नई दिल्ली: देशभर के अधिकतर राज्यों की जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी बंद हैं. बात सिर्फ तिहाड़ जेल की नहीं है. जानकारी के अनुसार किसी भी जेल में क्षमता से अधिक कैदी होना मानव अधिकारों का उल्लंघन है. अगर इसको लेकर कोई याचिका दायर करता है, तो इस पर कोर्ट संज्ञान ले सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एपी सिंह ने बताया कि कोरोना महामारी के दौरान सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हजारों कैदियों को पैरोल पर छोड़ा गया था. अब उन कैदियों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत सरेंडर करना है. बहुत से कैदियों ने कोर्ट के आदेश के बाद सरेंडर किया है. जबकि बहुत सारे कैदियों ने सरेंडर नहीं किया है. एपी सिंह का कहना है कि पैरोल पर छोड़े गए कैदियों में से जो वापस नहीं आए हैं. हो सकता है कि वह अपनी जमानत याचिका दायर करने की तैयारी कर रहे होंगे. या फिर उन्हें सरेंडर करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में जानकारी नहीं होगी. जब कैदी कोर्ट में पेश होंगे तो कोर्ट उनकी दलीलों को सुनेगा.
सरेंडर नहीं करने पर होगी पुलिस कार्रवाई:वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया कि सरेंडर नहीं करने वाले कैदियों के सामने आदेश की जानकारी न होना, बीमार होना, जमानत याचिका दायर करने के लिए पैसा ना होना जैसी कई समस्याएं हो सकती हैं. ऐसे में कोर्ट के आदेश की जानकारी नहीं होने का भी कैदियों को लाभ मिलेगा. हालांकि अगर लंबे समय तक यह कैदी सरेंडर नहीं करते हैं, तो फिर इनको पकड़ने के लिए कोर्ट के निर्देश पर पुलिस कार्रवाई करेगी.