देहरादून: उत्तराखंड राजनीति का वो पन्ना जिसे पढ़े बिना उत्तराखंड की राजनीति को समझा नहीं जा सकता. जी हां, हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की जो हमेशा से ही ना सिर्फ उत्तराखंड की राजनीति बल्कि देश के राजनीतिक गलियारों में भी चर्चाओं में रहते हैं. साल 2017 और 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद से ही चर्चाएं चल रही थी कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अब राजनीति से संन्यास ले लेंगे. हालांकि, इसको लेकर कई बार हरीश रावत खुद संकेत भी दे चुके हैं. इसके बावजूद अभी तक वह प्रदेश की राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय दिखाई दे रहे हैं.
पूर्व सीएम हरीश रावत का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू. नई पीढ़ी को भी आगे खड़ा करना है:ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बताया कि आने वाले समय में अगर कांग्रेस अच्छी स्थिति में जाती हुई दिखाई देती है, तो वह राजनीति से संन्यास लेने जैसे निर्णय ले सकते हैं. कांग्रेस के अंदर कई प्रतिभावान लोग हैं. साथ ही उत्तराखंड राज्य में भी तमाम प्रतिभावान लोग हैं. वर्तमान समय में करीब 40 की उम्र के आसपास कई अच्छे नेता भी हैं. लेकिन इनमें से कुछ ऐसे नेता भी हैं जो अगले 5-6 सालों में राज्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हो सकते है. ऐसे में नई पीढ़ी को भी आगे खड़ा करना है.
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आगामी लोकसभा चुनाव में नौजवान और नई पीढ़ी को मिले मौका: साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर हरदा ने कहा कि पार्टी ने उनपर बहुत इन्वेस्ट किया है. साथ ही पार्टी ने उन्हें बड़ी बड़ी जिम्मेदारियां भी दी. लिहाजा वो निर्णय नहीं कर सकते. साथ ही कहा कि उनकी दिली इच्छा है कि नौजवान और नई पीढ़ी आगे आए और उन्हें भेंट किया जाए. साथ ही हरदा ने ईटीवी भारत के माध्यम से युवाओं का आह्वान करते हुए कहा कि जो नौजवान हैं वो आगे आएं और खुद जिम्मेदारी लेकर गुणों को पैदा करें. ताकि सभी देखें कि इन युवाओं में गुण हैं, ताकि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एक नेतृत्व तैयार हो सके.
कुछ नेता पतझड़ के समय बदल लेते हैं अपना घोंसला: हरीश रावत से जब ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे पूर्व कांग्रेसियों के पार्टी छोड़ने पर सवाल किया गया कि तो उनका लहजा तल्ख हो गया. उन्होंने कहा कि जो पार्टी का दामन छोड़ रहे हैं, वो उन पक्षियों में से हैं जो जब पतझड़ आता है तो वो घोंसला बदल देते हैं. लेकिन वो उन लोगों में से हैं जो पतझड़ के समय घोंसला नहीं बदलते, बल्कि वसंत ऋतु आने का इंतजार करते हैं. साथ ही उस पेड़ की जड़ में खाद डालकर उनकी टहनियों की रक्षा करते हैं. लिहाजा ये लोग मौसमी पक्षी हैं, और जैसे ही भाजपा कमजोर पड़ेगी, उस दौरान इशारा करने पर ही पाला बदल देंगे.
पूरी निष्ठा से काम करने पर पार्टी देती है उसका फल: लिहाजा कुछ लोग महत्वकांक्षाएं पैदा करके खेती करने का काम कर रहे हैं. यानी इसके जरिए अपनी राजनीति की फसल बोने का काम करते हैं. ऐसे लोगों को समझने की जरूरत है. क्योंकि, मुख्यमंत्री कौन बनेगा ये पार्टी को तय करना है. ऐसे में कर्तव्य करने दिया जाना चाहिए. क्योंकि अगर कोई काम सौंपा जाता है और उस काम को पूरी निष्ठा के साथ करते हैं तो उसका फल आगे भी मिलता है. क्योंकि पार्टी पुरस्कार देती है. उत्तराखंड प्रदेश मुख्यालय में ऐसे नेताओं की मौजूदगी के सवाल पर हरदा ने कहा कि ऐसी आत्माएं चिपकना बहुत जानती हैं.
कांग्रेस मुख्यालय में बैठे कुछ लोग रोज मुख्यमंत्री बनाते और बिगड़ते हैं: वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कांग्रेस के तमाम नेताओं पर तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस मुख्यालय में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री बनाने में महारत हासिल है. कुछ दर्जन लोग हैं, जिनका सुबह से शाम तक काम है कि मुख्यमंत्री बनाते और बिगड़ते हैं. हालांकि, हरदा ने कुछ साफ साफ नहीं कहा लेकिन इशारों में सारी बात भी कह दी. हरदा यहीं नहीं रुके बल्कि, हरदा ने कहा कि ये कुछ दर्जन भर लोगों की वजह से बहुत सारे नेताओं को खो दिया. वो लोग आज पार्टी का नेतृत्व कर सकते थे, उन लोगों को ऐसी स्थिति में ला दिया कि वो पार्टी से बाहर चले गए.
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कांग्रेस नेताओं को नसीहत, गली मोहल्लों में निकले यात्रा: वहीं, हरदा ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के सवाल पर कहा कि यह यात्रा धीरे- धीरे विश्वास की गंगा में बदलती जा रही है. लिहाजा, राहुल गांधी के प्रयास की तुलना नहीं की जा सकती है बल्कि उस प्रयास को अपने स्तर पर मजबूत करने की आवश्यकता है. साथ ही कहा कि कांग्रेस के सभी कार्यकर्ता को चाहिए कि वो भले भी अपने गली, मोहल्ले, गांव या फिर अपने गांव की बाखली में पद यात्रा करें. कार्यकर्ताओं को पदयात्रा करनी चाहिए और भारत जोड़ो का जो संदेश है उसको हर व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए. क्योंकि ये वही संदेश है जो आजादी के मूल्यों की रक्षा कर सकता है, जो संवैधानिक लोकतंत्र की रक्षा कर सकता है. ये वही संदेश है जो गांधी, नेहरू और अंबेडकर के सपने को आगे बढ़ा सकता है.