिस तथा पुरुषों में नपुंसकता से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं. जिनमें खून में शुगर की मात्रा बढ़ने पर आंखों के पर्दे पर बुरा असर, किड़नी पर असर, नसों पर बुरा असर पड़ सकता है. वहीं कीटोएसिडोसिस एक ऐसी बीमारी है, जिसमें रोगी के खून में शुगर की मात्रा काफी बढ़ जाती है, जिसके फल स्वरूप रक्त में एक अम्लीय पदार्थ बनने लगता है, जिसे कीटोन कहते हैं. कीटोन की अधिकता के चलते रोगी कोमा जैसी स्थिति में भी पहुंच सकता है.

अब समस्या तब बढ़ती है, जब यह पता चलने के बाद की रोगी को मधुमेह की बीमारी है, वह घरेलू नुस्खों और टोटकों को आजमा कर खुद को ठीक करने की कोशिश करता है. उस पर सोने पर सुहागा यह कि डॉक्टर के बताए इंसूलिन और दवाईयों को अपनी सहूलियत के हिसाब से लेने लगता है. डॉ. जैन बताते है कि मधुमेह के सही इलाज के लिए यह भी जरूरी है कि विशेषज्ञ चिकित्सकों से ही इसकी जांच और इलाज कराया जाए. क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि झोलाछाप डॉक्टरों या कम अनुभवी डॉक्टरों के गलत इलाज के कारण भी समस्या ज्यादा बड़ी हो जाए.

मधुमेह के रोगियों के लिए जरूरी है कि वह स्वस्थ एवं संयमित जीवन शैली जियें, चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ही दवाईयों का सेवन करें, तभी वह एक स्वस्थ और लंबा जीवन जी पायेंगे.

Last Updated : Jul 8, 2020, 9:35 AM IST

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