नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को फर्जी मामलों को नियंत्रित करने और कम करने के लिए एक व्यापक रिपोर्ट तैयार करने के लिए भारत के विधि आयोग को निर्देश देने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर आदेश सुरक्षित रखा. न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने सोमवार को याचिकाकर्ता की दलीलें सुनने के बाद आदेश को सुरक्षित रखा और कहा कि हम उचित आदेश पारित करेंगे.
आरोप साबित करने और एफआईआर में अपना बयान दर्ज कराने के लिए जांच के दौरान नार्को एनालिसिस, पॉलीग्राफी और ब्रेन मैपिंग जैसे वैज्ञानिक परीक्षणों से गुजरना शामिल है. याचिकाकर्ता ने पुलिस से आरोपी से यह पूछने के लिए निर्देश देने की भी मांग की कि क्या वह अपनी बेगुनाही साबित करने और चार्जशीट में अपना बयान दर्ज करने के लिए नार्को एनालिसिस, पॉलीग्राफी और ब्रेन मैपिंग टेस्ट से गुजरने को तैयार है.
याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने प्रस्तुत किया कि यह एक निवारक के रूप में काम करेगा और फर्जी मामलों के साथ-साथ पुलिस जांच समय और न्यायिक समय में भारी कमी आएगी. याचिकाकर्ता के अनुसार, यह जीवन के अधिकार व स्वतंत्रता को भी सुरक्षित करेगा. हजारों निर्दोष नागरिक फर्जी मामलों के कारण गरिमा को ठेस पहुंचाने से जबरदस्त शारीरिक और मानसिक आघात के साथ वित्तीय तनाव से गुजर रहे हैं.
हाल में एक पत्रकार के खिलाफ एससी-एसटी अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज की गई थी. हालांकि, इसमें कहा गया कि शिकायतकर्ता और आरोपी एक-दूसरे को नहीं जानते. वर्तमान में प्रौद्योगिकी के विकास और न्याय में सहायता के नए साधनों के साथ अमेरिका, चीन और सिंगापुर जैसे विकसित देशों की जांच एजेंसियां अक्सर नार्को एनालिसिस, पॉलीग्राफी और ब्रेन मैपिंग जैसे वैज्ञानिक परीक्षणों का उपयोग कर रही हैं, इसलिए वहां फर्जी मामले बहुत कम हैं.