नई दिल्ली : देश में कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए पिछले साल लागू किए गए लॉकडाउन के दौरान कम आय वाले परिवारों की करीब 15 प्रतिशत विवाहित महिलाएं ऐसी थीं, जिन्हें गर्भनिरोधक नहीं मिल पाए. एक अध्ययन में यह बात सामने आई.
अध्ययन के अनुसार, वैश्विक महामारी से पहले सैनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करने वाली महिलाओ में से करीब 16 प्रतिशत महिलाएं ऐसी थीं, जिन्हें महावारी के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले पैड नहीं मिल सके या सीमित मात्रा में मिले.
एक वैश्विक सलाहकार समूह 'डेलबर्ग' ने 'भारत में कम आय वाले परिवारों की महिलाओं पर कोविड-19 का असर' शीर्षक से एक अध्ययन जारी किया. इस अध्ययन के तहत 10 राज्यों की करीब 15,000 महिलाओं और 2,300 पुरुषों के अनुभवों एवं नजरिए के बारे में पता किया गया. यह महिलाओं पर कोविड-19 के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को लेकर किए गए सबसे वृहद अध्ययनों में से एक है.
अध्ययन में कहा गया, 'वैश्विक महामारी से पहले सैनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करने वाली महिलाओं में से करीब 16 प्रतिशत महिलाएं ऐसी थीं, जिन्हें मार्च से नवंबर के बीच पैड नहीं पाए या सीमित मात्रा में मिले. इसके अलावा, 15 प्रतिशत विवाहित महिलाएं ऐसी थीं, जिन्हें गर्भनिरोधक नहीं मिल पाए. इसका मुख्य कारण वैश्विक महामारी के दौरान स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं तक पहुंच को लेकर चिंताएं थी.'
अध्ययन में यह भी पाया गया कि वैश्विक महामारी से पहले कामकाजी लोगों में करीब 24 प्रतिशत महिलाएं थीं, लेकिन अपनी नौकरी गंवाने वाले जिन लोगों को दोबारा काम नहीं मिल पाया है, उनमें 43 प्रतिशत महिलाएं हैं. इसमें पाया गया कि महिलाओं को उनके काम का भुगतान नहीं किए जाने के मामले बढ़े हैं.