मधुमेह यानि डायबिटीज आधुनिक जीवन शैली के पार्श्व प्रभावों में से एक है. एक समय था जब मधुमेह को उच्चवर्गीय बुजुर्ग लोगों की बीमारी कहा जाता था, लेकिन आज ये बीमारी वर्ग और उम्र की सीमाओं को तोड़ चुकी है. आज इसके शिकार बच्चे-बूढ़े, अमीर-गरीब हर उम्र और वर्ग के लोग बन रहे है. देर से सोना, देर से जागना, असमय और अपौष्टिक भोजन ग्रहण करना, व्यायाम न करना मुख्य कारण है, जो इस असंयमित और अस्वस्थ जीवनशैली की देन है. ऐसे में यदि कोई रोगी मधुमेह जैसी बीमारी से पीड़ित है, तो उसकी परेशानियां और बढ़ जाती हैं. सही इलाज और देखभाल के अभाव में यह बीमारी जानलेवा भी साबित हो सकती है.
इस बारे में जानकारी देते हुए एमडी मेडीसीन डॉ. संजय जैन बताते हैं कि मधुमेह दो प्रकार का होता है, टाइप-1 और टाइप-2. टाइप-1 ज्यादातर अनुवांशिक होता है और इंसूलिन प्रतिरोध की कमी की वजह से होता है. यह ज्यादातर बच्चों में देखने को मिलता है, जबकि टाइप-2, इंसुलिन पर प्रतिक्रिया करने में शरीर की अक्षमता के कारण होता है. पहले टाइप-2 साधारण तौर पर 45 साल से अधिक उम्र वाले लोगों में होता था, लेकिन अब यह उम्र घट कर 30 साल हो गई है. जो वाकई चितनीय है.
उससे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि अधिकांश मधुमेह पीड़ित लोग इस बीमारी की गंभीरता को समझते नहीं है. साथ ही संयमित और अनुशासित जीवन शैली यानि पौष्टिक और परहेज वाला खाना-पीना और कसरत-योग का पालन भी नहीं करते है और यदि करते हैं, तो अपनी सुविधानुसार. जोकि स्वयं रोगी के लिए जानलेवा साबित हो सकता है.