नई दिल्ली : गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2022 ) के अवसर पर लोग गणेश भगवान की मूर्ति स्थापना करने के लिए अपनी पसंद की अलग-अलग तरह की मूर्तियों का चुनाव (Lord Ganesh Idol Selection) करते हैं, लेकिन वास्तु और कुछ आध्यात्मिक नियमों को ध्यान में रखकर अगर अबकी बार आप भगवान गणेश की प्रतिमा का चयन करेंगे तो यह आपके लिए काफी लाभदायक सिद्ध होगा.
कहा जाता है कि गणेश जी का पूजन और भजन करने से घर व कार्यस्थल पर वास्तु दोष कम होते हैं. गणेश जी के निमित्त आराधना से वास्तु दोष से मुक्ति मिल जाया करती है. यदि आप अपने घर या कार्यालय के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाते हैं तो उसके दूसरी तरफ अर्थात् जिधर गणेश भगवान की पीठ होती है, वहां पर वास्तु दोषों का शमन होता है और वहां पर सुख, शांति और धन धान्य से परिपूर्ण समृद्धि आती है.
31 अगस्त 2022 से देशभर में गणेश उत्सव शुरू हो रहा है और दिन से गणेश चतुर्थी 2022 की शुरुआत होगी. इस दिन सार्वजनिक स्थानों, मंदिरों, कार्यालयों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के साथ साथ घर-घर गणपति की मूर्ति स्थापित की जाती है. आमतौर पर लोग घर, दुकान, ऑफिस और फैक्ट्रियों में गणपति की एक जैसी ही मूर्तियां स्थापित करते हैं. लेकिन ऐसा नहीं हैं. भगवान के अलग अलग स्वरुपों का अलग अलग उद्देश्य है और उसका अलग अलग तरह का महत्व है. धर्मग्रंथों और वास्तुशास्त्रियों का कहना है कि हर जगह एक जैसी प्रतिमाएं रखना ठीक नहीं है. घर, कार्यालय, व्यावसायिक प्रतिष्ठान या सार्वजनिक स्थान के लिए अलग अलग तरह की मूर्तियों का सेलेक्शन उद्देश्य के हिसाब से करनी चाहिए. भगवान गणेश के 16 स्वरुपों में से इन तीन स्वरुपों की पूजा स्थान विशेश के हिसाब से की जाती है.
सिद्धि विनायक (Siddhivinayak )
भगवान गणेश सुख और समृद्धि के देवता हैं और हर पूजा करने वाले साधक को वह इन चीजों से परिपूर्ण कर देते हैं. इसीलिए हिन्दू धर्म में इनकी पूजा हर मांगलिक कामों से पहले होती है. यह कार्य होने वाले काम का शुभ फल बढ़ा देता है. इसलिए इन्हें सिद्धि विनायक कहते हैं. इसीलिए सिद्धि विनायक स्वरुप को घर में पूजना चाहिए. यह हर काम में आने वाली रुकावटों को दूर करने के साथ साथ उसके समाधान में मदद करने वाले होते हैं.
आप गणेश जी की प्रतिमाओं और स्वरुपों को सूंड देखकर पहचान सकते हैं. जिस प्रतिमा में भगवान गणेश की सूंड बाईं ओर मुड़ी हो वो सिद्धि विनायक होते हैं. वास्तु शास्त्र के मयमतम ग्रंथ में भी बताया गया है कि मूर्ति लाल रंग की हो और उसमें चार हाथ और बड़ा पेट होना चाहिए. दायां दांत टूटा और बायां वाला पूरा हो. साथ में नाग की जनेऊ पहने, जांघें मोटी और घुटने बड़े हों. दायां पैर मुड़ा हुआ, बायां नीचे की तरफ निकला हो. एक हाथ आशीर्वाद देते हुए और दूसरे हाथ में हथियार हो. तीसरे हाथ में मोदक और चौथे हाथ में रुद्राक्ष की माला हो. सिर पर मुकुट और गले में हार पहने हुए बैठी हुई मूर्ति को सिद्धि विनायक कहते हैं. यह सिद्धि विनायक स्वरुप को घर में पूजना चाहिए.
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