नई दिल्ली:स्वास्थ्य और परिवार कल्याण की संसदीय समिति ने शुक्रवार को संसद में अपनी 147वीं रिपोर्ट पेश की (Parl panel to Govt). रिपोर्ट में कैंसर की रोकथाम में आने वाली विभिन्न चुनौतियों का संज्ञान लिया. इस तथ्य से सहमति जताई कि कैंसर से पीड़ित अधिकांश लोग प्राइवेट इलाज कराना ज्यादा पसंद करते हैं. इसके पीछे कैंसर देखभाल सेवाओं की कमी और लोगों का प्राइवेट अस्पतालों पर ज्यादा भरोसा है.
समिति ने मंत्रालय को सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के समग्र स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में सुधार करके सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में विश्वास की कमी को पूरा करने की दिशा में सक्रिय रूप से काम करने की सिफारिश की है.
राज्यसभा सांसद भुवनेश्वर कलिता की अध्यक्षता वाली समिति का मानना है कि समय की मांग है कि गुणवत्तापूर्ण और लागत प्रभावी कैंसर देखभाल के लिए मौजूदा सुविधाओं को दुरुस्त किया जाए खासकर उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में जहां कैंसर के मामले अधिक हैं. ताकि मरीजों को पहुंच मिल सके.
समिति का मानना है कि लोगों को कैंसर रोग के खतरे और स्क्रीनिंग के माध्यम से इसका शीघ्र पता लगाने से जुड़े फायदों के बारे में जागरूक करने के लिए गहन सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) गतिविधियों की आवश्यकता है.
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ' कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सरकार को ब्लॉक-स्तरीय शिविरों, स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए. बड़े पैमाने पर रेडियो और मीडिया अभियान भी शुरू करना चाहिए जैसा कि उसने टीबी, पोलियो आदि को खत्म करने के लिए किया था.'
मंत्रालय ने दी कार्रवाई रिपोर्ट :स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपनी कार्रवाई रिपोर्ट में कहा कि केंद्र सरकार कैंसर की तृतीयक देखभाल के लिए सुविधाओं को बढ़ाने के लिए तृतीयक कैंसर देखभाल केंद्रों की सुविधाओं को मजबूत करने की योजना लागू कर रही है.
मंत्रालय ने कहा कि 'उक्त योजना के तहत 19 राज्य कैंसर संस्थान (एससीआई) और 20 तृतीयक देखभाल कैंसर केंद्र (टीसीसीसी) को मंजूरी दी गई है. अब तक, इनमें से पंद्रह एससीआई और टीसीसीसी कार्यात्मक हैं. प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) के तहत नए एम्स और कई उन्नत संस्थानों के मामले में ऑन्कोलॉजी के विभिन्न पहलुओं पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है. झज्जर (हरियाणा) में राष्ट्रीय कैंसर संस्थान की स्थापना और चित्तरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान, कोलकाता का दूसरा परिसर भी इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं.'