पटना :मोदी मंत्रिमंडल विस्तारमें बीजेपी सांसद सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) का शामिल होना तय माना जा रहा है. अगर ऐसा होता है तो वह पहली बार केंद्र की सरकार में मंत्री बनेंगे. इससे पहले वह बिहार में लंबे समय तक उप-मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री रह चुके हैं. 69 साल के सुशील मोदी बिहार की राजनीति के मजबूत स्तंभ माने जाते हैं. वह बिहार बीजेपी (Bihar BJP) के सबसे प्रमुख चेहरों में शुमार हैं.
छात्र जीवन से राजनीति में सक्रिय
सुशील कुमार मोदी का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़ाव रहा है. उन्होंने साल 1973 में पटना विश्वविद्यालय स्टूडेंट यूनियन (PUSU) के जनरल सेक्रेटरी बने. उस समय लालू यादव (Lalu Yadav) पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष थे. सुशील मोदी बिहार प्रदेश छात्र संघर्ष समिति के भी सदस्य बने. ये वही संगठन है, जिसने 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार के प्रसिद्ध छात्र आंदोलन को पूरे देश में फैलाया.
जेपी आंदोलन में शामिल
सुशील मोदी ने जेपी आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. उनकी सक्रियता और गंभीरता का अंदाजा इस बात से भी लगाई जा सकती है कि उन्होंने एमएससी की पढ़ाई भी आंदोलन की वजह से अधूरी ही छोड़ दी. जेपी आंदोलन के दौरान सुशील मोदी 5 बार गिरफ्तार किए गए. इस दौरान उन्हें 24 महीने जेल में रहना पड़ा.
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार एबीवीपी के विभिन्न पदों पर रहे
आपातकाल खत्म होने के बाद सुशील मोदी साल 1977 से 1986 तक, स्टेट ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी, ऑल इंडिया सेक्रेटरी, इन-चार्ज ऑफ यूपी एंड बिहार और विद्यार्थी परिषद के ऑफ इंडिया जनरल सेक्रेटरी के पदों पर आसीन रहे.
1990 में राजनीति में आगमन
बीजेपी नेता सुशील मोदी ने साल 1990 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा. उन्होंने पटना सेंट्रल असेंबली (अब कुम्हरार) सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसी वर्ष सुशील मोदी को बीजेपी ने बिहार विधानसभा में अपना मुख्य सचेतक बना दिया. वे 1996 से 2004 तक विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे.
लालू के खिलाफ दायर की याचिका
सुशील मोदी को बिहार में लालू यादव का सबसे बड़ा राजनीतिक विरोधी माना जाता है. कभी छात्र राजनीति में लालू के साथ काम करने वाले सुशील मोदी ने अपोजिशन के लीडर के तौर पर पटना हाईकोर्ट में उनके खिलाफ पब्लिक इंटरस्ट लिटिगेशन दायर की. जिसे बाद में चारा घोटाले के नाम से जाना गया. हाल के वर्षों में भी उन्होंने लालू और उनके परिवार के खिलाफ घोटालों को लेकर मोर्चा खोल रखा था.
2004 में बने लोकसभा सांसद
सुशील मोदी 2004 में पहली बार लोकसभा के सदस्य बने. भागलपुर सीट पर उन्होंने सीपीएम के सुबोध रे को शिकस्त दी थी. हालांकि अगले ही साल यानी 2005 में बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनने पर लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और बिहार के उप मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला. बाद में विधान परिषद के सदस्य चुने गए.
वित्त मंत्रालय की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ बतौर उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की जोड़ी काफी हिट मानी जाती है. उन्हें वित्त मंत्रालय की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई. 2005 से लेकर 2013 तक उन्होंने अपनी भूमिका को बखूबी निभाई. विकास योजनाओं को धरालत पर उतारने का श्रेय उन्हें भी जाता है.
