जबलपुर।शहर के राज किरण बरुआ का संघर्ष धैर्य और लगन की कहानी बयां करती है. राज किरण के माता-पिता बेहद गरीब थे. वह मध्य प्रदेश की सीधी जिले से जबलपुर आए थे. जबलपुर में राज किरण बरुआ के पिता मजदूरी करते थे. राज किरण अपने माता-पिता के साथ रहते थे. लेकिन पिता की बीमारी की वजह से मौत हो गई और इसके बाद मां ने बांगलों में नौकरानी का काम शुरू किया. राज किरण की बुद्धि तेज थी. इसलिए लोग अक्सर उससे कहा करते थे कि तुम पढ़ाई करो, तुम्हारा भविष्य उज्जवल होगा.
परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर :राजकिरण ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जबलपुर के नवीन विद्या भवन स्कूल से पूरी की. उसकी आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही थी. कुछ दिन बाद राज किरण की मां की भी मृत्यु हो गई. रहने के लिए घर नहीं था. इसलिए राजकिरण ने दुकानों की रखवाली शुरू कर दी. इसमें उसके जीवनयापन लायक पैसे मिलने लगे. लेकिन पढ़ने का समय नहीं मिलता था. इसके बाद भी उसने 1996 में पुरातत्व विषय में मास्टर्स की डिग्री कर ली थी और बीच-बीच में बच्चों को ट्यूशन देता रहता था. इसी दौरान उसे नवीन विद्या भवन स्कूल में बच्चों को पढाने का मौका मिला, जिसमें राज किरण ने बच्चों का मनोवैज्ञानिक परीक्षण किया. मौके पर मौजूद शिक्षक ने राज किरण से कहा कि वह अपनी पढ़ाई मनोविज्ञान विषय में आगे जारी रखें.
1996 में लिया एडमिशन :दूसरी तरफ राजकिरण का मन एमएससी करने का था. उसने 1996 में ही रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में MA MSc में एडमिशन लिया. एमएससी की पोस्ट डिग्री करने के लिए स्नातक में बीएससी करना जरूरी होता है लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था में मास्टर आफ आर्ट्स किसी भी विषय में किया जा सकता है. इसलिए राज किरण बरुआ ने एमए एमएससी डिग्री में एडमिशन लिया और 1997 से पढ़ाई शुरू कर दी. 1996 से लेकर 2023 तक राज किरण बरुआ एमएससी के लिए 24 बार प्रयास कर चुके थे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी. कोविड महामारी के दौरान उन्हें समय मिला और उन्होंने एमएससी का फर्स्ट ईयर पास कर लिया और 2023 में उन्होंने एमएससी का सेकंड ईयर भी पास करके यह साबित कर दिया कि यदि पूरे धैर्य से एक ही काम को किया जाए तो सफलता अवश्य मिलती है.