नई दिल्ली : नवंबर 2021 में दिल्ली सरकार ने नई आबकारी नीति की घोषणा की थी. इस नीति की घोषणा होते ही भाजपा ने दिल्ली सरकार के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर कई गंभीर आरोप लगाए. विवाद इतना अधिक बढ़ा कि राज्य सरकार को अंततः इस नीति से तौबा करनी पड़ी. 28 जुलाई 2022 को दिल्ली सरकार ने इस नीति को त्याग दिया. पूरे मामले को लेकर दिल्ली के एलजी ने राज्य के चीफ सेक्रेटरी से रिपोर्ट मांगी. इस रिपोर्ट के आधार पर ही सीबीआई जांच की मंजूरी दी गई. सीबीआई की तरह ईडी भी इस मामले की जांच कर रहा है. ईडी के आरोप-पत्र में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का भी नाम है.
अब आप एक उदाहरण से पूरे मामले को समझिए. हम यहां पर एक काल्पनिक नाम लेकर एक अमाउंट के जरिए समझते हैं.
मान लीजिए की सैम नाम का एक युवक है. वह हर महीने चार बोतल बीयर पी जाता है. अगर एक बोतल बीयर की कीमत 150 रुपये है, तो जाहिर है वह हर महीने 600 रुपये खर्च कर रहा है. अब यह समझिए कि उसने जो 600 रुपये खर्च किए हैं, वह पैसा कहां-कहां जाता है. इस पैसे का एक भाग दुकानदार को और एक भाग दिल्ली सरकार को जाएगा. दिल्ली सरकार को जितना पैसा मिलेगा, वह एक्साइड पॉलिसी के तहत तय किया जाता है.
दिल्ली सरकार की पुरानी आबकारी नीति के तहत 600 रुपये में से 450 रुपये प्रोफिट होते थे. (यह अनुमान पर आधारित है). इस प्रोफिट वाली राशि में से 400 रुपये दिल्ली सरकार के पास जाते थे और 50 रुपये दुकानदार को जाते थे.
अब आप इसे नई नीति के परिप्रेक्ष्य में समझिए. क्योंकि बीयर की कीमत बढ़ गई, इसलिए सैम 600 रुपये की जगह 800 रुपये खर्च करने लगा. प्रोफिट राशि अब 600 रुपया है. लेकिन अब दिल्ली सरकार के पास मात्र 50 रुपये ही जाएंगे, जबकि 550 रुपये बिक्रेता के पास जाने लगा. पूरा खेल इसको लेकर ही है.
यानी नई आबकारी नीति में दिल्ली सरकार की आमदनी घट गई, जबकि शराब बनाने वालों का प्रोफिट बढ़ गया. एक अनुमान है कि पुरानी आबकारी नीति से दिल्ली सरकार को 10 हजार करोड़ रुपये की आमदनी होती थी, जबकि नई नीति के बाद यह आमदनी घटकर दो हजार करोड़ रुपये हो गई. वैसे, आप सरकार इन आंकड़ों को सही नहीं मानती है. उसका कहना है कि सरकार की आमदनी बढ़ी है.
सीबीआई का आरोप है कि मनीष सिसोदिया ने जानबूझकर ऐसी आबकारी नीति बनाई, जिससे शराब बिक्रेताओं को फायदा हो. भाजपा का आरोप है कि शराब बिक्रेताओं ने आम आदमी पार्टी को पैसे दिए हैं. भाजपा के अनुसार 2020 की शुरुआत से ही नई आबकारी नीति पर दिल्ली सरकार ने विचार करना शुरू कर दिया था. जबकि उस समय कोविड की वजह से पूरा देश परेशान था. मई 2021 में सिसोदिया ने इस नीति को अंतिम रूप दिया. भाजपा ने यह भी आरोप लगाया है कि सिसोदिया बहुत जल्दी में थे. पार्टी का आरोप है कि आप ने यह सब पंजाब चुनाव को ध्यान में रखकर किया, ताकि उस पैसे का वहां पर उपयोग किया जा सके.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नई आबकारी नीति के आने से पहले दिल्ली में 875 स्टोर्स थे. इनमें से 60 फीसदी दिल्ली सरकार के पास थे, जबकि 40 फीसदी प्राइवेट थे. नई नीति के आने के बाद से दिल्ली सरकार की सभी दुकानें बंद हो गईं. अब सौ फीसदी प्राइवेट बिक्रेता ही बच गए. आरोप ये भी है कि दिल्ली सरकार ने प्राइवेट बिक्रेताओं में भी बड़े प्लेयर्स को फेवर किया.
आरोप के अनुसार दिल्ली सरकार ने यह शर्त रखी कि जो व्यक्ति पिछले तीन सालों से 150 करोड़ का सालाना टर्नओवर शो करेगा, वही एल-1 लाइसेंस में दावेदारी पेश कर सकेगा. आरोप है कि इसकी वजह से इंडो स्प्रीट और ब्रिंडको स्प्रीट को फायदा मिला. छोटे प्लेयर्स बाजार से निकल गए. यह अनुमानति राशि है. पुरानी नीति में यह साफ-साफ लिखा था कि थोक बिक्रेता और खुदरा बिक्रेता एक व्यक्ति नहीं हो सकता है. नई आबकारी नीति में इस शर्त को हटा दिया गया. अब जो थोक बिक्रेता है, वही खुदरा बिक्रेता भी है. आरोप है कि ऐसा जानबूझकर किया गया ताकि थोक बिक्रेताओं को फायदा दिया जा सके.
नई आबकारी नीति में दिल्ली सराकर ने थोक बिक्रेताओं के लिए प्रोफिट की सीमा 12 फीसदी फिक्स्ड कर दी. पहले यह सीमा दो फीसदी के आसपास थी. दिल्ली सरकार ने 144.36 करोड़ की लाइसेंस फीस भी खत्म कर दी. आम आदमी पार्टी का तर्क है कि कोविड की वजह से कंपनियां परेशान थीं, इसलिए उन्हें राहत दी गई. आरोप ये भी है कि ड्राई डे की संख्या 21 दिन से घटाकर तीन दिन कर दी गई. उन इलाकों में भी ठेके खोलने की अनुमति दी गई, जहां पर पहले इजाजत नहीं थी. शराब की होम डिलीवरी की शुरुआत की गई और सुबह तीन बजे तक दुकान खुली रखने का फैसला किया गया था.
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