साबित हुए बीजेपी के 'गेम चेंजर'
साल 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की बड़ी हार हुई थी. तब नीतीश कुमार और लालू यादव की जोड़ी ने कमाल दिखाते हुए बड़े बहुमत के साथ महागठबंधन की सरकार बनाई थी. मगर 2 साल बीतते-बीतते ये सरकार गिर गई और नीतीश कुमार एनडीए में लौट गए. माना जाता है कि इस मुश्किल को आसान करने वाले सुशील मोदी ही थे. भ्रष्टाचार और घोटाले को लेकर तत्कालीन डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर आरोपों और उनसे जुड़े दस्तावेजों के जरिए उन्होंने नीतीश कुमार को बीजेपी के साथ आने को मजबूर कर दिया.
नरेंद्र मोदी के साथ सुशील मोदी एक बार फिर बने डिप्टी सीएम
जुलाई 2017 में सुशील मोदी की महागठबंधन की सरकार 'गिराने' की कोशिश कारगर साबित हुई और नीतीश रातों-रात आरजेडी का साथ छोड़कर बीजेपी से पास लौट आए. शाम को इस्तीफा दिया और अगले ही रोज फिर से उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. सुशील मोदी को भी उनके सियासी परिश्रम और कुशल रणनीति का इनाम मिला और वे फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बनाए गए.
'साइड लाइन हुए सुशील मोदी'
राजनीति में आगमन के बाद से हमेशा बिहार बीजेपी का प्रमुख चेहरा रहे सुशील मोदी को हालिया 2020 विधानसभा चुनाव के बाद किनारे कर दिया गया. सरकार एनडीए की बनी, मुख्यमंत्री भी नीतीश कुमार ही बने, लेकिन डिप्टी सीएम का पद सुशील मोदी को नहीं मिला. उनकी जगह तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को उप-मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी मिली. हालांकि कुछ ही समय के बाद उन्हें राज्यसभा भेज दिया गया. तब से केंद्र की मोदी सरकार में उनके मंत्री बनने की अटकलें लगती रही हैं.
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चारों सदन से सदस्य बने
सुशील मोदी चारों सदनों के सदस्य रह चुके हैं. वो 1990 में पहली बार विधानसभा सदस्य बने और फिर 2004 में भागलपुर से लोकसभा सांसद बने. 2005 से 2020 तक सुशील मोदी बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे. पिछले साल ही राज्यसभा के लिए निर्विरोध चुने गए.
भ्रष्टाचार और परिवारवाद से दूर
सुशील मोदी की पूरी राजनीति भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ रही है. उन्होंने खुद भी इसका हमेशा ख्याल रखा. यही वजह है कि तीन दशक से अधिक के सक्रिय राजनीतिक करियर में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार या घोटाले का कभी भी कोई आरोप नहीं लगा. इसके साथ उन्होंने अपने परिवार के किसी भी सदस्य को राजनीति में नहीं आने दिया.
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संघर्ष का रास्ता चुना
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि सुशील मोदी छात्र जीवन से ही राजनीति में दिलचस्पी रखते थे. उन्होंने संघर्ष का रास्ता चुना और संघर्ष की बदौलत ही सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे. उन्होंने न ही कभी परिवारवाद को बढ़ावा दिया और न ही कभी किसी दूसरे दल में जाने का मन बनाया. उन्होंने भी तमाम उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन संघर्ष नहीं छोड़ा. उसी का नतीजा है कि आखिरकार पार्टी नेतृत्व ने उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने का फैसला किया है. अब वे बिहार की सियासत से आगे निकल कर राष्ट्रीय राजनीति पर अपनी चमक बिखेरेंगे.
सुशील मोदी का व्यक्तिगत जीवन
सुशील मोदी का जन्म पटना में 5 जनवरी 1952 को हुआ था. उनके पिता का नाम मोती लाल मोदी और माता का नाम रत्ना देवी था. उन्होंने साल 1987 में जेसी जॉर्ज से शादी की. तब इनकी शादी में अटल बिहारी वाजपेयी भी शरीक हुए थे. उत्कर्ष और अक्षय अमृतांशु उनके दो बेटे हैं.