नई दिल्ली/गाजियाबाद: इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक माह-ए-शाबान की 15वीं तारीख की रात को शब-ए-बारात कहते हैं. शब-ए-बारात की रात मुसलमान इबादत कर गुजारते हैं. रात में मुसलमान अपने चाहने वालों की कब्रों पर जाकर उनके लिए दुआएं मांगते हैं. इस पवित्र रात में गरीबों, यतीमो, बेसहारा और बेवाओं को खैरात आदि दिया जाता है. शब-ए-बारात को शब-ए-कदर की रात भी कहा जाता है, जिसका मतलब इबादत की रात होता है. इस रात लोग अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं.
होली पर मुसलमान भी करेंगे रात भर इबादत: शब-ए-बारात की मुकद्दस रात अल्लाह के हुकुम से फरिश्ते नीचे उतरते हैं. जो लोग इस रात इबादत में मशगूल रहते हैं, फरिश्ते उनपर रहमतों की बरसात करते हैं. जिससे उनके गुनाहों की माफी होती है. अल्लाह गुनाहों को बख्शने वाले हैं. इसलिए मुसलमानों को चाहिए कि कसरत से इस रात को इबादत करें और अपनी गुनाहों की माफी खुदा से मांगे. आगे भी किसी भी तरह के गुनाहों से बचें. यह साल में एक बार आती है.
शब पर्शियन भाषा है, जिसका मतलब रात है. बराअत अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब मुक्ति होता है. शब-ए-बारात का मतलब मुक्ति वाली रात है. हदीस की किताबों में शब-ए-बारात का विशेष महत्व बताया गया है. शब-ए-बारात की रात रोजी रोटी की दुआ मांगने वालों को अल्लाह रोजी-रोटी अता फरमाता है. जो लोग परेशान हैं, घर में बरकत नहीं है उन लोगों की अल्लाह परेशानी हल कर घरों में बरकत अता करता है.