नई दिल्ली: चुनावी वर्ष में सत्ता में काबिज पार्टी के विधायक अपने विधानसभा क्षेत्रों में अधिक से अधिक कामकाज कर जनता के बीच बेहतर छवि बनाने की कोशिश करते हैं. केजरीवाल की पार्टी के विधायक भी इन दिनों कुछ ऐसा ही कर रहे हैं.
चुनावी वर्ष में गैर सरकारी संस्था ने जारी किया विधायकों का रिपोर्ट कार्ड वहीं गैर सरकारी संस्था द्वारा दिल्ली के विधायकों की सालभर की कार्यप्रणाली को लेकर जो रिपोर्ट जारी की गई है. उसके अनुसार विधायकों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है. अगर ये विधायक दोबारा चुनाव मैदान में उतरेंगे तो नतीजे अनुरूप आने में भी संशय है.
'अधिकांश विधायक गैर जिम्मेदार'
विधायकों के कामकाज को लेकर रिपोर्ट तैयार करने वाली संस्था प्रजा फाउंडेशन के निदेशक मिलिंद म्हस्के ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि आम आदमी पार्टी के विधायकों के कार्य करने, सत्र में लोगों के हितों से जुड़े सवाल पूछने, आम लोगों से मिलने एवं विधानसभा में उपस्थिति को लेकर बीते 5 साल में अधिकांश विधायक गैर जिम्मेदार साबित हुए हैं.
मुख्यमंत्री और मंत्रियों के कामकाज को नहीं दिखाया
स्थिति यह है कि 31 दिसंबर 2018 तक 60 में से 35 विधायकों का आपराधिक रिकॉर्ड था. रिपोर्ट में दिल्ली के मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों की कार्यप्रणाली को लेकर कोई जिक्र नहीं होने पर जब सवाल पूछा गया तो मिलिंद ने कहा कि चुकी वह सरकार के शीर्ष पदों पर बैठे हैं, इसीलिए एक विधायक के कामकाज से उनको न जोड़ते हुए अलग रखा गया है.
आगामी चुनाव में क्या मिलेगा फायदा?
उनसे जब पूछा गया कि क्या चुनावी वर्ष में इस तरह की रिपोर्ट कार्ड आने से आगामी दिनों में जब यह विधायक दोबारा चुनाव मैदान में उतरेंगे तो उन्हें फायदा होगा या नुकसान? मिलिंद ने साफ कहा कि यह बात विधायकों को सोचनी चाहिए कि वह एक जनप्रतिनिधि हैं. जनता से समीप रहना, उनके संपर्क में रहना उनकी बातें सुननी और उसका समाधान करना उनकी जिम्मेदारी है. अगर वह दूरी बनाए तो उसका परिणाम भी उन्हें भुगतना होगा.
विधायकों की रुचि कम होती गई
इन विधायकों के व्यक्तिगत स्कोर में लगातार कमी देखी गई, जैसे-जैसे विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने की ओर बढ़ा है. विधानसभा के कार्यों में विधायकों की रुचि कम होती गई. विधायकों के व्यक्तिगत स्कोर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 2016 में या 58.8 फीसद था जो 2019 में गिरकर 53.8 फीसद रह गया है.
बता दें कि संस्था ने जो रिपोर्ट तैयार किए हैं, उसके मुताबिक आम आदमी पार्टी की जब वर्ष 2015 में दिल्ली में सरकार बनी थी. तब विधायकों तक आम लोगों की पहुंच 64 फीसद के करीब थी. आज यह आंकड़ा 49 फीसद पर पहुंच गया है. वर्ष 2019 की ही सिर्फ बात करें तो 50 फीसद से अधिक विधायकों ने लोगों से दूरी बनाई हुई है.